पाषाण युग – दोस्तों, आज से हम भारत के प्राचीन इतिहास के बारे में जानेंगे और समझेंगे की भारत के दृष्टिकोण से प्राचीन इतिहास कैसा था।
प्राचीन भारत के इतिहास की जानकारी हमें विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है और इन्हीं स्रोतों के आधार पर प्राचीन भारत के इतिहास को तीन भागों में बांटा गया है, वे तीन भाग कुछ इस प्रकार हैं:
1. प्रागैतिहासिक काल
2. आद्य ऐतिहासिक काल
3. ऐतिहासिक काल
प्रागैतिहासिक काल में हमें यह देखने को मिलता है की इस काल में बहुत काम या यूं कहें की न के बराबर लिखित स्रोत प्राप्त हुए हैं, इस काल के सिर्फ पुरातात्विक स्रोत ही प्राप्त हुए हैं, कोई लिखित स्रोत या साहित्यिक स्रोत प्राप्त नहीं हुए हैं, जैसे की पाषाण युग जिसके बारे में आज हम जानेंगे।
आद्य ऐतिहासिक काल में हमें यह देखने को मिलता है की इस काल में पुरातात्विक स्रोतों के साथ-साथ लिखित और साहित्यिक स्रोत भी प्राप्त हुए हैं, परंतु इस काल के लिखित या साहित्यिक स्त्रोतों को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है, जैसे की सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता, सिंधु घाटी सभ्यता के काल की प्राप्त हुई लिपियों को अभी तक नहीं पढ़ा जा सका है।
ऐतिहासिक काल में हमें यह देखने को मिलता है की इस काल में पुरातात्विक स्रोतों के साथ-साथ लिखित और साहित्यिक स्रोत भी प्राप्त हुए हैं और इस काल के प्राप्त हुए लिखित स्त्रोतों को पढ़ा जा चुका है, जैसे की वैदिक काल और उससे आगे जितने भी काल हैं जैसे बौद्ध धर्म , जैन धर्म , मौर्य काल, गुप्त काल आदि।
इस प्रकार प्राचीन भारत के इतिहास को तीन भागों में बांटा जाता है प्रागैतिहासिक काल, आद्य ऐतिहासिक काल और ऐतिहासिक काल।
दोस्तों, अब हम आज के हमारे विषय प्रागैतिहासिक काल / पाषाण काल के बारे में जानेंगे, आइये जानें।
प्रागैतिहासिक काल
सबसे पहले भारत में पाषाण काल का अध्ययन एक ब्रिटिश भूवैज्ञानिक और पुरातत्वविद् ( Geologist and Archaeologist ) जिनका नाम रॉबर्ट ब्रूस फुट था उन्होंने किया था, इनके द्वारा ही सबसे प्रथम प्राचीन भारत के विषय में खोज शुरू की गई थी।
अगर हम वैश्विक स्तर की बात करें तो 1820 में जोर्गेनसन थॉमसन ने प्रागैतिहासिक काल को तीन भागों में विभाजित किया था, और वे कुछ इस प्रकार हैं:
1. पाषाण काल ( Stone Age )
2. कांस्य युग ( Bronze Age )
3. लौह युग ( Iron Age )
इसको विभाजित कुछ इस प्रकार किया गया की जैसे किसी काल में मनुष्यों के द्वारा उनकी सुविधाओं और कार्य को आसान करने के लिए विभिन्न प्रकार की धातुओं का प्रयोग किया जाता था।
इस प्रकार जिस काल में मनुष्यों द्वारा अपनी सुविधाओं और कार्य करने के लिए पत्थरों का उपयोग किया गया उसे पाषाण युग ( Stone Age ) कहा गया।
जिस काल में मनुष्यों द्वारा अपनी सुविधाओं और कार्य करने के लिए कांस्य धातु का प्रयोग किया गया उसे कांस्य युग ( Bronze Age ) कहा गया, इसके उदाहरण के हम सिंधु घाटी सभ्यता को देख सकते हैं, जिसे हम कांस्य युगीन सभ्यता के रूप में जानते हैं।
जिस काल में मनुष्यों द्वारा अपनी सुविधाओं और कार्य करने के लिए लौह धातु का प्रयोग किया गया उसे लौह युग ( Iron Age ) कहा गया, और उत्तर वैदिक काल के बाद से भारत में लौह युग की शुरुआत मानी जाती है।
भारत में जो पुरातात्विक विभाग है उसके जनक अलेक्जेंडर कनिंघम को माना जाता है, जो एक ब्रिटिश इंजीनियर थे जिन्होंने बाद में भारत के इतिहास और पुरातत्व में रुचि दिखाई थी।
पाषाण काल
पाषाण काल को भी उस समय के मनुष्यों के रहन-सहन के तौर-तरीके, अस्त्र-शस्त्र बनाने की कला और विभिन्न घटनाओं के आधार पर तीन भागों में बांटा जाता है।
1. पुरापाषाण काल
2. मध्य पाषाण काल
3. नवपाषाण काल
काल का आधार | पुरापाषाण काल | मध्य पाषाण काल | नवपाषाण काल |
काल | 25 लाख ईसा पूर्व से लेकर 10000 ईसा पूर्व | 10000 ईसा पूर्व से लेकर 4000 ईसा पूर्व | 10000 ईसा पूर्व से लेकर 1000 ईसा पूर्व |
चरण | 1. पूर्व पुरापाषाण काल 2. मध्य पुरापाषाण काल 3. उच्च पुरापाषाण काल | – | – |
लक्षण | आखेटक ( शिकारी ) और खाद्य संग्राहक | आखेटक ( शिकारी ) और खाद्य संग्राहक, पशुपालन की भी शुरुआत | कृषि व्यवस्था की खोज, पशुपालन को एक व्यवस्थित रूप, समाज का स्थायी निवास प्रारंभ |
औजार | क़्वार्टजाइट, शल्क और ब्लेड के हथियार | सूक्ष्म पत्थर और माइक्रोलिथ पत्थरों के हथियार | स्लेट के पत्थरों के हथियार |
महत्वपूर्ण स्थल | 1. अतिरम्पक्कम ( तमिलनाडु ) 2. हथनोरा ( मध्य प्रदेश ) 3. भीमबेटका, मध्य प्रदेश 4. मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश | 1. चोपनी मांडो, उत्तर प्रदेश 2. सराय नाहर राय, उत्तर प्रदेश 3. बागोर, राजस्थान | 1. बुर्जहोम, कश्मीर 2. गुफकराल, कश्मीर 3. चिरांद, बिहार 4. कोल्डिहवा, उत्तर प्रदेश 5. मेहरगढ़, बलूचिस्तान |
खोज | आग की खोज | आग का व्यावहारिक उपयोग | पहिये की खोज, कृषि की खोज, विधवत पशुपालन, समाज का निर्माण |
पुरापाषाण काल
पुरापाषाण काल का समय 25 लाख ईसा पूर्व से लेकर 10000 ईसा पूर्व तक का माना जाता है, जिसमें इस काल का विकास हुआ था।
यह काल वह काल था जिसमें मनुष्य ने सबसे लंबी अवधि तक समय बिताया और विकास की ओर आगे बढ़ा था, जिसके परिणामस्वरूप इसको भी तीन काल की अवधि में बांटा जाता है:
1. पूर्व पुरापाषाण काल
2. मध्य पुरापाषाण काल
3. उच्च पुरापाषाण काल
इन तीनों चरणों को उस समय में मनुष्यों के द्वारा उपयोग हो रहे पत्थरों और पठारों के हथियारों के आधार पर बांटा गया है।
पुरापाषाण काल में मनुष्य एक आदिमानव के समान अपना जीवन व्यतीत करते थे, जंगलों में रहकर शिकार करना जिसको आखेट भी कहते हैं, यही उस काल के मनुष्यों का मुख्य कार्य या पेशा था।
इसके साथ-साथ इस काल में लोग शिकार के साथ-साथ खाद्य संग्राहक की भूमिका को भी निभाते थे, जिसका अर्थ यह है की अपने भोजन हेतु एक स्थान से दूसरे स्थान में भटकते रहना, उदाहरण के लिए आप यह समझ सकते हैं की यदि किसी एक जंगल में रहते हुए शिकार करते-करते वहां जानवर ख़त्म होने की कगार पर पहुँच जाएँ तो फिर एक नए स्थान की खोज करना जहाँ शिकार पर्याप्त मात्रा में हो।
इस प्रकार इस काल में मनुष्य ने एक आखेटक ( शिकारी ) और खाद्य संग्राहक की भूमिका निभाई थी और इसके साथ इस काल में मनुष्यों को कृषि और पशुपालन की कोई जानकारी नहीं थी।
इस काल में मनुष्यों द्वारा बड़े पत्थरों को हथियार बनाने में प्रयोग किया गया और क़्वार्टजाइट, शल्क और ब्लेड के हथियारों का प्रयोग मानव द्वारा किया गया था।
भारत के वह मुख्य स्थल जहाँ से पुरापाषाण काल के पुरातात्विक स्रोत प्राप्त हुए हैं वह कुछ इस प्रकार हैं:
1. अतिरम्पक्कम ( तमिलनाडु )
2. हथनोरा ( मध्य प्रदेश )
इन क्षेत्रों से मानव की खोपड़ी के प्रथम प्रमाण या साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
भीमबेटका, यह स्थान नर्मदा घाटी, मध्य प्रदेश में स्थित है और यहाँ से प्राचीनतम चित्रकारियां प्राप्त हुई हैं और उसके साक्ष्य एवं प्रमाण मिले हैं और यह चित्रकारियां सिर्फ पुरापाषाण काल से ही नहीं बल्कि मध्य पाषाण काल और नवपाषाण काल से भी संबंधित हैं।
मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश से तीनों काल के अर्थात पुरापाषाण काल, मध्य पाषाण काल और नवपाषाण काल के औजार प्राप्त हुए हैं।
पुरापाषाण काल में मनुष्य द्वारा प्रथम आग की खोज की गई थी, लेकिन इस काल में लोगों को आग का सही उपयोग करना नहीं आया था।
मध्य पाषाण काल
मध्य पाषाण काल का समय 10000 ईसा पूर्व से लेकर 4000 ईसा पूर्व तक का माना जाता है, जिसमें इस काल का विकास हुआ था।
इस काल में मनुष्यों द्वारा आखेटक ( शिकारी ) और खाद्य संग्राहक की भूमिका के साथ साथ पशुपालन की भी शुरुआत कर दी थी और पहले पालतू पशु के रूप में मनुष्य ने कुत्ते से पशुपालन की शुरुआत करी थी, क्योंकि कुत्ते शिकार के साथ-साथ सुरक्षा की दृष्टि से भी उपयोगी पशु था।
इस प्रकार व्यावहारिक रूप से पशुपालन की शुरुआत मध्य पाषाण काल में देखने को मिलती है।
इस काल में मनुष्यों ने सूक्ष्म पत्थरों को हथियार बनाने में इस्तेमाल किया और माइक्रोलिथ पत्थरों का हथियारों में प्रयोग किया गया था।
भारत के वह मुख्य स्थल जहाँ से मध्य पाषाण काल के पुरातात्विक स्रोत प्राप्त हुए हैं उनमें से अधिकांश स्थल उत्तर प्रदेश से प्राप्त हुए हैं, वह कुछ इस प्रकार हैं:
चोपनी मांडो, उत्तर प्रदेश से सबसे प्राचीनतम मृदभांड प्राप्त हुए हैं, दोस्तों मृदभांड का अर्थ मिट्टी के बर्तनों से होता है।
सराय नाहर राय, उत्तर प्रदेश यहाँ से मध्य पाषाण कालीन विशेष स्थल प्राप्त हुए हैं।
बागोर, यह स्थान राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित है और आदमगढ़, मध्य प्रदेश, इन क्षेत्रों से सर्वप्रथम पशुपालन के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
मध्य पाषाण काल में आग के व्यावहारिक उपयोग की शुरुआत हुई थी।
नवपाषाण काल का समय 10000 ईसा पूर्व से लेकर 1000 ईसा पूर्व तक का माना जाता है, जिसमें इस काल का विकास हुआ था।
मध्य पाषाण काल और नवपाषाण काल के समय में थोड़ी समानताएं इसलिए हैं क्यूंकि यह दोनों ही काल एक साथ ही विकास की ओर बढ़ रहे थे, क्यूंकि कुछ क्षेत्रों में मनुष्यों ने ज्यादा जल्दी विकास की गति को प्राप्त कर लिया था जबकि कुछ क्षेत्रों में मनुष्य अभी भी धीमी गति से ही विकास की ओर आगे बढ़ रहे थे।
इस प्रकार मध्य पाषाण काल और नवपाषाण काल एक तरह का संक्रमण काल था जिसे समय के आधार पर पूरी तरह से नहीं बांटा जा सकता है, इसके साथ-साथ नवपाषाण काल का समय कुछ जगहों पर आपको 4000 इसा पूर्व से लेकर 1000 इसा पूर्व भी देखने को मिल सकता है, तो आप उसे भी याद कर सकते हैं।
इस काल में मनुष्यों द्वारा कृषि व्यवस्था की खोज की गई, पशुपालन को एक व्यवस्थित रूप दिया गया, इसके साथ अब मनुष्य एक जगह व्यवस्थित रूप से बसने लग गया था क्यूंकि अब वह कृषि करने लग गया था और कृषि को बचाने हेतु एक जगह पर रहना अनिवार्य हो गया था और समाज का स्थायी निवास प्रारंभ हो गया था।
इस काल में स्लेट के पत्थरों को हथियार के रूप में प्रयोग किया गया था और इसके साथ-साथ 10000 इसा पूर्व के आसपास ही आधुनिक मनुष्य या ज्ञानी मनुष्य ( Homosapien ) बनने की शुरुआत हो गई थी।
भारत के वह मुख्य स्थल जहाँ से नवपाषाण काल के पुरातात्विक स्रोत प्राप्त हुए हैं वह कुछ इस प्रकार हैं:
बुर्जहोम, कश्मीर यहाँ से मनुष्यों के गर्तवास अर्थात गड्ढ़ो में रहने के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं और इसके साथ-साथ यहाँ से ऐसे प्रमाण या साक्ष्य प्राप्त हुए हैं जिसमें यह पता चलता है की इस स्थान में इंसानों के साथ कुत्तों को भी दफनाया जाता था।
गुफकराल, कश्मीर यहाँ से नवपाषाण कालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं।
चिरांद, यह स्थान बिहार के सारण जिले में स्थित है, यहाँ से नवपाषाण कालीन मृदभांड और औजार प्राप्त हुए हैं।
कोल्डिहवा, उत्तर प्रदेश से चावल के प्रथम साक्ष्य प्राप्त हुए हैं और मेहरगढ़, बलूचिस्तान से कृषि के प्रथम साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
नवपाषाण काल में कृषि की खोज, विधवत पशुपालन, समाज का निर्माण और सबसे बड़ी समाज को गति देने वाली पहिये की खोज मनुष्यों द्वारा की गई थी।
पाषाण युग से जुड़े अन्य बिंदु
1. मनुष्यों द्वारा हथियार के रूप में कुल्हाड़ी का सबसे पहले प्रयोग किया गया था
2. मनुष्यों द्वारा तांबे को सबसे पहले धातु के रूप में प्रयोग किया गया था
3. मनुष्यों द्वारा कुत्ते को सबसे पहले पशु के रूप में पशुपालन किया गया था
पाषाण युग – Stone Age in India
हम आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दी गई पाषाण युग – Stone Age in India के बारे में जानकारी आपके लिए बहुत उपयोगी होगी और आप इससे बहुत लाभ उठाएंगे। हम आपके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं और आपका हर सपना सच हो।
धन्यवाद।
प्रागैतिहासिक से क्या अभिप्राय है?
प्रागैतिहासिक काल में हमें यह देखने को मिलता है की इस काल में बहुत काम या यूं कहें की न के बराबर लिखित स्रोत प्राप्त हुए हैं, इस काल के सिर्फ पुरातात्विक स्रोत ही प्राप्त हुए हैं, कोई लिखित स्रोत या साहित्यिक स्रोत प्राप्त नहीं हुए हैं, जैसे की पाषाण युग
प्रागैतिहासिक काल के कितने काल है?
पाषाण काल को भी उस समय के मनुष्यों के रहन-सहन के तौर-तरीके, अस्त्र-शस्त्र बनाने की कला और विभिन्न घटनाओं के आधार पर तीन भागों में बांटा जाता है।
1. पुरापाषाण काल
2. मध्य पाषाण काल
3. नवपाषाण काल
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