मगध साम्राज्य का उत्कर्ष

मगध साम्राज्य का उत्कर्ष – उदय, राजवंश, विस्तार 👑

मगध साम्राज्य का उत्कर्ष – दोस्तों, आज हम मगध साम्राज्य और उसके उत्कर्ष के संबंध में चर्चा करेंगे, जैसे की हमने हमारे वैदिक काल और महाजनपद वाले आर्टिकल में जाना था की उत्तर वैदिक काल के अंत तक समाज में बहुत बदलाव आ गए थे। 

समाज में आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक स्तर में वृद्धि होती है और बहुत सारे अलग-अलग जनपद मिलकर एक महाजनपद का निर्माण करते हैं। 

इस प्रकार 16 महाजनपदों का निर्माण होता है और इसके साथ-साथ हमने बौद्ध धर्म और जैन धर्म वाले आर्टिकल में भी यह जाना था की इन 16 महाजनपदों की जानकारी हमें बौद्ध धर्म ग्रंथ के अंगुत्तरनिकाय में और जैन धर्म ग्रंथ के भगवती सूत्र में भी प्राप्त होती है। 

इन सारे महाजनपदों में एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ भी लगी हुई थी और इनके बीच में राजनीतिक संघर्ष और अपनी सीमाओं को फैलाने जैसे बिंदुओं पर संघर्ष होता रहता था। 

इन्हीं 16 महाजनपदों में से एक मगध महाजनपद था और मगध महाजनपद को बाकी महाजनपदों की तुलना में सबसे ज्यादा प्रगति मिली, जिसके उत्कर्ष के संबंध में आज हम चर्चा करेंगे। 

मगध साम्राज्य का उत्कर्ष 

16 महाजनपदों में से मगध सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली महाजनपद था, और इसके प्राचीन काल में इसकी स्थापना बृहद्रथ द्वारा की गई थी। 

मगध के उदय के कारण 

जैसे की हमने ऊपर जाना की मगध सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली महाजनपद के रूप में स्थापित हुआ था, परंतु मगध के उदय में बहुत से कारण थे, जो कुछ इस प्रकार हैं:

1. आर्थिक 

2. भौगोलिक

3. राजनीतिक 

आर्थिक  

किसी भी क्षेत्र का उसकी प्रगति के लिए आर्थिक दृष्टि से मजबूत होना बहुत जरूरी होता है और मगध भी उसके आर्थिक दृष्टि से मजबूत हो रहा था क्योंकि मगध में अधिशेष उत्पादन होता था। 

अधिशेष से तात्पर्य यह है की जब किसी क्षेत्र ने जो भी उत्पादन किया है, जब वह उत्पादन उस क्षेत्र की आव्यशकता को पूर्ण करने के बाद भी बच जाए, तो उस बचे हुए उत्पादित सामग्री को अधिशेष कहा जाता है। 

इस अधिशेष अर्थात आवश्यकता के पूर्ण हो जाने के बाद बची हुई सामग्री को बेच कर धन कमाया जा सकता है और मगध में अधिशेष के उत्पादन से उसकी आर्थिक स्तिथि मजबूत होती गई क्यूंकि मगध का क्षेत्र बहुत सारी नदियों के बीच था इसलिए वहां की मिट्टी भी जलोढ़ और उपजाऊ थी, जिससे कृषि को बहुत सहायता मिलती थी और अच्छा अधिशेष उत्पादन किया जा सकता था। 

राजनीतिक  

मगध की राजनीतिक स्थिति भी बहुत मजबूत थी और क्योंकि मगध में जितने भी राजवंशों ने शासन किया उसमें अनेक महान राजा थे, जो बहुत ही शक्तिशाली और प्रभावी थे और राजनीतिक स्थिति को मजबूत रहने के लिए किसी भी क्षेत्र के सबसे बड़े पद फिर चाहे वह लोकतंत्र हो या फिर राजतंत्र का हो उसका मजबूत होना बहुत जरूरी है।

मगध में शासन कर रहे राजाओं द्वारा अच्छा प्रशासनिक ढांचा बनाया गया और अच्छी प्रशासनिक व्यवस्था लागू की गई जिसके फलस्वरूप मगध का राजनीतिक स्तर में भी बहुत विकास हुआ था। 

भौगोलिक

मगध के भौगोलिक कारणों ने भी इसकी प्रगति में बहुत सहयोग किया था क्यूंकि मगध की प्रारंभिक राजधानी जो राजगृह थी वह पर्वतों से घिरी हुई थी और बाद में जब इसकी राजधानी पाटलिपुत्र बनी तो वह नदियों जैसे गंगा, सोन और गंडक जैसी नदियों से घिरी हुई थी। 

ऐसे प्राकृतिक साधनों के कारण मगध को उसके शत्रुओं से एक सुरक्षित क्षेत्र की प्राप्ति होती थी जिसके कारण मगध अपने आप को सुरक्षित रख दूसरों पर आक्रमण कर अपनी सीमाओं को बढ़ा सकते थे और सुरक्षित रहते हुए अपनी प्रगति के मार्ग को आगे बढ़ा सकते थे। 

इतनी नदियों के माध्यम से जलमार्ग के द्वारा व्यापार भी आसानी से किया जाता था और इस क्षेत्र में जंगली लकड़ियाँ भी बड़ी मात्रा में प्राप्त हो जाती थी जिससे मगध में बहुत सारी चीजों का निर्माण हुआ करता था जैसे की रथ आदि और उसका व्यापार भी किया जाता था। 

मगध के क्षेत्र में छोटा नागपुर का पठारी क्षेत्र भी आता था जहाँ से बहुत लौह अयस्क अर्थात लोहा बनाने के लिए कच्चा माल प्राप्त होता था और हमने वैदिक काल वाले आर्टिकल में भी जाना था की अंतिम उत्तर वैदिक काल में लोहे की खोज द्वारा एक क्रांति आ गई थी। 

मगध का इस लोहे के कारण बहुत विकास हुआ जिससे वे अपने औजार और युद्ध सामग्री का निर्माण किया करते थे। 

मगध के जंगलों में हाथियों को पकड़ा गया जो युद्ध में भाग लिया करते थे और इनके द्वारा भी मगध के शासकों को काफी सहायता प्राप्त होती थी। 

ऐसे कारणों की वजह से मगध महाजनपद बाकी महाजनपदों से ज्यादा प्रगति प्राप्त कर सका और बाकी महाजनपदों से ज्यादा शक्तिशाली बन सका था। 

मगध साम्राज्य के राजवंश

1.बृहद्रथ वंश( 1700 – 683 ईसा पूर्व )
2.हर्यक वंश( 544 – 413 ईसा पूर्व )
3.शिशुनाग वंश( 413 – 345 ईसा पूर्व )
4.नन्द वंश( 345 – 322 ईसा पूर्व )
5.मौर्य वंश( 322 – 185 ईसा पूर्व )
6.शुंग वंश( 185 – 73 ईसा पूर्व )
7.कण्व वंश( 73 – 28 ईसा पूर्व )
8.सातवाहन वंश( 30 ईसा पूर्व – 220 ईस्वी )
9.गुप्त वंश( 319 – 550 ईस्वी )
10.पाल वंश( 750 – 1162 ईस्वी )
मगध साम्राज्य का उत्कर्ष

बृहद्रथ वंश

जैसे की हमने ऊपर जाना था की प्राचीन समय में बृहद्रथ ने मगध की स्थापना की थी, महाभारत और पुराणों में बृहद्रथ को मगध का राजा बताया गया जिसने मगध की स्थापना की थी। 

ऋग्वेद में भी बृहद्रथ के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। 

बृहद्रथ के पुत्र जरासंध का महाबली भीम द्वारा श्रीकृष्ण की सहायता से वध किया गया था। 

हर्यक वंश

हर्यक वंश को मगध साम्राज्य का प्रथम वास्तविक वंश माना जाता है, इस वंश को पितृहन्ता वंश के नाम से भी संबोधित किया जाता है क्योंकि इस वंश के ज्यादातर राजाओं द्वारा अपने पिता की हत्या कर राजगद्दी प्राप्त की गई थी। 

आइये दोस्तों, इस वंश के मुख्य राजाओं पर दृष्टि डालें:

बिम्बिसार 

बिम्बिसार द्वारा इस वंश की स्थापना की गई थी और स्थापना 544 ईसा पूर्व में की गई थी। 

इस क्रम में बिम्बिसार द्वारा एक राजगृह नामक शहर को स्थापित किया जाता है और फिर उस क्षेत्र को अपनी राजधानी बना देता है और इस प्रकार राजगृह मगध की प्रथम राजधानी बनी थी। 

इसके साथ साथ भारतीय इतिहास का बिम्बिसार प्रथम राजा था जिसने विवाह के माध्यम से अपने साम्राज्य विस्तार का मार्ग चुना था यानी बिना किसी से युद्ध लड़े हुए उस क्षेत्र की राजकुमारी से विवाह करके उस क्षेत्र को प्राप्त कर लेना। 

इस क्रम में बिम्बिसार द्वारा 3 राजकुमारियों से विवाह किया गया था जो कुछ इस प्रकार हैं:

( i ) महाकोशला देवी ( कोशल राजवंश )

( ii ) चेल्लना ( लिच्छवि राजवंश ) 

( iii ) क्षेमा ( मद्र राजवंश )

बिम्बिसार द्वारा प्रथम विवाह महाकोशला देवी से किया गया और वह कोशल राजवंश की राजकुमारी थी, इसके बाद दूसरा विवाह चेल्लना से किया जो लिच्छवि राजवंश के राजा चेटक की पुत्री थी, राजकुमारी चेल्लना जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी की माता त्रिशला की बहन भी थी और इसके बाद तीसरा विवाह क्षेमा से किया जो मद्र राजवंश की राजकुमारी थी और वर्तमान में यह मद्र राजवंश पंजाब क्षेत्र में पड़ता है। 

इस प्रकार इतनी राजकुमारियों के साथ विवाह करके बिम्बिसार द्वारा मगध का साम्राज्य विस्तार किया जाता है। 

बिम्बिसार को सेनिया नाम से भी संबोधित किया जाता है, क्यूंकि इनके पास एक बहुत बड़ी विशाल सेना थी जिसमे बहुत स्थायी सैनिक थे जो पूर्ण रूप से सेना के लिए ही काम करते थे, जबकि दुसरे राजा या शासक सिर्फ युद्ध के समय अपनी सेना को इकठ्ठा व तैयार करते थे। 

इनके द्वारा ब्रह्मदत्त जो की अंग राज्य के शासक थे, उनपर आक्रमण कर विजय पाई और अंग को मगध में मिला लिया था, ब्रह्मदत्त द्वारा बिम्बिसार के पिता को युद्ध में हराया गया था इसलिए उनके द्वारा ब्रह्मदत्त से बदला लिया गया था। 

बिम्बिसार के दरबार में एक राजवैध भी रहते थे जिनका नाम जीवक था, जब गौतम बुद्ध की तबियत खराब रहने लगी थी तब बिम्बिसार ने अपने राजवैध जीवक को उनकी सेवा करने के लिए भेजा था। 

इसके अलावा बिम्बिसार ने अवन्ति के राजा प्रद्योत की सेवा करने के लिए भी जीवक को भेजा था जब वे पांडु रोग से ग्रसित हुए थे। 

अजातशत्रु 

अजातशत्रु के पिता बिम्बिसार बहुत लंबे समय तक राजा की गद्दी पर विराजमान थे 544 ईसा पूर्व से लेकर 492 ईसा पूर्व तक लगभग 52 वर्ष तक। 

इतने लंबे समय तक शासन करने के बाद अजातशत्रु ने अपने पिता बिम्बिसार की हत्या करके राजगद्दी प्राप्त की थी, अजातशत्रु को कुणिक नाम से भी संबोधित किया जाता है, यह एक आक्रमणकारी स्वभाव का राजा था। 

जब बिम्बिसार द्वारा अंग प्रदेश को जीता गया था तब, उनके द्वारा वहां की प्रशासनिक व्यवस्था अजातशत्रु को दी गई थी। 

जब अजातशत्रु राजा बना था तब उनकी सौतेली माँ यानी कोशला देवी खुश नहीं थी और बिम्बिसार के साथ विवाह के बाद जो काशी प्रदेश दहेज़ के रूप में दिया गया था, वह अब  अजातशत्रु के राजा बनने के बाद कोशला देवी के भाई प्रसनजीत द्वारा वापस ले लिया गया था। 

काशी को लेकर प्रसनजीत और अजातशत्रु में संघर्ष हुआ और इसमें अजातशत्रु को विजय प्राप्त हुई थी और फिर दुबारा काशी का क्षेत्र मगध में वापस आ गया था और इसके साथ साथ प्रसनजीत की पुत्री वजीरा का विवाह भी अजातशत्रु के साथ करा दिया गया था। 

राजा बनने के बाद अजातशत्रु द्वारा वैशाली जो उसका ननिहाल था उस पर भी विजय प्राप्त करके, उन क्षेत्रों पर अपना अधिकार कर लिया था। 

अजातशत्रु ने अपने युद्ध शैली को और भी मजबूत करने के लिए “महाशिलाकांतक” और “रथमुसाला” जैसे उपकरणों का भी निर्माण किया था। 

गौतम बुद्ध का महापरिनिर्वाण जो 483 ईसा पूर्व में हुआ था, यह अजातशत्रु के शासन काल में ही हुआ था, जिसके बाद अजातशत्रु द्वारा बौद्ध धर्म की प्रथम बौद्ध संगीति या सभा का आयोजन कराया गया था। 

उदायिन ( उदयन )

अजातशत्रु के अंतिम चरण में उसके पुत्र उदायिन ने भी अजातशत्रु के कर्मों की तरह अपने पिता अर्थात अजातशत्रु की हत्या करके राजगद्दी प्राप्त की थी। 

इन्हीं सब घटनाओं की वजह से हर्यक वंश को पितृहन्ता वंश के नाम से भी संबोधित किया जाता है। 

उदायिन के द्वारा गंगा, सोन और गंडक नदी के संगम में एक शहर बसाया गया जिसका नाम पाटलिपुत्र था और फिर पाटलिपुत्र को मगध की नई राजधानी बनाई थी। 

शिशुनाग वंश 

हर्यक वंश के बाद मगध में शिशुनाग वंश की स्थापना हुई, आइये इसके मुख्य राजाओं पर दृष्टि डालें:

शिशुनाग 

शिशुनाग द्वारा शिशुनाग वंश की स्थापना की गई थी, शिशुनाग प्रथम में एक अमात्य अर्थात एक मंत्री के पद पर था और बाद में वह राजा की गद्दी प्राप्त कर लेता है। 

जहाँ सबसे पहले मगध की राजधानी राजगृह थी, फिर उसके बाद पाटलिपुत्र हुई, अब शिशुनाग ने फिर राजधानी को बदलकर वैशाली कर दिया था। 

इस प्रकार अब मगध की नई राजधानी वैशाली बन गई थी। 

अवन्ति प्रदेश जो की पहले मगध का मित्र था, जैसे की हमने ऊपर जाना था की बिम्बिसार द्वारा अवन्ति के राजा प्रद्योत के पास अपने राजवैध जीवक के तौर पर सहायता भेजी थी, उस अवन्ति प्रदेश के ऊपर शिशुनाग द्वारा आक्रमण किया गया और उसे मगध साम्राज्य में मिला लिया गया था। 

कालाशोक 

शिशुनाग के बाद उसका पुत्र कालाशोक राजा की गद्दी पर बैठा और उसके द्वारा फिर से वापस मगध की राजधानी को पाटलिपुत्र स्थानांतरित कर दिया गया था। 

अब फिर से मगध की राजधानी पाटलिपुत्र बन गई थी। 

कालाशोक के शासनकाल में ही दूसरी बौद्ध संगीति या सभा का आयोजन कराया गया था, और इसके संबंध में हमने हमारे बौद्ध धर्म वाले आर्टिकल में भी जाना था। 

नंदिवर्धन  

नंदिवर्धन शिशुनाग वंश का अंतिम शासक था। 

नन्द वंश 

शिशुनाग वंश के बाद मगध साम्राज्य में नन्द वंश की स्थापना हुई, इस वंश में 10 राजा या शासक हुए थे, पर जानकारी सिर्फ प्रथम और अंतिम शासक के बारे में ही प्राप्त होती है, आइये उन पर दृष्टि डालें:  

महापदमनन्द 

महापदमनन्द नन्द वंश के प्रथम राजा या शासक और संस्थापक थे और इनको बहुत ही प्रभावशाली और शक्तिशाली राजा के रूप में देखा जाता है। 

इन्होंने अपनी प्रतिष्ठा में “एकराट” नामक उपाधि धारण की थी और यह उपाधि धारण करने वाले यह भारत के प्रथम राजा थे। 

जैसे की हमने ऊपर जाना की इनको बहुत ही प्रभावशाली और शक्तिशाली के रूप देखा जाता है, इसलिए पुराणों के अनुसार इन्हें परशुराम का दूसरा अवतार या रूप भी कहा जाता है। 

इन्होंने कलिंग जो वर्तमान ओडिशा का क्षेत्र है उस पर आक्रमण करके उसे जीत लिया था और उसे मगध साम्राज्य में मिला लिया था। 

महापदमनन्द जैन धर्म का अनुयायी था और कलिंग विजय के बाद वहां की एक जैन मूर्ति जो की “जिनसेन” की मूर्ति थी उसे लेकर मगध आ गया था। 

इन्होंने अपनी कलिंग की विजय के पश्चात इस क्षेत्र में नहरों का निर्माण भी करवाया था, इसके प्रमाण हमें कलिंग में स्थित हाथी गुफाओं से प्राप्त होते हैं, जहाँ यह लिखा हुआ प्राप्त हुआ है की महापदमनन्द द्वारा कलिंग में नहरों का निर्माण करवाया गया था और इन हाथी गुफाओं का निर्माण राजा खारवेल द्वारा करवाया गया था। 

घनानंद 

घनानंद नन्द वंश का अंतिम शासक था और इन्हें एक क्रूर राजा या शासक के रूप में देखा जाता है। 

इनकी प्रशासन व्यवस्था बहुत ही क्रूर और कठोर थी और इसके कारण इनकी प्रजा इनसे काफी दुखी थी। 

इसके शासनकाल के समय भारत के उत्तरी-पश्चिमी भागों पर सिकंदर का आक्रमण होता है, जो की यूनानी शासक था। 

इसी समय यूनानी और ईरानी आक्रमण भारत में हुए थे। 

घनानंद के दरबार में चाणक्य रहा करते थे, जिन्हें हम कौटिल्य के नाम से भी संबोधित करते हैं, जैसे की घनानंद एक क्रूर राजा था तो घनानंद द्वारा एक बार चाणक्य का अपमान किया जाता है जिसके बाद चाणक्य वहां से चले जाते हैं और चन्द्रगुप्त मौर्य को तैयार करके घनानंद पर आक्रमण कर उसकी हत्या कर मौर्य वंश का शासन कराते हैं। 

दोस्तों, मौर्य वंश भारतीय प्राचीन इतिहास का एक महत्वपूर्ण अंग व् अध्याय है इसलिए हम मौर्य वंश के संबंध में अगले आर्टिकल में पूरी जानकारी के साथ पढ़ेंगे। 

इसके बाद हम मगध साम्राज्य में शुंग वंश, कण्व वंश, सातवाहन वंश के बारे में जानेंगे जो की मौर्य वंश के बाद मगध में स्थापित होते हैं। 

इसके बाद हम गुप्त वंश के बारे में एक अलग आर्टिकल में पूरी जानकारी के साथ जानेंगे क्यूंकि गुप्त वंश भी भारतीय प्राचीन इतिहास का एक महत्वपूर्ण अंग व् अध्याय है। 

मगध साम्राज्य का उत्कर्ष – उदय, राजवंश


हम आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दी गई मगध साम्राज्य का उत्कर्ष – उदय, राजवंश के बारे में  जानकारी आपके लिए बहुत उपयोगी होगी और आप इससे बहुत लाभ उठाएंगे। हम आपके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं और आपका हर सपना सच हो।

धन्यवाद।


बार बार पूछे जाने वाले प्रश्न

मगध साम्राज्य का उत्कर्ष कब हुआ?

हर्यक वंश को मगध साम्राज्य का प्रथम वास्तविक वंश माना जाता है, बिम्बिसार द्वारा इस वंश की स्थापना की गई थी और स्थापना 544 ईसा पूर्व में की गई थी। इस क्रम में बिम्बिसार द्वारा एक राजगृह नामक शहर को स्थापित किया जाता है और फिर उस क्षेत्र को अपनी राजधानी बना देता है और इस प्रकार राजगृह मगध की प्रथम राजधानी बनी थी। 

मगध साम्राज्य के संस्थापक कौन थे?

प्राचीन समय में बृहद्रथ ने मगध की स्थापना की थी, परंतु हर्यक वंश के बिम्बिसार को मगध का वास्तिक संस्थापक माना जाता है।

मगध साम्राज्य के उदय के क्या कारण है?

मगध सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली महाजनपद के रूप में स्थापित हुआ था, परंतु मगध के उदय में बहुत से कारण थे, जो कुछ इस प्रकार हैं:
1. आर्थिक 
2. भौगोलिक
3. राजनीतिक 

मगध की पुरानी राजधानी क्या थी?

बिम्बिसार द्वारा एक राजगृह नामक शहर को स्थापित किया जाता है और फिर उस क्षेत्र को अपनी राजधानी बना देता है और इस प्रकार राजगृह मगध की प्रथम राजधानी बनी थी।

1 thought on “मगध साम्राज्य का उत्कर्ष – उदय, राजवंश, विस्तार 👑”

  1. इतिहास को बहुत ही सरल भाषा में लिखा गया है जो समझने में आसान है और परीक्षा उपयोगी है निवेदन है कि मौर्य और गुप्‍त साम्राज्‍य का अध्‍याय भी जल्‍दी अपलोड करे

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