धारी देवी मंदिर

धारी देवी मंदिर – पौराणिक कथा, स्थानांतरण, विशेषता 🛕

दोस्तों, आज हम उत्तराखंड में स्थित धारी देवी के संबंध में जानेंगे, धारी देवी मंदिर उत्तराखंड राज्य के जिला पौड़ी गढ़वाल के तहसील श्रीनगर गढ़वाल से 14-15 किलोमीटर दूरी पर दिल्ली-बद्रीनाथ मार्ग पर अलकंनंदा नदी के किनारे पर स्थित है, और दिल्ली से यह मंदिर करीब 350 – 360 किलोमीटर के आसपास स्थित है। 

धारी देवी माँ को उत्तराखंड के चारों धामों की रक्षक के रूप में जाना और पूजा जाता है। 

जैसे की हम सब जानते हैं की माँ सति के शरीर के टुकड़े जहाँ जहाँ धरती पर पड़े वह स्थल शक्तिपीठ के नाम से जाने गए और ऐसे 108 शक्तिपीठ है, जिनमें से एक शक्तिपीठ माँ धारी देवी के मंदिर को माना जाता है। 

माँ धारी देवी से जुड़ी पौराणिक कथा 

दोस्तों, धारी देवी उत्तराखंड के श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच अलकनंदा नदी पर स्थित एक अद्भुत मंदिर है, इस मंदिर का एक पौराणिक इतिहास है। 

कहां जाता है की माँ धारी देवी 7 भाइयों की इकलौती बहन थी। 

वे सारे भाई अपनी बहन को बहुत ही प्यार करते थे। उनके माता पिता का पहले ही देहांत हो गया था इसलिए बहन का लालन पालन उनके ही द्वारा हो रहा था, लेकिन उन लोगों के साथ एक घटना घटित हो गई। 

उनके पुरोहितों द्वारा बताया गया की उनकी बहन उनके लेकिन अशुभ है, जिसकी वजह से सारे भाई चिंतित हो उठे थे। वे लोग अपनी बहन से घृणा करने लगे क्योंकि उसका रूप भी सांवला था और ऊपर से पुरोहित की भविष्यवाणी ने भी उस बहन को मुसीबत में डाल दिया था। 

इसके कुछ समय बाद हुआ भी ऐसे ही उनके 5 भाईयों की मृत्यु हो गई जिस कारण उनके बचे हुए दोनों भाई को लगा की पुरोहित की भविष्यवाणी सत्य साबित हो रही है और भी ज्यादा चिंता में पड़ गए। उन्होंने सोचा की क्यों न बहन को ही मार दिया जाए ताकि उसका साया हमारे ऊपर से हट जाये।

उनके बचे हुए दोनों भाईयों ने अपनी बहन को मारने का निर्णय लिया और एक रात को सोती हुई बहन के शरीर के दो टुकड़े कर दिए, जिसमे उनकी पत्नियों ने भी अपने पतियों का साथ दिया।

दोनों भाईयों ने अपनी बहन के मृत शरीर के दोनों हिस्सों को नदी में बहा दिया।

इसके बाद बहन के शरीर का चेहरे का भाग बहकर अलकनंदा नदी में बहकर धारी गांव के समीप आ गया था और नीचे का भाग नदी में बह कर कालीमठ में आ गया था। 

अगली सुबह जब धारी गांव के एक धोबी को कन्या का सिर नदी में तैरता नजर आया तो उसने सोचा कोई कन्या नदी में डूब रही है वह यह दृश्य देख के घबरा गया और उसे नदी से निकालने के लिए आगे बढ़ा तो नदी का बहाव बहुत ज्यादा था, वह नदी के बहाव के कारण थोड़ा रुका और नदी के किनारे में ही रुक गया। 

परंतु तभी नदी से एक आवाज़ आयी की मुझे बचा लो, घबराओ मत तुम आगे बढ़ते हुए आओ, तुम्हे कुछ नहीं होगा और फिर उस व्यक्ति द्वारा हिम्मत करी जाती है और वह नदी में आगे बढ़ जाता है और जहाँ जहाँ वह अपना पाँव रखता है वहां वहां अपने आप सीढियाँ बनती चली गई थी। 

जब वह आदमी उस कन्या के सर तक पहुंचा और उस सर को छुआ तब उसने देखा की यह तो एक कटा हुआ सर है, जिससे वह व्यक्ति अत्यधिक घबरा जाता है, लेकिन तभी उस कटे हुए सर से एक आवाज़ आई की घबराओ नहीं मैं देवी रूप में हूँ और उस कटे हुए सर ने अपनी सारी घटना उस व्यक्ति को बता दी थी। 

उस कटे हुए सर ने उस व्यक्ति से कहा की मुझे नदी के किनारे ले जाकर किसी शुद्ध स्थान पर रख दो और तब उस व्यक्ति द्वारा ऐसा ही किया गया था। 

जैसे ही उस व्यक्ति के द्वारा सर को अलकनंदा नदी के किनारे पत्थर पर रखा गया, तभी उस कटे हुए सर ने अपना रूप एक पत्थर में परिवर्तित कर दिया था, और फिर वह सर माँ धारी देवी के नाम से प्रचलित हुआ था और इस प्रकार माँ धारी देवी की स्थापना उत्तराखंड के श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच अलकनंदा नदी के बीच में हुई थी। 

माँ धारी देवी मंदिर का स्थानांतरण ( 2013 )

2013 से पहले माँ धारी देवी का निवास स्थान अलकनंदा नदी के किनारे स्थित था परंतु, अलकनंदा उत्तराखंड डैम परियोजना के 330 मेगावाट डैम परियोजना के कारण अलकनंदा नदी में जलभराव के कारण माता के मूल स्थान को स्थानांतरित कर दिया गया और माता के मूल स्वरूप को उठाकर नदी के ऊपर बनाए गए भव्य मंदिर में स्थापित किया गया।

कहा जाता है की 2013 में उत्तराखंड केदार नाथ आपदा का मुख्य कारण माँ धारी देवी को उसके मूल स्थान से स्थानत्रित करने के कारण हुआ.था और यह भी कहा जाता है कि जब जब माता के स्थान के साथ कुछ भी छेड़ खानी कि जाती है तो इसी प्रकार कि आपदा का सामना करना पड़ता है। 

कहा जाता है कि एक मुग़ल शासक के द्वारा भी माता के मूल स्वरुप को हटाने का प्रयास किया गया था उस समय भी भगवान केदार को आपदा का सामना करना पड़ा था।

इससे पहले भी कुछ इसी प्रकार की घटना हुई थी, जिसमें हुआ यह था की 1882 में उस समय के एक स्थानीय राजा द्वारा धारी देवी के स्थान को हिलाने का प्रयास किया गया था, जिसके कारण उस समय भी केदारनाथ के स्थान में भूस्खलन जैसे स्थित हो गई थी। 

माँ धारी देवी से जुड़े कुछ अन्य बिंदु

1. माँ धारी देवी एक दिन में अपने तीन रूप में दिखती है, सुबह वह कन्या रूप में अपना दर्शन देती है, दोपहर में वह स्त्री रूप में अपना दर्शन देती हैं और शाम को वह वृद्ध रूप में अपना दर्शन देती है। 

2. स्थानीय लोग माँ धारी देवी को अपना आराध्य मानते हैं और जब भी किसी की शादी होती है तो नवविवाहित जोड़ा माता का आशीर्वाद लेने माता के दरबार में अवश्य जाता है। 

3. वर्तमान में धारी गांव के पाण्डेय माता के पुजारी के रूप में पूजा करते हैं। 

4. जैसे की हमने ऊपर चर्चा की थी की कन्या का नीचे का भाग बहकर कालीमठ में आ गया था और वहां माँ मैठाना के नाम से प्रसिद्ध हुआ है और काली के रूप में वहां इस भाग की पूजा की जाती है। 

5. नवरात्रों में तो यह मंदिर भारी भीड़ के साथ भरा रहता है और माता से श्रद्धालु यहाँ आशीर्वाद लेने आते हैं। 

6. धारी देवी मंदिर में माता का स्वरूप शांत स्वभाव में है और कालीमठ में माता का स्वरूप क्रोधित स्वभाव में है। 

वर्तमान में दूर दूर से श्रद्धालु आज माँ के दर्शनों हेतु यहाँ आते है, बद्रीनाथ-केदारनाथ जाने वाले तीर्थ यात्री एक बार अवश्य ही माँ के दर्शन के लिए जाते है।

जय धारी देवी माँ 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *