भारतीय संविधान की विशेषताएं – भारतीय संविधान दुनिया के खूबसूरत दस्तावेजो में से एक दस्तावेज है, इसकी बहुत सारी विशेषताएं व खूबियां है जो इसे दुनिया के संविधानों से अलग और मजबूत बनाती है, और इसी की वजह से भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश भी है।
भारतीय संविधान की विशेषताएं:
भारतीय संविधान की विशेषताएं |
1. सबसे बड़ा लिखित संविधान |
2. निर्मित संविधान |
3. आन्तरिक एव बाह्य स्त्रोत |
4. राज्यो का संघ |
5. नम्यता और अनम्यता का मिश्रण |
6. एकल नागरिकता |
7. मौलिक अधिकार |
8. राज्य के नीति निर्देशक तत्व |
9. मौलिक कर्त्तव्य |
10. सार्वभौमिक मताधिकार |
11. स्वतंत्र निष्पक्ष न्यायपालिका |
12. संसदीय शाशन प्राणाली |
13. त्रिस्तरीय शाशन |
14. पंथ निरपेक्ष राज्य |
भारतीय संविधान की विशेषताएं
सबसे बड़ा लिखित संविधान
भारतीय संविधान की विशेषता – भारतीय संविधान दुनिया में जितने भी संविधान है उनमें सबसे बड़ा लिखित संविधान है।
जब संविधान सभा द्वारा संविधान निर्मित हुआ और 26 नवम्बर 1949 को ये संविधान अंगीकृत व आंशिक रूप से लागू करा गया और इसके 2 महीने बाद इसे पूर्ण रूप से लागू किया गया तब इसमें 395 अनुछेद, 8 अनुसूचियाँ और 22 भाग थे।
परन्तु इसमें कई बार शंशोधन होने के कारण इसकी संख्या बढ़ती गयी और वर्तमान में इसमें 470 अनुछेद, 25 भाग और 12 अनुसूचियाँ हो चुकी है इन कारणों की वजह से ये सबसे बड़ा और लिखित संविधान है।
निर्मित संविधान
1946 में कैबिनेट मिशन भारत आने के बाद संविधान सभा का गठन हुआ और उसमे 389 सदस्यों का चयन हुआ जिसमें ब्रिटिश प्रान्त, देसी रियासतों और चीफ कमिशनरी से सदस्य चुने गए थे जिनकी संख्या आपको नीचे दिए हुए चित्र में बतायी गयी है।

और जो 4 सदस्य चीफ कमिशनरी से चुने गए थे वो चार चीफ कमिशनरी कुछ इस प्रकार है:
- कुर्ग (कर्णाटक)
- बलूचिस्तान
- अजमेर, मेवाड़
- दिल्ली
आन्तरिक एव बाह्य स्त्रोत
भारतीय संविधान में बहुत सी अच्छी अच्छी चीजे दूसरे स्त्रोतों से ली गयी है और इनमें आन्तरिक एव बाह्य स्त्रोत दोनों सम्मलित है।
जब ब्रिटिश शाशन भारत पर राज कर रहा था तब बहुत सारे अधिनियम पारित किये गए थे जिससे भारत की शाशन व्यवस्था को चलाया जाता था और इन्ही अधिनियमो से ली गयी चीजों को ही आंतरिक स्रोत कहा जाता है।
मुख्यतः भारत अधिनियम 1935 से बहुत सारी चीजे भारत के संविधान में जोड़ी गयी है जैसे, न्यायपालिका के सम्बन्ध में और आपात के सम्बन्ध में, यही नहीं ये अधिनियम भारतीय संविधान का सबसे बड़ा स्त्रोत भी है इसी से सबसे ज्यादा चीजें भारत के संविधान में जोड़ी गयी है।
इन स्रोतों में बहुत सारे देशों से भारतीय संविधान में बहुत सारी अलग अलग चीजें जोड़ी गयी है, और इन स्रोतों की सूची कुछ इस प्रकार है:
- भारत शाशन अधिनियम 1935
- ब्रिटेन
- संयुक्त राज्य अमेरिका
- कनाडा
- आयरलैंड
- दक्षिण अफ्रीका
- फ्रांस
- ऑस्ट्रेलिया
- जर्मनी
- जापान
- रूस
हमने इन स्त्रोतों को विस्तार से हमारे अगले आर्टिकल में बताया है।
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राज्यो का संघ
भारतीय संविधान में इसका उल्लेख हमे अनुछेद संख्या 1 में मिलता है इसका तात्पर्य ये है कि भारत विभिन्न राज्यों का एक संघ है और भारत विभिन्न राज्यों में समझौते का परिणाम नहीं है और भारत से किसी भी राज्य को अलग नहीं किया जा सकता। भारत एक ऐसा अनश्वर संघ है जो कभी मिट नहीं सकता और इसकी किसी भी इकाई को भारत से अलग होने का अधिकार नहीं है।
नम्यता और अनम्यता का मिश्रण
इसका सरल भाषा में तात्पर्य ये है की भारत का संविधान लचीला और साथ ही साथ कठोर भी है। लचीला और कठोर को हम इस तरह से समझ सकते है जैसे कि संविधान के प्रावधानों को बदलने, जब किसी संविधान को बहुत ही आसानी से बदल दिया जाए उसे हम लचीला संविधान कह सकते है।
जब किसी संविधान को बदलना बहुत ही कठिन हो उसे हम कठोर संविधान कह सकते है, लेकिन भारत का संविधान लचीला और कठोर दोनों ही तरह का संविधान है, जैसे यदि संसद में किसी प्रावधान को बदलने के लिए 2/3 बहुमत मिल जाए तो वह प्रावधान बदला जा सकता है।
यह व्यवस्था संविधान के लचीलेपन को दर्शाता है लेकिन संसद में 2/3 बहुमत के साथ साथ कुछ प्रावधानों में आधे राज्यों की अनुमति भी चाहिए होती है, यह व्यवस्था इसके कठोर रूप को दर्शाता है।
अनुछेद 368 में संविधान संशोधन का उल्लेख किया गया है, जो कुछ इस प्रकार है:
1. इसमें संविधान संशोधन के तरीकों का उल्लेख किया गया है, इसमें उल्लेख है कि संविधान का संशोधन 2 तरीको से हो सकता है।
2. संविधान संशोधन की शक्ति सिर्फ संसद के पास है।
3. संविधान संशोधनों के विधेयकों ( बिल ) के ऊपर राष्ट्रपति अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल नहीं कर सकते, राष्ट्रपति को संविधान संशोधनों को स्वीकृति देनी ही होती है परन्तु ये मूल संविधान में लिखा हुआ नहीं था, 24वे संविधान संशोधन 1971 में ये प्रावधान जुड़ा था कि राष्ट्रपति को अनिवार्य रूप से संविधान संशोधनों के विधेयकों ( बिल )को स्वीकृति देनी होगी।
कुछ प्रावधानों को बदलने के लिए सिर्फ संसद के सामन्य बहुमत की ही जरूरत होती है जो संविधान के लचीलेपन को दर्शाता है, ये कुछ इस प्रकार है:
- किसी भी बाहरी प्रदेश को भारत की राज्य सीमा में शामिल करना।
- किसी नए राज्य का गठन करना।
- किसी राज्य की सीमा में परिवर्तन करना।
- किसी राज्य के नाम में परिवर्तन करना।
- किसी राज्य में विधान परिषद का गठन करना।
- किसी राज्य में विधान परिषद को समाप्त करना।
- किसी भी केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन में कोई बदलाव करना।
कुछ प्रावधानों को बदलने के लिए संसद के बहुमत के साथ साथ आधे राज्यों की जरुरत होती है, जो संविधान के कठोर रूप को दर्शाता है, ये कुछ इस प्रकार है:
- भारत के राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल में संशोधन करना।
- भारत के राष्ट्रपति के निर्वाचक विधि में संशोधन करना।
- केंद्र और राज्य सरकार की कार्यपालिका शक्ति में संशोधन करना।
- सर्वोच्च ( supreme ) और उच्च ( high ) न्यायालय की शक्तियों, उनकी चयन प्रक्रिया, उनकी योग्यता, उनकी न्याय प्रक्रिया में संशोधन करना।
- भारतीय संविधान की 7वी अनुसूची जो केंद्र और राज्यों के विषयों का बटवारा करती है, उसमे संशोधन करना।
- अनुछेद 368 का संशोधन करना।
इन दोनों प्रकार के गुणो के वजह से भारतीय संविधान को नम्यता और अनम्यता का मिश्रण अथवा लचीला और कठोर कहा जाता है।
एकल नागरिकता
एकल नागरिकता का प्रावधान भारत के संविधान में ब्रिटेन से लिया गया है इसका तात्पर्य यह है की भारत में रहने वाला हर व्यक्ति भारत का ही नागरिक होगा वह किसी राज्य का नागरिक नहीं होगा, जैसे अगर अमेरिका की बात करे तो वहां दोहरी नागरिकता है।
इसका तात्पर्य है की वहां राज्य स्तर पर अलग और देश स्तर पर अलग नागरिकता का प्रावधान है परन्तु भारत में एकल नागरिकता का प्रावधान है और भारतीय संविधान के भाग 2 में इसका उल्लेख मिलता है।
मौलिक अधिकार
भारत में हर एक नागरिक को कुछ मौलिक अधिकार दिए जाते है, जो उससे कोई नहीं छीन सकता है, ये प्रावधान भारतीय संविधान में अमेरिका से लिया गया है। मूल संविधान में सबसे पहले, 7 मौलिक अधिकार भारतीय नागरिक को दिए जाते थे परन्तु 44वे संविधान संशोधन 1978 के बाद इनमें से एक मौलिक अधिकार यानि संपत्ति का अधिकार हटा दिया गया और इसे कानूनी अधिकार के दायरे में डाल दिया गया।
उस समय मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री थे, अब वर्तमान में भारतीय नागरिक को 6 मौलिक अधिकार दिए जाते है, और भारतीय संविधान के भाग 3 में इसका उल्लेख है और ये कुछ इस प्रकार है:
- समानता या अधिकार
- स्वतंत्रता का अधिकार
- शोषण के खिलाफ अधिकार
- धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
- सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार
- संवैधानिक उपचार का अधिकार
राज्य के नीति निर्देशक तत्व
भारतीय संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्व आयरलैंड से लिए गए है और इसका तात्पर्य ये है की संविधान में केंद्र और राज्य सरकार दोनों को ही निर्देश दिए गए है की जनता के सम्बन्ध में कुछ भी बनाना हो या कोई विधि बनाना हो तो इन सब चीजों को करने में संविधान में दिए गए नीति निर्देशक तत्वों को ध्यान में रखा जाए।
इनके अंतर्गत ही कोई कार्य किया जाए और अनुछेद 36 से लेकर अनुछेद 51 तक इनका उल्लेख भारतीय संविधान में मिलता है।
मौलिक कर्त्तव्य
मूल संविधान में मौलिक कर्तव्य का प्रावधान नहीं था, इन्हे 42वे संविधान संशोधन 1976 में स्वर्ण सिंह समिति की अनुशंसा पर संविधान में शामिल किये गए और वर्तमान में 11 मौलिक कर्तव्य भारतीय संविधान में शामिल है जिन्हें भारत के हर एक नागरिक को इनका पालन करना चाहिए।
सार्वभौमिक मताधिकार
सार्वभौमिक मताधिकार भारतीय संविधान की बहुत महत्वपूर्ण विशेषता है इसका तात्पर्य ये है की भारत के सभी नागरिको जो 18 वर्ष की आयु या उससे ऊपर है उन्हें मत देने का अधिकार है और सबके पास एक मत मूल्य प्राप्त है और सब मत दे सकते है, फिर चाहे वो व्यक्ति किसी भी धर्म , जाति का क्यों न हो।
प्रारम्भ में मत देने की न्यूनतम आयु 21 वर्ष थी, परन्तु बाद में भारतीय संविधान में संशोधन हुआ और 61वे संविधान संशोधन के द्वारा मत देने की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गयी।
स्वतंत्र निष्पक्ष न्यायपालिका
भारतीय संविधान में स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका का प्रावधान अमेरिका से लिया गया है और इसका तात्पर्य यह है कि न्यापालिका एक स्वंतंत्र इकाई के रूप में कार्य करेगी वो किसी के अधीन नहीं होती है, न ही वो संसद के अधीन होती है, और कार्यपालिका और विधायिका दोनों को सजक बनाने का काम भी न्यायपालिका ही करती है।
न्यायिक सक्रियता, न्यायपालिका के स्वंतंत्रता और निष्पक्षता को प्रदर्शित करने का प्रयास करती है, इसका उल्लेख हमे अनुछेद संख्या 214 में देखने को मिलता है।
भारत में एकीकृत न्यायपालिका है, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को अगर हटाना हो तो दोनों कार्य संसद ही करती है, और दोनों न्यायालयों के न्यायाधीशों का चयन करना हो तो दोनों कार्य राष्ट्रपति करते है।
स्वंतंत्र निष्पक्ष न्यायपालिका के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु
1. न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया में सरकार की कोई भूमिका नहीं होती चाहे वो सर्वोच्च न्यायालय हो या उच्च न्यायालय।
2. न्यायाधीशों के चयन के बाद उनके वेतन में कोई नकारात्मक परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
3. न्यायाधीशों को हटाने में कार्यपालिका की कोई भूमिका नहीं होती, न्यायाधीशों को संसद के द्वारा ही हटाया जा सकता है, इसका उल्लेख हमें भारतीय संविधान के अनुच्छेद संख्या 124 और 217 में मिलता है।
4. न्यायाधीशों के कार्यकाल पूरा हो जाने के बाद केंद्र सरकार या किसी भी राज्य सरकार के अधीन उनको कोई लाभ का पद नहीं दिया जाएगा।
5. संसद में न्यायाधीशों के आचरण के ऊपर कोई चर्चा नहीं हो सकती, उनके किसी भी निर्णय पर किसी भी प्रकार की चर्चा नहीं की जा सकती, और इसका उल्लेख हमें संविधान के अनुच्छेद संख्या 121 में मिलता है।
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संसदीय शाशन प्राणाली
ये एक प्रमुख विशेषता है, भारत में संसद शाशन प्राणाली की व्यवस्था है, यहाँ संसद है जो विधेयको का निर्माण करती है और संसद के माध्यम से ही देश की संचालन व्यवस्था को संचालित किया जाता है और ये व्यवस्था भारतीय संविधान में ब्रिटेन से ली गयी है. संसद के तीन भाग होते है लोक सभा , राज्य सभा , और राष्ट्रपति।

13. त्रिस्तरीय शाशन
ये एक महत्वपूर्ण शाशन व्यवस्था है, भारत में त्रिस्तरीय शाशन व्यवस्था है, विश्व के परिसंघ में दो स्तर की शाशन व्यवस्था है देश स्तर पर और राज्य स्तर पर, परन्तु दुनिया का भारत इकलौता ऐसा देश है जहां पर त्रिस्तरीय शाशन व्यवस्था है। त्रिस्तरीय शाशन व्यवस्था में देश स्तर, राज्य स्तर, और स्थानीय शाशन व्यवस्था जिसे हम पंचायती राज व्यवस्था कहते है होती है।
पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा भी प्राप्त है, इस व्यवस्था को 73वे और 74वे संविधान संशोधन द्वारा भारतीय संविधान में जोड़ा गया था।

14. पंथ निरपेक्ष राज्य
मूल संविधान में ये शब्द नहीं था, भारतीय संविधान में पंथ निरपेक्षता को प्रस्तावना में 42वे संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया था, इसका तात्पर्य ये है की भारत का कोई धर्म नहीं होगा, भारत में रहने वाले नागरिक कोई भी धर्म मान सकते है लेकिन भारत का कोई भी धर्म नहीं होगा, देश किसी भी धर्म को बढ़ावा नहीं देगा क्यूंकि देश का कोई धर्म नहीं है।
अनुछेद संख्या 25, 26, 27, 28 में हमे देखने को मिलता है की भारत के नागरिकों को कोई भी धर्म मानने की स्वतंत्रता प्राप्त है।
भारतीय संविधान के सामाजिक न्याय
1. अनुछेद 330 – लोक सभा में SC/ST का आरक्षण।
2. अनुछेद 332 – विधान सभा में SC/ST का आरक्षण।
3. अनुछेद 334 – जब मूल संविधान लागू हुआ था तब ये अनुछेद कहता था की ये SC/ST का आरक्षण 10 वर्ष के लिए रहेगा पर अभी भी इसमें हर दस वर्ष के बाद इसमें संशोधन करके इसको दस वर्ष के लिए बढ़ा दिया जाता है।
4. अनुछेद 338 – अनुसूचित जातियों की समस्याओं के समाधान के लिए NCSC (National Commission for Schedule caste) की स्थापना।
5. अनुछेद 338A – अनुसूचित जनजातियों की समस्याओं के समाधान के लिए NCST (National Commission for Schedule Tribe ) की स्थापना।
6. अनुछेद 338B – पिछड़े वर्गों की समस्याओं के समाधान के लिए NCBC ( national commission for backward classes ) की स्थापना।
7. अनुछेद 341 और 342 – राष्ट्रपति का अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए कार्य करना ।
भारतीय संविधान की विशेषताएं
हम आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दी गई भारतीय संविधान की विशेषताएं के बारे में जानकारी आपके लिए बहुत उपयोगी होगी और आप इससे बहुत लाभ उठाएंगे। हम आपके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं और आपका हर सपना सच हो।
धन्यवाद।
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