बौद्ध धर्म का इतिहास – दोस्तों, आज हम गौतम बुद्ध और बौद्ध धर्म क्या है, इसके संबंध में जानेंगे, जैसे की हमने हमारे पिछले आर्टिकल्स में वैदिक काल के बारे में जाना था और उसमे हमने यह देखा था की जब उत्तर वैदिक काल का अंतिम चरण था अर्थात 6ठी शताब्दी ईसा पूर्व का समय था तब उस समय समाज में बहुत से परिवर्तन देखने को मिले थे।
हमने जाना था की उत्तर वैदिक काल के अंतिम चरण में राजनीतिक स्तर पर समाज के दो वर्ग ब्राह्मण और क्षत्रिय में आपस में श्रेष्ठ बनने होड़ थी।
समाज में आर्थिक और सामाजिक स्तर पर भी बहुत से परिवर्तन हो रहे थे, और बहुत सारे जनपद मिलकर एक बड़े महाजनपद का भी निर्माण कर रहे थे।
उत्तर वैदिक काल के अंतिम चरण तक आते-आते धर्म के अंदर बहुत सारे कर्मकांड और आडम्बर फैल चुके थे, और इन्हीं कर्मकांड और आडम्बरों को ख़त्म करने और धार्मिक सुधार करने के लिए समाज में बहुत सारे संप्रदाय उभर कर सामने आए थे और यह समय धार्मिक सुधार आंदोलन का काल था।
इस धार्मिक सुधार को करने के लिए समाज में मुख्य रूप से दो तरह के संप्रदाय उभर कर आए थे जैसे की आस्तिक संप्रदाय और नास्तिक संप्रदाय।
आस्तिक संप्रदाय में लोग ईश्वर और भगवान जैसी मान्यताओं पर विश्वास करते थे और इसमें पारंपरिक सनातन धर्म से हटकर कुछ नए संप्रदाय आए थे, इसमें अलवर, नयनार और आजीवक जैसे संप्रदाय आते हैं।
नास्तिक संप्रदाय में लोग ईश्वर और भगवान जैसी मान्यताओं पर विश्वास नहीं करते थे, परंतु वे मानवता पर विश्वास रखते थे, नास्तिक संप्रदाय में बौद्ध धर्म और जैन धर्म जैसे धर्म आते हैं और इसी नास्तिक संप्रदाय के मुख्य सम्प्रदायों में बौद्ध धर्म के बारे में हम आज जानेंगे।
6ठी शताब्दी ईसा पूर्व की वह सारी परिवर्तन की परिस्थितियां जिनके बारे में हमने ऊपर चर्चा की यही बौद्ध धर्म के उदय का कारण बनी थी जिसके कारण समाज में एक नए बौद्ध धर्म का जन्म हुआ था।
आइये दोस्तों, अब हम गौतम बुद्ध और बौद्ध धर्म ( Baudh Dharm ) के संबंध में जानें।
गौतम बुद्ध का जीवन परिचय ( प्रारंभिक जीवन, महाभिनिष्क्रमण, बुद्धत्व, महापरिनिर्वाण )
गौतम बुद्ध का जीवन परिचय – गौतम बुद्ध के द्वारा ही बौद्ध धर्म की स्थापना की गई थी और जातक कथाओं में गौतम बुद्ध के पूर्व जन्म के संबंध में कथाएं मिलती है।
गौतम बुद्ध का जन्म | 563 ईसा पूर्व |
जन्म स्थान | लुम्बिनी वन, नेपाल |
प्रारंभिक नाम | सिद्धार्थ |
पिता | शुद्धोदन ( शाक्य वंश से संबंधित ) |
माता | महामाया देवी ( कोलिय वंश से संबंधित ) |
सौतेली माता | प्रजापति गौतमी ( मौसी ) |
पत्नी | यशोधरा |
पुत्र | राहुल |
गृह त्याग | 29 वर्ष ( महाभिनिष्क्रमण ) |
मृत्यु | 483 ईसा पूर्व ( 80 वर्ष की आयु ), कुशीनगर |
गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोदन था और वे शाक्य वंश से संबंधित थे, जो की दक्षिण नेपाल से संबंधित है और माता का नाम महामाया देवी था जो की कोलिय वंश से संबंधित थी।
शुद्धोदन कपिलवस्तु के राजा थे और उनकी पत्नी महामाया देवी को संतान होने वाली थी जिसके लिए वह अपने मायके जा रही थी।
इसी क्रम में रास्ते में एक वन जिसका नाम लुम्बिनी वन था वहां उन्हें प्रसव पीड़ा शुरू हो गई थी और वहां उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई और वह पुत्र आगे चलकर गौतम बुद्ध के नाम से जाने गए और यह लुम्बिनी वन वर्तमान में नेपाल में है और यह लुम्बिनी वन गौतम बुद्ध का जन्म स्थान बना था।
परंतु गौतम बुद्ध के जन्म के 7 दिनों के बाद ही उनकी माता महामाया देवी का देहांत हो गया था और उनके पिता शुद्धोदन ने गौतम बुद्ध की देखभाल और लालन-पालन के लिए उनकी मौसी प्रजापति गौतमी से विवाह कर लिया था।
जब शुद्धोदन ने गौतम बुद्ध की कुंडली दिखाई तो कौण्डिन्य ऋषि द्वारा दो गतियों के बारे में बताया गया जिसमें कहा गया की या तो यह चक्रवर्ती सम्राट बनेंगे या तो यह बहुत बड़े सन्यासी बनेंगे।
उनके पिता शुद्धोदन गौतम बुद्ध को एक राजा के रूप में देखना चाहते थे इसलिए वे परेशान रहने लगे की कहीं उनका पुत्र संन्यास के मार्ग पर न चले जाए और अपने पिता के इच्छा से उल्टा गौतम बुद्ध वनों में रहना, शांत स्वभाव से चिंतन करना और अकेला रहने का भाव रखते थे।
उनके पिता के इसी भय और परेशानी की वजह से 16 वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध का विवाह करा दिया गया था, यह इसलिए कराया गया था ताकि गौतम बुद्ध विवाह के बाद सांसारिक जीवन में फंस जाए और संन्यास की तरफ उनका ध्यान न जाए।
गौतम बुद्ध का विवाह यशोधरा नामक कन्या से हुआ और उससे उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी जिसका नाम राहुल रखा गया था, परंतु यह विवाह और पुत्र बंधन भी उन्हें संन्यास से अलग नहीं कर पाए।
इस क्रम में एक दिन वे अपने राज्य के भ्रमण के लिए निकले और उनके सारथी का नाम चन्ना था और घोड़े का नाम कंथक था, कंथक उनके दरबार का सबसे सक्षम और सफ़ेद घोडा था, अपने भ्रमण के क्रम में वहां उन्होंने चार तरह के दृश्य देखे, जो कुछ इस प्रकार हैं:
1. वृद्ध व्यक्ति | उन्होंने एक वृद्ध व्यक्ति का दृश्य देखा, जो बहुत ही कमजोर था और उसे देख कर गौतम बुद्ध बड़े ही दुखी हुए। |
2. बीमार व्यक्ति | उन्होंने एक बीमार व्यक्ति का दृश्य देखा, जो अपने अपनी बीमारी और जीवन को अच्छा करने का प्रयास कर रहा था और उसको बहुत कष्ट हो रहा था और उसे देख कर गौतम बुद्ध और भी ज्यादा दुखी हो गए। |
3. मृत व्यक्ति | उन्होंने एक मृत व्यक्ति का दृश्य देखा और उनके मन में यह विचार आया की इंसान पूरे जीवन में धन, वैभव और अहंकार में लिप्त रहता है, लेकिन उसका अंत तो मृत्यु ही है। |
4. सन्यासी | उन्होंने एक सन्यासी का दृश्य देखा जो प्रसन्न और हर्षित अवस्था में था और उनके मन में विचार आया की जीवन की सभी दुखों और कष्टों के निवारण के लिए संन्यास ही सबसे बेहतर मार्ग है। |
इसके बाद उन्होंने 29 वर्ष की आयु में संन्यास लेने का फैसला लिया और रात में सबकी निद्रा अवस्था के समय वे अपना गृह त्याग करके संन्यास के लिए निकल गए थे और इस घटना को “महाभिनिष्क्रमण” कहा जाता है।
उनके गृह त्याग के क्रम में वे इधर उधर ज्ञान की प्राप्ति के लिए घूमने लगे और अलग-अलग गुरुओं से भेंट भी की और उनका लक्ष्य ज्ञान की प्राप्ति करना था।
इस क्रम में उन्हें अपने पहले गुरु मिले और जिनका नाम आलार कालाम था और उनसे उनकी भेंट वैशाली, बिहार में हुई थी, आलार कालाम सांख्य दर्शन से संबंधित थे और इनसे गौतम बुद्ध ने शिक्षा प्राप्त की थी।
इसके बाद गौतम बुद्ध को उनके दूसरे गुरु मिले जिनका नाम रुद्रक रामपुत्र था और उनसे उनकी भेंट राजगृह, बिहार में हुई थी और इनसे भी बुद्ध ने शिक्षा प्राप्त की थी।
परंतु इन सब के बाद भी गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो पा रही थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने ज्ञान की प्राप्ति के अभियान को जारी रखा था और इस क्रम में वे फिर बिहार के बोधगया पहुंचे।
बोधगया पहुँचने के बाद वहां उन्होंने निरंजन नदी जिसे फल्गू नदी भी कहते हैं उसके किनारे 49 दिनों तक एक पीपल के पेड़ के नीचे कठोर तपस्या की और इसके बाद अंत में वैशाख पूर्णिमा के दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई, इसके अलावा गौतम बुद्ध का जन्म, मृत्यु और ज्ञान की प्राप्ति वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुई थी इसलिए इसे बुद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है।
जिस समय बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई तब उनकी आयु 35 वर्ष की थी अर्थात उनके गृह त्याग करने के 6 वर्ष बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
बुद्ध की इस ज्ञान की प्राप्ति को “बुद्धत्व” कहा गया अर्थात ज्ञान की प्राप्ति और बुद्धत्व तीन प्रकार के होते हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं:
1. | सम्यकसम्बुद्ध |
2. | प्रत्येकबुद्ध |
3. | सावकबुद्ध |
इसके बाद उन्हें “तथागत” और “बुद्ध” जैसे नामों से जाना जाने लगा था, जिसमें बुद्ध का अर्थ बुद्धत्व को प्राप्त करने वाला है और तथागत का अर्थ “सत्य है ज्ञान जिसका” है, इसके साथ साथ उन्हें शाक्यमुनि और एशिया के प्रकाश ( Light of Asia ) जैसे नामों से भी संबोधित किया जाता है।
अपनी इस ज्ञान की प्राप्ति के बाद उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रसार आरंभ किया और इस क्रम में उनके सबसे पहले 5 शिष्य बने और इन पांच शिष्य में से आनंद उनका सबसे प्रिय शिष्य था।
इन पाँचों शिष्यों को उन्होंने अपना सबसे पहला उपदेश दिया था और अपना यह सबसे पहला उपदेश उन्होंने सारनाथ, उत्तर प्रदेश में दिया था, सारनाथ को ऋषिपत्तन के नाम से भी संबोधित किया जाता है।
बाद में उनका चचेरा भाई देवदत्त भी उनका शिष्य बन गया था।
गौतम बुद्ध ने अपने प्रवचनों और उपदेशों के माध्यम से बौद्ध धर्म का प्रसार और समाज को जागृत करने का प्रयास किया था, वर्तमान में भी बौद्ध धर्म कई देशों में विस्तृत है।
इस क्रम में उन्होंने अपने बहुत सारे संघ भी बनाए जिसके माध्यम से उनके बहुत सारे भिक्षुक बनते गए और ये भिक्षुक भी बौद्ध धर्म का प्रसार करते गए थे।
इन सब प्रयासों की वजह से लोग इन से जुड़ते चले गए और धीरे-धीरे बौद्ध धर्म लगभग पूर्ण उत्तर भारत में फ़ैल गया था और उत्तर भारत के बड़े और प्रमुख धर्मों में से एक बन गया था।
बौद्ध धर्म के प्रसार के क्रम में बहुत सारे संघ, मठ और विहार बनाए गए थे जहाँ पर बौद्ध धर्म को मानने वाले उनके अनुयायी रहा करते थे, परंतु तब इसमें सिर्फ पुरुष ही रहा करते थे, बाद में बुद्ध के प्रिय शिष्य आनंद के आग्रह के बाद उनके द्वारा इन जगहों पर महिलाओं को भी रहने की अनुमति दे दी गई थी।
बुद्ध के अनुसार जब तक यहाँ पुरुष होंगे तब तक बौद्ध धर्म अच्छा चलेगा और इसकी प्रगति होती रहेगी, लेकिन महिलाओं के आने के बाद यह धर्म आने वाले 500 से 1000 वर्ष में अपनी प्रगति खोता चला जाएगा।
बौद्ध धर्म में महिलाओं को अनुमति देने के बाद जो उनकी सौतेली माँ प्रजापति गौतमी थी जिनके संबंध में हमने ऊपर भी चर्चा की थी वह उनकी प्रथम महिला शिष्य और बौद्ध धर्म को अपनाने वाली पहली महिला बनी थी, इसके साथ साथ उस समय की वैशाली की प्रमुख नृत्यांगना जिनका नाम आम्रपाली था उसने भी बौद्ध धर्म को अपना लिया था।
इस क्रम में बुद्ध के द्वारा सबसे ज्यादा उपदेश श्रावस्ती में दिए गए जो कौशल की राजधानी थी और वर्तमान में यह उत्तर प्रदेश में है।
इसके बाद गौतम बुद्ध ने अपने जीवन का सबसे अंतिम उपदेश अपने शिष्य सुभद को दिया था और 80 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु कुशीनगर, उत्तर प्रदेश में हो गई थी, इस घटना को “महापरिनिर्वाण” कहा जाता है और उन्होंने अपने पूरे जीवन में नैतिक ज्ञान को लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया था।
बौद्ध संघ
संघ संस्कृत भाषा से लिया गया शब्द है जिससे तात्पर्य है समुदाय या सभा, बौद्ध संघ में बौद्ध भिक्षु और उपासक रहा करते थे और वे घूम-घूम कर बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करते थे।
कुछ वर्गों के लोगों को संघ में प्रवेश नहीं दिया जाता था, जो कुछ इस प्रकार हैं:
1. | किसी क्षेत्र या राज्य या देश के सिपाही को बिना उसके राजा की अनुमति के बिना बौद्ध संघ में प्रवेश नहीं दिया जाता था। |
2. | किसी भी गुलाम को उसके मालिक से दी गई आज़ादी के बिना बौद्ध संघ में प्रवेश नहीं दिया जाता था। |
3. | ऐसा व्यक्ति जिसके द्वारा किसी से क़र्ज़ लिया गया हो, जब तक वह व्यक्ति अपना क़र्ज़ नहीं चुका लेता वह बौद्ध संघ में प्रवेश नहीं कर सकता था। |
संघ में बौद्ध भिक्षु अलग-अलग क्षेत्रों में जाके बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे और वे सिर्फ वर्षा ऋतु के दौरान ही किसी एक जगह पर रुक जाते थे और वर्षा ऋतु के ख़त्म हो जाने पर वे अपनी यात्रा दुबारा शुरू कर देते थे, इसे बौद्ध धर्म में “वस्सावसा” कहा जाता है।
संघ के इन्हीं प्रयासों से बौद्ध धर्म पूरे उत्तर भारत में माना जाने लग गया था, और बहुत सारे राजाओं ने भी बौद्ध धर्म का सहयोग किया, जो कुछ इस प्रकार हैं:
1. मगध ( बिम्बिसार, अजातशत्रु )
2. कोशल ( प्रसनजीत )
3. कौशाम्बी ( राजा उदयन )
4. उत्तर भारत के कई गणतंत्रात्मक राज्य
सबसे ज्यादा मौर्य सम्राट “अशोक” ने बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया था और इसे पश्चिमी एशिया, बर्मा, श्रीलंका जैसे देशों तक पहुंचाया था।
बौद्ध भिक्षु और उपासक
जिन लोगों ने संघ के नियम जो बौद्ध ग्रन्थ विनय पिटक के द्वारा बताये गए हैं और जिन्होंने योगीत्व को स्वीकार लिया है वे बौद्ध भिक्षु की श्रेणी में आ जाते हैं और वे लोग जो सिर्फ बौद्ध धर्म की शरण में और उसको मानने लगे हैं और वे बौद्ध धर्म के उपासक की श्रेणी में आते हैं।
बौद्ध भिक्षु की श्रेणी में आने वाले लोगों में पुरुषों को भिक्षु और महिलाओं को भिक्षुणी कहा जाता था और उपासक की श्रेणी में आने वाले लोगों में पुरुषों को उपासक और महिलाओं को उपासिका कहा जाता था।
किसी भी व्यक्ति को उपासक बनने के लिए स्वीकार करना होता है की वह बुद्ध, धम्म और संघ की शरण में आना चाहता है, जिसके बाद वह उपासक बन जाता है और इस प्रक्रिया को “प्रव्रज्या” कहा जाता है, जिसके बाद उस व्यक्ति को दिए गए नियमों का पालन करना होता है और उसे बौद्ध भिक्षुओं द्वारा ज्ञान भी दिया जाता है।
इसके बाद वह व्यक्ति अपनी इच्छा अनुसार बौद्ध भिक्षु बनना चाहे तो बन सकता है और बौद्ध भिक्षु बनने की प्रक्रिया को “उपसंपदा” कहा जाता है और इसमें उस व्यक्ति को बाल काट दिए जाते हैं और पीले वस्त्र दिए जाते हैं।
बौद्ध भिक्षु बनने के बाद उन्हें बौद्ध ग्रन्थ विनय पिटक के द्वारा बताये गए पातिमोक्ख के नियमों का पालन करना होता है, जिसमें भिक्षुओं के लिए 227 नियम हैं और भिक्षुणी के लिए 311 नियम हैं।
पातिमोक्ख के नियमों का पालन सही तरह से हो रहा है उसके लिए हर 15 दिनों के भीतर एक सभा रखी जाती है और उसमें बौद्ध भिक्षुओं ने अगर कोई नियम तोड़ा है तो उसे स्वीकार कर सकते हैं और इसमें 4 मुख्य नियम जिन्हें तोड़ने पर किसी बौद्ध भिक्षु को संघ से निकाल दिया जाता है और दुबारा कभी भी उसे संघ में प्रवेश नहीं दिया जाता है, वे 4 मुख्य नियम कुछ इस प्रकार हैं:
1. | अपने अधिकार से ज्यादा अपने पास इकट्ठा करना। |
2. | किसी के साथ शारीरिक संबंध बनाना। |
3. | झूठा दावा करना की उसे आध्यात्मिक उपलब्धि प्राप्त हो चुकी है। |
4. | किसी की हत्या करना। |
इस प्रक्रिया को “पराजिका” कहा जाता है जिससे तात्पर्य है “हार”।
गौतम बुद्ध की जीवन घटनाएं और उनके प्रतीक
बुद्ध की जीवन काल की घटनाओं को कुछ प्रतीकों द्वारा दर्शाया जाता है, जो कुछ इस प्रकार है:
बुद्ध के जीवन की घटनाएं | उनके प्रतीक |
जन्म | कमल और सांड |
गृह त्याग | घोडा |
ज्ञान | पीपल |
निर्वाण | पद चिन्ह |
प्रथम उपदेश ( धर्मचक्र परिवर्तन ) | 8 छड़ वाला चक्र ( 8 Spoke Wheel ) |
मृत्यु | स्तूप |
बुद्ध के जन्म को कमल एवं सांड के प्रतीक चिन्ह से दर्शाया जाता है क्यूंकि जातक कथाओं में बुद्ध के जन्म के संबंध में यह कहा गया है की जब उनका जन्म हुआ तब उन्होंने 7 कमल के पुष्पों के ऊपर पैर रख कर अपना कदम बढ़ाया था।
उनके गृह त्याग को घोड़े से दर्शाया जाता है क्यूंकि वे घोड़े के द्वारा अपना घर छोड़ कर निकले थे।
उनके ज्ञान प्राप्ति को पीपल के वृक्ष से दर्शाया जाता है क्यूंकि उन्हें पीपल के वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
उनके निर्वाण को पद चिन्ह से दर्शाया जाता है और निर्वाण का अर्थ है की जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाना, दीपक का बुझ जाना और इस मोह-माया वाली दुनिया को छोड़ जाना।
मृत्यु को स्तूप से दर्शाया जाता है और स्तूप में बौद्ध धर्म के अवशेष रखे जाते हैं।
बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य ( Four Noble Truths of Buddhism )
बुद्ध के द्वारा बौद्ध धर्म की शिक्षाएं और उनके उपदेशों से उन्होंने बहुत नैतिक ज्ञान समाज को दिया और उन्होंने चार आर्य सत्यों की बताए, जो कुछ इस प्रकार हैं:
1. | दुःख |
2. | दुःख समुदाय |
3. | दुःख निरोध |
4. | दुःख निरोध मार्ग |
उन्होंने बताया की इंसान को पूरे जीवन में दुःख तो देखना ही पड़ेगा।
दुःख अकेला नहीं बल्कि पूरे समुदाय में होगा।
दुःख का निरोध अर्थात ख़त्म किया जा सकता है।
दुःख को ख़त्म करने के लिए उसका निरोध मार्ग भी है।
बौद्ध धर्म के आष्टांगिक मार्ग ( Ashtanga Marga of Buddhism )
गौतम बुद्ध द्वारा इन दुःखों को ख़त्म करने के लिए आष्टांगिक मार्ग बताए गए अर्थात दुखों को ख़त्म करने के लिए 8 रास्ते, जो कुछ इस प्रकार हैं:
1. | सम्यक दृष्टि |
2. | सम्यक संकल्प |
3. | सम्यक वाक् |
4. | सम्यक कर्म |
5. | सम्यक आजीव |
6. | सम्यक व्यायाम |
7. | सम्यक स्मृति |
8. | सम्यक समाधि |
उन्होंने बताया की अगर मनुष्य इन 8 रास्तों का पालन करता है तो वह अपने जीवन के दुखों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है, इसमें सम्यक का अर्थ “सही” होता है।
सम्यक दृष्टि और सम्यक संकल्प को प्रज्ञा स्कंद कहा गया है और यह बुद्धि से संबंधित है।
सम्यक वाक्, सम्यक कर्म और सम्यक आजीव को शील स्कंद कहा गया है और यह नैतिकता से संबंधित है।
सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि को समाधि स्कंद कहा गया है और यह एकाग्रता से संबंधित है।
बौद्ध धर्म के दस शील ( 10 sheel of Buddhism )
बुद्ध द्वारा 10 शील बताए गए जिसको मनुष्य को अपने जीवन में पालन करना चाहिए उसका जीवन नैतिकपूर्ण बन सके, जो कुछ इस प्रकार है:
1. | सत्य |
2. | अहिंसा |
3. | अस्तेय ( चोरी नहीं करनी चाहिए ) |
4. | ब्रह्मचर्य ( कामवासना से बचना चाहिए ) |
5. | अपरिग्रह ( जरुरत से ज्यादा धन और संपत्ति इकठ्ठा न करना ) |
6. | कोमल शैय्या और सुखप्रद बिस्तर का त्याग |
7. | अविलासिता ( विलासी जीवन का त्याग अर्थात नृत्य और गायन से बचना ) |
8. | असमय भोजन का त्याग |
9. | मद्यपान का त्याग ( नशीले पदार्थों से बचें ) |
10. | कंचन कामिनी का त्याग ( स्वर्ण और नारी से बचाव ) |
बौद्ध धर्म के त्रिरत्न ( Three Jewels of Buddhism )
गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म के त्रिरत्न बताए जिसका पालन करना चाहिए, जो कुछ इस प्रकार हैं:
1. बुद्ध
2. धम्म
3. संघ
बुद्ध ही परम सत्य है, इसका तात्पर्य है की ज्ञानी और जागृत हुआ मनुष्य, जिसने बुद्धत्व को प्राप्त किया हो।
धम्म से तात्पर्य बौद्ध धर्म की शिक्षाओं और उपदेशों से है और इसका अर्थ नैतिकता है।
संघ से तात्पर्य है जहाँ बौद्ध धर्म को मानने वाले अनुयायी और बौद्ध भिक्षुक एक समुदाय में रहते हैं और बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करते हैं।
बुद्ध ने दुःखों का कारण तृष्णा को बताय जिसका तात्पर्य है इच्छाएं और कामना उनके अनुसार अगर मनुष्य के जीवन में इच्छाएं होंगी तो दुःख भी होंगे और अगर मनुष्य अपनी इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर लेता है तो वह अपने दुःखों पर भी विजय प्राप्त कर सकता है।
इस तृष्णा पर हम बुद्ध द्वारा दिए गए आष्टांगिक मार्गों से विजय प्राप्त कर सकते हैं और इन आष्टांगिक मार्गों के संबंध में हमने ऊपर चर्चा की थी।
गौतम बुद्ध ने अंत में बताया की जीवन का अंतिम लक्ष्य निर्वाण की प्राप्ति करना है अर्थात जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाना और परम ज्ञान की प्राप्ति होना और इसके साथ-साथ गौतम बुद्ध की मृत्यु को “महापरिनिर्वाण” कहा जाता है।
बौद्ध संगीतियाँ
दोस्तों, जब गौतम बुद्ध की मृत्यु 483 ईसा पूर्व में हो जाती है और उन्हें निर्वाण की प्राप्ति हो जाती है, तो उनके बाद बौद्ध धर्म को आगे बढ़ाने और उसकी प्रगति के लिए, बौद्ध धर्म के विद्वानों और अनुयायियों द्वारा संगीति या सभाएं आयोजित कराई जाती हैं ताकि बौद्ध धर्म को आगे बढ़ाया जा सके, आइये उन संगीतियों पर दृष्टि डालें:
वर्ष | स्थान | राजा | अध्यक्ष | मुख्य बिंदु |
483 BC | राजगृह, बिहार | अजातशत्रु | महाकश्यप | सुत्तपिटक और विनयपिटक की रचना |
383 BC | वैशाली, बिहार | कालाशोक | शबाकामी | बौद्ध धर्म का “महासांघिक” और “थेरवादी” जैसे दो दलों में विभाजन |
247 BC | पाटलीपुत्र, बिहार | अशोक | मोगलीपुत्र तिस्स | अभिधम्मपिटक पुस्तक की रचना |
102 AD | कुण्डलवन, कश्मीर | कनिष्क | वसुमित्र ( अध्यक्ष ), अश्वघोष ( उपाध्यक्ष ) | बौद्ध धर्म “महायान” और “हीनयान” में विभाजित |
प्रथम बौद्ध संगीति
दोस्तों, सबसे पहली बौद्ध संगीति जिस वर्ष गौतम बुद्ध की मृत्यु हुई थी उसी वर्ष आयोजित कराई गई थी अर्थात 483 ईसा पूर्व में और यह संगीति या सभा राजगृह, बिहार में आयोजित कराई गई थी क्यूंकि उस समय मगध की राजधानी राजगृह थी और उस समय अजातशत्रु राजा के तौर पर शासन कर रहे थे।
अजातशत्रु बिम्बिसार के पुत्र और हर्यक वंश के राजा थे और इस संगीति की अध्यक्षता महाकश्यप द्वारा की गई थी।
इस संगीति के दौरान सुत्तपिटक और विनयपिटक जैसी पुस्तकों को लिखा गया था और इन पुस्तकों में बौद्ध धर्म से जुड़ी बातें बताई गई है।
द्वितीय बौद्ध संगीति
यह संगीति प्रथम संगीति के 100 वर्ष बाद अर्थात 383 ईसा पूर्व में कराई गई थी।
यह संगीति या सभा वैशाली, बिहार में आयोजित कराई गई थी क्यूंकि उस समय मगध की राजधानी राजगृह से बदलकर वैशाली कर दी गई थी और उस समय कालाशोक राजा के तौर पर शासन कर रहे थे।
कालाशोक शिशुनाग के पुत्र और शिशुनाग वंश के राजा थे और इस संगीति की अध्यक्षता शबाकामी द्वारा की गई थी।
इस संगीति के दौरान बौद्ध धर्म में विभाजन जैसी स्थितियां देखने को मिलती हैं और यह धर्म “महासांघिक” और “थेरवादी” जैसे दो दलों में विभाजित हो जाता है।
महासांघिक दल में अनुयायी कुछ नए चीजें को अपनाना और लाना चाहते थे और थेरवादी दल में अनुयायी बौद्ध धर्म में चली आ रही पुरानी चीजों से ही सहमत थे, वे नई चीजों को धर्म में लाने में सहमत नहीं थे, परंतु यह ज्यादा व्यापक विभाजन नहीं था।
तृतीय बौद्ध संगीति
यह संगीति 247 ईसा पूर्व में आयोजित कराई गई थी, परंतु कुछ किताबों में आपको 250 ईसा पूर्व भी देखने को मिल सकता है।
यह संगीति या सभा पाटलीपुत्र, बिहार में आयोजित कराई गई थी क्यूंकि उस समय मगध की राजधानी वैशाली से बदलकर पाटलीपुत्र कर दी गई थी और उस समय सम्राट अशोक राजा के तौर पर शासन कर रहे थे।
सम्राट अशोक चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र और मौर्य वंश के राजा थे और इस संगीति की अध्यक्षता मोगलीपुत्र तिस्स द्वारा की गई थी।
इस संगीति के दौरान अभिधम्मपिटक पुस्तक की रचना की गई और इसमें भी बौद्ध धर्म से जुड़ी बातें बताई गई हैं।
चतुर्थ बौद्ध संगीति
यह संगीति 102 ईस्वी में आयोजित कराई गई और यह एकमात्र ऐसी संगीति थी जो ईसापूर्व में नहीं बल्कि ईस्वी में आयोजित कराई गई थी।
यह संगीति या सभा कुण्डलवन, कश्मीर में आयोजित कराई गई थी और यह एकमात्र ऐसी संगीति थी जो बिहार से बाहर के क्षेत्र अर्थात कश्मीर में कराई गई थी, इस संगीति के दौरान कनिष्क राजा के तौर पर शासन कर रहे थे।
इस संगीति की अध्यक्षयता वसुमित्र द्वारा की गई थी और अश्वघोष इस संगीति के उपाध्यक्ष थे।
इस संगीति के दौरान बौद्ध धर्म में एक व्यापक विभाजन देखने को मिलता है और बौद्ध धर्म “महायान” और “हीनयान” जैसे दो हिस्सों में बंट जाता है।
महायान और हीनयान ( Baudh Dharm )
बौद्ध धर्म अपनी चौथी बौद्ध संगीति या सभा के दौरान ईस्वी की प्रथम शताब्दी में महायान और हीनयान जैसे दो हिस्सों में विभाजित हो जाता है, आइये इन दोनों में क्या अंतर है उस पर दृष्टि डालें:
महायान | हीनयान |
महायान के समर्थक गौतम बुद्ध के उपदेशों और विचारों के साथ-साथ नई परिस्थितियों को स्वीकारते हुए नई चीजों को बौद्ध धर्म में लाना चाहते थे। | हीनयान के समर्थक गौतम बुद्ध के दिए उपदेशों और विचारों से संतुष्ट थे और वे रूढ़िवादी थे और बौद्ध धर्म में कोई नई चीजों को लाना नहीं चाहते थे। |
महायान के समर्थक गौतम बुद्ध को एक देवता और अवतार की संज्ञा देते थे। | हीनयान के समर्थक गौतम बुद्ध को एक महापुरुष मानते थे, वे गौतम बुद्ध को एक देवता की संज्ञा नहीं देते थे और गौतम बुद्ध ने भी अपने आप को कभी देवता नहीं बताया बल्कि वे तो देवता जैसे किसी अस्तित्व को ही नहीं मानते थे थे और उन्होंने नास्तिक संप्रदाय की स्थापना की थी। |
महायान के समर्थक बुद्ध को एक देवता के रूप में मानने लगे थे इसलिए वे उनकी मूर्ति बनाकर पूजा करने लगे थे और इसी के साथ गौतम बुद्ध की भारत में गांधार शैली में बहुत सारी मूर्तियां बनाई गई और गांधार शैली को बौद्ध धर्म से ही जोड़ दिया गया था। | हीनयान के समर्थक मूर्ती पूजन में विश्वास नहीं करते थे। |
वर्तमान समय में महायान उत्तर भारत, जापान, चीन, तिब्बत जैसे क्षेत्रों में सक्रिय है। | वर्तमान समय में हीनयान दक्षिण भारत, बर्मा, श्रीलंका, थाईलैंड जैसे क्षेत्रों में सक्रिय है। |
महायान का मुख्य उद्देश्य “बोधिसत्व” की प्राप्ति करना था, बोधिसत्व से तात्पर्य यह है की वह व्यक्ति जो निर्वाण की प्राप्ति कर चुका है और वह दूसरे लोगों की भी निर्वाण की प्राप्ति करने में सहायता करता है।
वज्रयान ( Baudh Dharm )
दोस्तों, जब भारत में आगे चलकर गुप्त वंश का शासन आता है, तब उस समय नालंदा विश्वविद्यालय का भी निर्माण होता है और वहां पर भी बौद्ध धर्म की शिक्षाएं दी जाती थी और बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया जाता था।
गुप्त काल में बौद्ध धर्म की एक नई शाखा वज्रयान की शुरुआत होती है, गुप्त वंश के शासन काल के 6ठी से 8वीं शताब्दी ईस्वी में इसका अच्छा विस्तार हुआ और मुख्य रूप से 8वीं शताब्दी ईस्वी में इसका ज्यादा विस्तार हुआ था।
बौद्ध धर्म की इस नई शाखा वज्रयान में जादू-टोना, तंत्र-मंत्र और आडम्बर शुरू हो गए थे और जैसे की हमने हमारे पिछले आर्टिकल वैदिक काल में देखा था की कैसे उत्तर वैदिक काल में धर्म में बहुत सारे कर्मकांड और आडम्बर बढ़ गए थे, वैसे ही कुछ इस प्रकार से जादू-टोना, तंत्र-मंत्र और आडम्बर बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा में शुरू हो गए थे।
हमने पिछले वैदिक काल वाले आर्टिकल में जाना था कि समाज इन कर्मकांड और आडंबरों से परेशान होकर बौद्ध धर्म को अपनाने लगे थे, वहीं अब क्योंकि यह सारी चीजें बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा में भी आने लग गई थी, इसलिए समाज को लगने लगा की हमारा पहले जो पुराना धर्म चलता आ रहा था वही ठीक था और इसलिए अब लोग अपने पुराने धर्म की ओर वापस लौटने लग गए थे।
यहाँ से बौद्ध धर्म के पतन की शुरुआत हो गई थी और वज्रयान को बौद्ध धर्म के पतन में सबसे ज्यादा और बड़ा कारण माना जाने लगा था।
बौद्ध साहित्य एवं धर्म ग्रन्थ
गौतम बुद्ध के द्वारा दिए गए विचारों और उपदेशों को संकलित किया गया और धर्म ग्रंथों या साहित्यों के रूप में उनकी रचना की गई, इन रचनाओं को त्रिपिटक कहा जाता है।
बौद्ध धर्म की तीन धार्मिक पुस्तकें – त्रिपिटक
बौद्ध धर्म की तीन धार्मिक पुस्तकें – यह त्रिपिटक तीन बौद्ध धर्म ग्रन्थ या साहित्य हैं और इनकी रचना पालि भाषा में हुई थी, जो कुछ इस प्रकार हैं:
सुत्तपिटक | इस धर्म ग्रन्थ की रचना प्रथम बौद्ध संगीति के दौरान की गई थी, इस धर्म ग्रन्थ में गौतम बुद्ध के दिए उपदेशों और विचारों को संकलित किया गया है, ताकि आने वाली पीढ़ी और समाज को बुद्ध के दिए ज्ञान समझाया जा सके। |
विनयपिटक | इस धर्म ग्रन्थ की रचना भी प्रथम बौद्ध संगीति के दौरान की गई थी, इस धर्म ग्रन्थ में बौद्ध धर्म में बने संघ जहां से बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया जाता था और वहां रहने वाले बौद्ध भिक्षुक और अनुयायियों को किन किन नियमों का पालन करना है उसको संकलित किया गया है। |
अभिधम्मपिटक | इस धर्म ग्रन्थ की रचना तृतीय बौद्ध संगीति के दौरान की गई थी, इस धर्म ग्रन्थ में गौतम बुद्ध के द्वारा उनके दार्शनिक विचारों को संकलित किया गया है जिसमे वे कहानियों के माध्यम से शिक्षा दे रहे हैं। |
जातक कथाएं
इन जातक कथाओं में गौतम बुद्ध और उनके पूर्व जन्मों से संबंधित जानकारी प्राप्त होती हैं, इन जातक कथाओं में बताया गया है कि अपने पिछले जन्मों में गौतम बुद्ध कैसे थे और कैसे वे दिखते थे।
जैसे की अजंता की गुफाओं में जो चित्रण मिलता है, उन्हीं चित्रणों को बुद्ध के जीवन के चित्रणों में जातक कथाओं में दर्शाया गया है।
बुद्धचरित, सौन्दरनन्द महाकाव्य, शारिपुत्र प्रकरण
बुद्धचरित, सौन्दरनन्द महाकाव्य और शारिपुत्र प्रकरण यह तीनों साहित्य गौतम बुद्ध और बौद्ध धर्म से संबंधित हैं जिनकी रचना अश्वघोष द्वारा की गई थी।
बुद्धचरित को बौद्धों का रामायण भी कहा जाता है।
मिलिन्दपन्हो
मिलिन्दपन्हो एक बौद्ध धर्म ग्रन्थ है और इसका रचना नागसेन द्वारा लगभग 100 ईसा पूर्व में की गई थी, इस ग्रंथ में भारत और यूनानी राजा मिलिन्द और बौद्ध भिक्षुक नागसेन की वार्तालाप को संकलित किया गया है।
राजा मिलिन्द यानी मिनांडर ने बौद्ध भिक्षुक नागसेन से बौद्ध धर्म और उससे जुड़े बहुत सारे प्रश्न पूछे, जिसका उत्तर नागसेन द्वारा दिया गया था और तब नागसेन ने मिलिन्दपन्हो की रचना की जिसका अर्थ है “मिलिन्द के प्रश्न”।
लाइट ऑफ़ एशिया ( Light of Asia )
गौतम बुद्ध को एशिया का प्रकाश के नाम से भी जाना जाता है और एक अंग्रेजी कवि एडविन अर्नाल्ड ( Edwin Arnold ) ने गौतम बुद्ध के ऊपर एक पुस्तक की रचना की जिसका नाम लाइट ऑफ़ एशिया ( Light of Asia ) था।
बौद्ध धर्म ( Baudh Dharm ) से जुड़े अन्य बिंदु
चैत्य | पूजा स्थल या पूजा घर को बौद्ध धर्म में चैत्य कहा जाता है। |
स्तूप | यह वह स्थल होते हैं जहाँ पर गौतम बुद्ध और बौद्ध धर्म से जुड़े अवशेष रखें जाते हैं, स्तूप को एक धार्मिक केंद्र के रूप में भी देख सकते हैं, परन्तु यहाँ मृत्यु के अवशेष रखे जाते हैं। |
विहार / मठ | यह बौद्ध भिक्षुओं का निवास स्थान होता था। |
गांधार कला | जैसे की हमने ऊपर चर्चा की थी कि महायान में गौतम बुद्ध की मूर्ति की पूजा होने लगी थी इसलिए भारत में बहुत सारी बुद्ध की मूर्तियां बनने लगी और ज्यादातर मूर्तियां गांधार शैली में बनने लगी इसलिए इस गांधार शैली को बौद्ध धर्म से जोड़कर देखा जाता है। |
हम आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दी गई जानकारी गौतम बुद्ध – baudh dharm – बौद्ध धर्म का इतिहास आपके लिए बहुत उपयोगी होगी और आप इससे बहुत लाभ उठाएंगे। हम आपके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं और आपका हर सपना सच हो।
धन्यवाद।
बार बार पूछे जाने वाले प्रश्न
गौतम बुद्ध का जन्म कब हुआ था?
गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व को लुम्बिनी वन में हुआ था।
गौतम बुद्ध के गुरु का नाम क्या था?
उन्हें अपने पहले गुरु मिले और जिनका नाम आलार कालाम था और उनसे उनकी भेंट वैशाली, बिहार में हुई थी, आलार कालाम सांख्य दर्शन से संबंधित थे और इनसे गौतम बुद्ध ने शिक्षा प्राप्त की थी, इसके बाद गौतम बुद्ध को उनके दूसरे गुरु मिले जिनका नाम रुद्रक रामपुत्र था और उनसे उनकी भेंट राजगृह, बिहार में हुई थी और इनसे भी बुद्ध ने शिक्षा प्राप्त की थी।
बौद्ध धर्म क्या है?
बौद्ध धर्म गौतम बुद्ध द्वारा स्थापित किया हुआ धर्म है, यह धर्म भारत की परंपरा से प्राप्त दर्शन और ज्ञान का समागम है।
बौद्ध धर्म के संस्थापक कौन थे?
बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे।
बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य क्या है?
1. दुःख
2. दुःख समुदाय
3. दुःख निरोध
4. दुःख निरोध मार्ग