भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस – दोस्तों, आज हम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संबंध में जानेंगे की कैसे इसकी स्थापना हुई, इसके मुख्य तथ्य, इसके अधिवेशन और कैसे इसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया था।
जैसे की हम हमारे पिछले आर्टिकल्स में जानते आ रहे थे की कैसे अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में व्यापार की दृष्टि से आती है, लेकिन धीरे-धीरे वह भारत के राजनीतिक मुद्दों में हस्तक्षेप करने और भारत के क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने लग जाती है।
इस कारण धीरे-धीरे अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में बहुत बड़ी राजनीतिक शक्ति बन जाती है और भारत में अपना शासन करने लग जाती है, परंतु जैसे की हमने हमारे पिछले 1857 की क्रांति वाले आर्टिकल में जाना की कैसे ब्रिटिश सरकार भारत की सत्ता अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी से छीन लेती है और सत्ता को ब्रिटिश क्राउन को सौंप दिया जाता है।
लेकिन अंग्रेजी कंपनी से शासन छीन लिए जाने और सत्ता ब्रिटिश क्राउन को सौंप देने के बाद भी भारत में राज तो अंग्रेज ही कर रहे थे और अंग्रेजों की नीतियाँ जिनकी वजह से भारतीय सदा से ही शोषित थे, जिसके कारण भारत में बहुत सारे छोटे-छोटे दल अंग्रेजों के खिलाफ बनने लग गए थे।
ऐसे में अंग्रेजों के विरुद्ध एक ऐसे बड़े दल की स्थापना करने की आव्यशकता थी, जिससे अंग्रेजों को एक कठिन चुनौती दी जा सके और ऐसे में ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का निर्माण तथा स्थापना की गई थी, किंतु इस दल की स्थापना भारतीयों द्वारा नहीं बल्कि अंग्रेजों द्वारा इसकी स्थापना का प्रयास किया गया था।
इस दल की स्थापना करने का अंग्रेजों का उद्देश्य यह था की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस उनके लिए एक सेफ्टी वाल्व की तरह कार्य करे क्यूंकि जैसे की हमने अभी ऊपर ही चर्चा की थी की भारत में छोटे-छोटे दल बनने लगे थे, इसलिए अंग्रेज चाहते थे की अलग-अलग क्षेत्रों के अलग-अलग दलों में विरोध न होके एक सम्मिलित रूप से उनके पास भारतीयों के अनुरोध पहुंचे ताकि अंग्रेज उनका अच्छे से समाधान दे पाएं।
अपनी इस सुरक्षात्मक रणनीति के तहत अंग्रेजों द्वारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना करने का प्रयास किया गया था, परंतु यह कांग्रेस धीरे-धीरे भारत के स्वतंत्रता संग्राम में व्यापक होती चली गई और कांग्रेस के विभिन्न अधिवेशनों और विभिन्न आंदोलनों में इसके प्रारूप द्वारा भारत के स्वतंत्रता संग्राम को नया मार्ग दिखा और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महत्वपूर्ण बिंदु
1. | जैसे की हमने ऊपर जाना की अंग्रेजों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के निर्माण का प्रयास किया और इस क्रम में अंग्रेजों की ओर से ऐ. ओ. ह्यूम ( Allan Octavian Hume ) ने 28 दिसंबर 1885 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी। |
2. | ऐ. ओ. ह्यूम ब्रिटेन के स्कॉटलैंड देश के निवासी थे और भारत में अंग्रेजों के एक अधिकारी के रूप में कार्य कर चुके थे और एक अवकाश प्राप्त अधिकारी थे, परन्तु इन्होंने पहले 1884 में इंडियन नेशनल यूनियन की स्थापना करी थी, जिसे ही बाद में इंडियन नेशनल कांग्रेस / भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कहा गया था। |
3. | 1885 में ही कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन हुआ था और यह अधिवेशन बम्बई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत विद्यालय में हुआ था, परंतु पहले यह अधिवेशन पूना में करने का प्रयास किया गया था। |
4. | दादाभाई नौरोजी ने इस दल को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नाम दिया था, इससे पहले का नाम इंडियन नेशनल यूनियन या भारतीय राष्ट्रीय संघ जिसे हम ऊपर भी जान चुके हैं जो ऐ. ओ. ह्यूम द्वारा दिया गया था, दादाभाई नौरोजी को ग्रेट ओल्ड मैन ( Great Old Man ) के नाम से भी संबोधित किया जाता है। |
5. | जिस समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई थी, उस समय भारत में लार्ड डफरिन वायसराय के पद पर थे। |
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संबंध में अलग-अलग विचार
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को लेकर समय-समय पर अलग-अलग लोगों ने अपने विचारों से कांग्रेस की अलग अलग व्याख्या की आइये इन पर दृष्टि डालें:
व्यक्ति | विचार |
लार्ड डफरिन | सूक्ष्मदर्शी अल्पसंख्यकों की संस्था |
लार्ड कर्जन | कांग्रेस अपने पतन की ओर लड़खड़ाती हुई जा रही है |
बाल गंगाधर तिलक | भीख मांगने वाली संस्था |
फिरोज़ शाह मेहता | कांग्रेस की आवाज़ जनता की आवाज़ नहीं |
महात्मा गांधीजी | कांग्रेस को समाप्त करने का सुझाव |
लार्ड डफरिन ने कांग्रेस की आलोचना और व्यंग्य कसते हुए उसको सूक्ष्मदर्शी अल्पसंख्यकों की संस्था बताया क्यूंकि जब कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन हुआ था तब इसमें मात्र 72 लोगों ने ही भाग लिया था।
कर्जन जिन्हें बंगाल विभाजन का जनक माना जाता है, इन्होंने कांग्रेस के पतन के ऊपर व्याख्या की और कहा की कांग्रेस अपने पतन की ओर लड़खड़ाती हुई जा रही है और मेरी ये इच्छा है की मै इस दृश्य को देखूँ।
बाल गंगाधर तिलक द्वारा कांग्रेस को भीख मांगने वाली संस्था बताया गया क्यूंकि शुरुआत में कांग्रेस में ज्यादातर नरम दल के नेता थे जो अनुरोध और अहिंसा के मार्ग पर चलते थे जबकि बाल गंगाधर तिलक एक गरम दल के नेता थे जिसके कारण उन्होंने कांग्रेस के ऊपर यह टिप्पणी दी थी।
फिरोज़ शाह मेहता द्वारा कांग्रेस के संबंध में यह कहा गया की कांग्रेस पूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व नहीं करती है इसलिए कांग्रेस की आवाज़ जनता की आवाज़ नहीं है।
1947 में आज़ादी प्राप्त करने के बाद महात्मा गांधीजी ने कहा था की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जिस उद्देश्य से बनाई गई थी यानी भारत को आज़ादी दिलवाई जाए, वह उद्देश्य अब पूर्ण हो चुका है इसलिए उन्होंने कांग्रेस को समाप्त करने का सुझाव दिया था।
परंतु तब तक कांग्रेस पूर्ण भारत में अपनी एक अलग छवि बना चुकी थी इसलिए आज़ादी के बाद यह भारत की एक बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप में कार्य करती चली गई थी।
इतनी सारी आलोचनाओं के बाद भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन
जब कांग्रेस की स्थापना हुई थी, उसी वर्ष से कांग्रेस प्रति वर्ष अपने अधिवेशन आयोजित करती थी और इसमें से ज्यादातर अधिवेशन दिसंबर माह में ही होते थे, परंतु कभी-कभी कोई विशेष बिंदु हो तो दिसंबर से पहले भी कुछ अधिवेशनों को आयोजित किया जाता था।
इन अधिवेशनों को अलग-अलग स्थानों में आयोजित किया जाता था क्यूंकि भारत के ज्यादा से ज्यादा लोग कांग्रेस के साथ जुड़ सकें और कांग्रेस एक मजबूत दल बनकर अंग्रेजों के विरुद्ध अपनी माँगो को रख सकें, और इसके साथ-साथ इन अधिवेशनों में अध्यक्ष भी प्रति वर्ष बदले जाते थे ताकि हर सम्प्रदायें के लोगों को कांग्रेस में उनका प्रतिनिधित्व भी दिखाई दे सके, आइये उन अधिवेशनों पर दृष्टि डालें:
अधिवेशन | स्थान | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्षों की सूची | विशेषता |
1885 | बम्बई | व्योमेश चन्द्र बनर्जी | इस अधिवेशन में 72 प्रतिनिधियों द्वारा भाग लिया गया था, और इसमें प्रथम महासचिव ऐ. ओ. ह्यूम थे, जो कांग्रेस के संस्थापक भी थे। |
1886 | कलकत्ता | दादाभाई नौरोजी | दादाभाई नौरोजी कांग्रेस के तीन अधिवेशनों 1886, 1893, 1906 में अध्यक्ष बने थे। |
1887 | मद्रास | बदरुद्दीन तैय्यब जी | यह कांग्रेस अधिवेशन के प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष बने थे। |
1888 | इलाहाबाद | जॉर्ज यूले | यह कांग्रेस अधिवेशन के प्रथम गैर भारतीय या ब्रिटिश अध्यक्ष थे और इसके साथ-साथ कुल 4 विदेशी भारत की आज़ादी तक कांग्रेस के अधिवेशनों में अध्यक्ष बने थे। |
1896 | कलकत्ता | रहीमतुल्ला सयानी | इस अधिवेशन में रहीमतुल्ला सयानी की अध्यक्षता के अंतर्गत पहली बार वन्दे मातरम गीत को गाया गया था और यह तो हम सब ही को पता है की वन्दे मातरम की रचना बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा की गयी थी। |
1905 | वाराणसी | गोपाल कृष्ण गोखले | गोपाल कृष्ण गोखले को गांधीजी का गुरु माना जाता है और उस समय 1905 में लार्ड कर्जन द्वारा हिन्दू और मुस्लिमों को अलग करने के लिए बंगाल का विभाजन किया था, इसी विभाजन का विरोध हेतु इस अधिवेशन का आयोजन किया गया था और इसमें स्वदेशी ( बंग-भंग ) आंदोलन का समर्थन किया गया था। |
1906 | कलकत्ता | दादाभाई नौरोजी | इस अधिवेशन में सबसे पहली बार स्वराज शब्द का प्रयोग किया गया था, जिसका अर्थ था स्वयं का राज। |
1907 | सूरत | रासबिहारी बोस | इस समय तक कांग्रेस के अंदर दो दलों का निर्माण हो गया था, जिसमें एक दल में वह लोग थे जो ब्रिटिश सरकार से अपनी बात प्रार्थना के रूप में व्यक्त करते थे और वे नरम दल कहलाने लगे थे और दूसरा वह लोग थे जो ब्रिटिश सरकार से संघर्ष करके अपनी मांगे पूरी करवाना चाहते थे और वे गरम दल कहलाने लगे थे। इसी अधिवेशन में कांग्रेस का प्रथम विभाजन हो गया था जिसमे नरम दल और गरम दल का विभाजन हुआ था अर्थात कांग्रेस अब दो भागों में बंट चुकी थी। |
1911 | कलकत्ता | बिशन नारायणधर | इस अधिवेशन में जन गण मन को पहली बार गाया गया था और यह तो हम सब ही को पता है की जन गण मन की रचना रबीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा की गयी थी, जन गण मन को मॉर्निंग सॉंग के रूप में भी जाना जाता है। |
1916 | लखनऊ | अंबिका चरण मजूमदार | जो नरम दल और गरम दल सूरत अधिवेशन में अलग हो गए थे, वे दोनों इस अधिवेशन में फिर से एक हो जाते हैं और इसके साथ-साथ जिस मुस्लिम लीग का गठन 1906 में मुस्लिम सम्प्रदाय के प्रतिनिधित्व के लिए हुआ था, वह मुस्लिम लीग भी इस अधिवेशन में कांग्रेस के साथ समझौता कर लेती है। इसी अधिवेशन में गरम दल के नेता बाल गंगाधर तिलक जी ने कहा था कि “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा”। |
1917 | कलकत्ता | एनी बेसेंट | यह आयरलैंड की रहने वाली महिला थी और भारत में कार्य कर रही थियोसोफिकल सोसाइटी (Theosophical Society) से जुड़ी हुई थी और यह कांग्रेस अधिवेशन की पहली महिला अध्यक्ष बनी थी। |
1920 | कलकत्ता / नागपुर | लाला लाजपतराय / वीर राघवाचारी | 1920 में गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन को चलाया गया था, इसलिए मध्यकाल में ही कांग्रेस के इस विशेष अधिवेशन का आयोजन करना पड़ा जो कलकत्ता में हुआ था और इस अधिवेशन में गांधीजी के असहयोग आंदोलन के प्रस्ताव को पारित नहीं किया गया था। बाद में 1920 में ही कांग्रेस का जो प्रति वर्ष अधिवेशन दिसंबर में होता था वह नागपुर में आयोजित किया गया और इसमें गांधीजी के असहयोग आंदोलन को पारित कर दिया गया था। |
1923 | दिल्ली | अबुल कलाम आज़ाद | यह कांग्रेस अधिवेशन के सबसे युवा अध्यक्ष बने थे। |
1924 | बेलगाँव ( कर्नाटक ) | महात्मा गांधीजी | यह कांग्रेस का 40वां अधिवेशन था और यह पहला और एकमात्र अधिवेशन था जिसमें गांधीजी अध्यक्ष बने थे। |
1925 | कानपुर | सरोजिनी नायडू | इस कांग्रेस अधिवेशन में सरोजिनी नायडू पहली भारतीय महिला अध्यक्ष बनी थी। |
1929 | लाहौर | जवाहरलाल नेहरू | इस अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू द्वारा पूर्ण स्वराज का नारा दिया गया था और इस अधिवेशन में यह तय किया गया की 26 जनवरी, 1930 को प्रथम स्वतंत्रता दिवस मनाया जाएगा और इसी दिन को याद रखते हुए भारत की आज़ादी के बाद संविधान को 26 जनवरी 1950 को लागु करने का निर्णय लिया गया था। |
1931 | कराची | वल्लभ भाई पटेल | इस अधिवेशन में पहली बार मौलिक अधिकारों के प्रस्ताव को पारित किया गया था और इसी के साथ इस अधिवेशन में गाँधीजी द्वारा यह कहा गया कि “गाँधी मर सकते हैं, पर गांधीवाद नहीं”। |
1937 | फैजपुर | जवाहरलाल नेहरू | इस अधिवेशन को पहली बार ग्रामीण स्तर में अर्थात गाँव में आयोजित किया गया था ताकि ग्रामीण क्षेत्रों के लोग भी कांग्रेस के साथ जुड़ सकें और कांग्रेस की नींव और ज्यादा मजबूत हो पाए। |
1938 | हरिपुरा ( गुजरात ) | सुभाष चंद्र बोस | इसमें राष्ट्रीय नियोजन समिति का गठन किया गया था और इस समिति के अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू थे। |
1939 | त्रिपुरी ( मध्य प्रदेश ) | सुभाष चंद्र बोस | इस अधिवेशन में सुभाष चंद्र बोस द्वारा गांधीजी के समर्थक पट्टाभि सीतारमैया को हरा दिया गया था और अध्यक्ष पद के लिए दुबारा चुन लिए गए थे, लेकिन सुभाष चंद्र बोस ने गांधीजी का मान रखते हुए तब अपने अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया था और उसके बाद फिर इस अधिवेशन का अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद को बनाया गया था। |
1940 – 1945 | – | अबुल कलाम आज़ाद | यह सबसे लम्बे समय तक के लिए कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष बने रहे थे और सबसे युवा अध्यक्ष भी थे। |
1946 – 1947 | मेरठ | जे. बी. कृपलानी | यह स्वतंत्रता के समय कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष थे, परंतु भारत के स्वतंत्र होने के बाद दिसंबर माह में जे. बी. कृपलानी ने अपने अध्यक्ष पद को छोड़ दिया था, जिसके बाद कुछ समय के लिए डॉ राजेंद्र प्रसाद अध्यक्ष बने थे। |
1948 | जयपुर | पट्टाभि सीतारमैया | यह 55वां अधिवेशन था और इसमें पट्टाभि सीतारमैया अध्यक्ष बने, जिनको 1939 में सुभाष चंद्र बोस द्वारा अध्यक्ष पद के लिए हराया गया था। |
इस प्रकार कांग्रेस के यह अधिवेशन हुए जिनकी वजह से भारत के स्वंतत्रता संग्राम को बहुत मदद मिली थी, इसमें सबसे ज्यादा 10 बार कलकत्ता में अधिवेशन हुए थे क्यूंकि कलकत्ता अंग्रेजों का मुख्य केंद्र हुआ करता था और कुल तीन महिलाएं इन अधिवेशनों में अध्यक्ष बनीं थी एनी बेसेंट, सरोजिनी नायडू और नलिनी सेन गुप्ता।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
हम आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दी गई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बारे में जानकारी आपके लिए बहुत उपयोगी होगी और आप इससे बहुत लाभ उठाएंगे। हम आपके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं और आपका हर सपना सच हो।
धन्यवाद।
बार बार पूछे जाने वाले प्रश्न
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कब और किसने की?
अंग्रेजों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के निर्माण का प्रयास किया और इस क्रम में अंग्रेजों की ओर से ऐ. ओ. ह्यूम ( Allan Octavian Hume ) ने 28 दिसंबर 1885 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक कौन थे?
ऐ. ओ. ह्यूम ( Allan Octavian Hume ) ने 28 दिसंबर 1885 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी, परन्तु इन्होंने पहले 1884 में इंडियन नेशनल यूनियन की स्थापना करी थी, जिसे ही बाद में इंडियन नेशनल कांग्रेस / भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कहा गया था।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली प्रथम महिला कौन है?
एनी बेसेंट, यह आयरलैंड की रहने वाली महिला थी और भारत में कार्य कर रही थियोसोफिकल सोसाइटी (Theosophical Society) से जुड़ी हुई थी और यह कांग्रेस अधिवेशन की पहली महिला अध्यक्ष बनी थी।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली प्रथम भारतीय महिला कौन है?
सरोजिनी नायडू, 1925 कानपुर कांग्रेस अधिवेशन में सरोजिनी नायडू पहली भारतीय महिला अध्यक्ष बनी थी।