सहायक संधि – दोस्तों, आज हम सहायक संधि के संबंध में जानेंगे, जिसे अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा बहुत सी ऐसी चीजों के लिए भारतीय रियासतों के ऊपर लागू की गई थी, जिससे उन्हें बहुत लाभ होना था और इनके बारे में ही हम आज चर्चा करेंगे।
इस सहायक संधि की मदद से अंग्रेजी कंपनी को तीन फायदे हुए थे, सबसे पहला तो यह था की अंग्रेजी कंपनी ने बहुत सी भारतीय रियासतों को अपने अधिकार क्षेत्रों में मिला लिया था और वो भी बिना किसी युद्ध और बड़े खर्चे के बिना और काफी भारतीय रियासतों ने अंग्रेजों की इस नीति को बहुत ही साधारण तरीके से स्वीकार भी कर लिया था।
दूसरा, इस सहायक संधि की मदद से अंग्रेजों ने अपनी सेना को भारत के बहुत बड़े भू-भाग तक फैला दिया था और अंग्रेजों की इस सेनाओं का खर्चा भी वहीं की भारतीय रियासत ही उठाती थी, जिससे अंग्रेजी कंपनी का कोई खर्चा भी नहीं होता था।
तीसरा, इस सहायक संधि की मदद से अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में आई दूसरी यूरोपीय कंपनियां जैसे फ्रेंच, डच, पुर्तगाल आदि के भी व्यापारिक रास्ते बंद कर दिए थे जिससे बाकी यूरोपीय कंपनियां भारत में अपना ज्यादा विस्तार नहीं कर पाई थी।
कुल मिलाकर इस सहायक संधि के द्वारा अंग्रेजों का कोई व्यय नहीं हुआ, लेकिन बदले में उन्होंने पाया बहुत कुछ और यही अंग्रेजों की कूटनीति के उत्तम उदाहरणों में से एक है।
सहायक संधि की पृष्ठभूमि
दोस्तों, पिछले आर्टिकल में जब हमने अंग्रेजों की रिंग फेंस नीति के बारे में जाना था, तब हमने यह बताया था की यह सहायक संधि रिंग फेंस नीति का एक बड़ा और व्यापक रूप थी।
सबसे पहले इस संधि का प्रयोग फ्रांसीसी गवर्नर जनरल डूप्ले के द्वारा किया गया था।
सहायक संधि क्या है
फ्रांसीसी गवर्नर जनरल डूप्ले इस संधि के तहत भारतीय राजाओं को अपनी सेना देता था और उसके बदले में वह भारतीय राजाओं से उस सेना का किराया लेता था।
बाद में अंग्रेजी ईस्ट कंपनी के रॉबर्ट क्लाइव द्वारा फ्रांसीसी गवर्नर जनरल डूप्ले की इस नीति का प्रयोग अंग्रेजी कंपनी के लिए भी किया गया था, जब 1764 में बक्सर के युद्ध के बाद अवध के नवाब शुजा-उद-दौला के साथ अंग्रेजों ने इलाहाबाद की संधि करी थी।
उसमें भी इसी प्रकार की शर्त रखी गई थी की अंग्रेज अवध के नवाब शुजा-उद-दौला को अपनी सेना उनकी रक्षा के देंगे और बदले में उस सेना के बदले अवध अंग्रेजों को धन दिया करेगा।
सहायक संधि का वास्तविक स्वरूप
बाद में इस सहायक संधि को अंग्रेजी कंपनी के लॉर्ड वेलस्ली द्वारा भारत में एक बड़ा और वास्तविक रूप दिया गया था और उन्होंने इस संधि का भारत में बहुत ज्यादा विस्तार किया था।
लॉर्ड वेलस्ली 1798 से लेकर 1805 तक बंगाल के गवर्नर जनरल के पद पर रहे थे।
लॉर्ड वेलस्ली जब भारत में बंगाल के गवर्नर जनरल थे, तब उन्होंने यह पाया की भारत में जो राजा हैं वे आपस में ही लड़ते रहते हैं और एक दूसरे से बैर रखते हैं और यही भारतीयों की शुरू से ही राष्ट्रवाद की कमी थी जिसका फायदा हमेशा बाहरी शक्तियों ने सदैव उठाया था।
उन्होंने पाया की भारतीय राज्य आपस में तो लड़ते रहते ही हैं, इसके साथ-साथ कुछ राज्य ऐसे भी हैं जिनके पास बहुत धन भी है फिर भी वे अपनी रक्षा नहीं कर सकते थे, इसी कमी का फायदा लॉर्ड वेलस्ली ने भी उठाना चाहा।
लॉर्ड वेलस्ली ने इन सभी भारतीय राजाओं अपनी कूटनीति के तहत अपनी सहायक संधि में बाँधने की कोशिश करी और इस क्रम में वे बहुत से भारतीय राजाओं के पास गए और उन्हें दूसरे राजाओं की शक्ति और उनसे होने वाले खतरे जैसी बातों से उलझाया जिस कारण भारतीय राजाओं को अपने राज्य की सुरक्षा की चिंता हो और वे लॉर्ड वेलस्ली की यह संधि स्वीकार कर लें।
लॉर्ड वेलस्ली अपने इस कार्य में काफी हद तक सफल भी हुए और बहुत से भारतीय राजाओं ने बड़ी आसानी से लॉर्ड वेलस्ली की सहायक संधि स्वीकार भी कर ली थी, जिस कारण उन राज्यों में अंग्रेजों का आधिपत्य बढ़ने लग गया था।
सहायक संधि की शर्तें
दोस्तों, अंग्रेज भारतीय राजाओं से सहायक संधि स्वीकार ही इसलिए करवाते थे जिससे उनको फायदा होता था और ये सब इस संधि की शर्तों के तहत ही हो पाता था, आइये उन शर्तों पर दृष्टि डालें:
1. | जिस भारतीय रियासत के साथ यह संधि हुई है, अंग्रेजी कंपनी उस भारतीय रियासत को अपनी सेना का कुछ भाग उस रियासत की रक्षा के लिए देगी और बदले में वह भारतीय रियासत अंग्रेजों को धन दिया करेगी। |
2. | भारतीय रियासतों को ही अंग्रेजी सेना के रहने, उनकी देखभाल का खर्च उठाना होगा। |
3. | भारतीय रियासत बिना अंग्रेजी कंपनी की अनुमति के बिना किसी दूसरी रियासत या राज्य के साथ कोई भी संधि या उसपर आक्रमण नहीं कर सकते। |
4. | भारतीय रियासत या राज्य अंग्रेजों के अलावा किसी दूसरे यूरोपीय व्यक्ति को अपने यहां नौकरी नहीं दे सकते, इस शर्त का बहुत बुरा प्रभाव भारत में आई बाकी यूरोपीय कंपनियों को हुआ था जैसे फ्रेंच, डच, पुर्तगाल आदि। |
5. | अगर भारतीय राजाओं की कोई भी राज्य को लेकर बैठक हो रही हो, तो उसमें एक ब्रिटिश अधिकारी हमेशा मौजूद रहेगा परंतु उस ब्रिटिश अधिकारी को उस बैठक में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं थी, इस शर्त का फायदा अंग्रेजी कंपनी को इस प्रकार होता था की भारतीय राजाओं की बैठकों में जो वार्तालाप होती थी उसकी जानकारी सीधा अंग्रेजों के पास पहुंच जाती थी। |
जैसे की हमने ऊपर जाना था की बहुत से भारतीय राजाओं ने लॉर्ड वेलस्ली की यह सहायक संधि बड़ी आसानी से स्वीकार कर ली थी परंतु कुछ भारतीय राजा ऐसे भी थे जिन्होंने इस संधि को स्वीकार करने से मना कर दिया था।
तब लॉर्ड वेलस्ली ने जो भारतीय राज्य इस संधि को स्वीकार नहीं करते थे, उन राज्यों से जबरदस्ती इस सहायक संधि को स्वीकार कराया था, उदाहरण के लिए हम मैसूर में टीपू सुल्तान को देख सकते हैं।
जब मैसूर अंग्रेजों की सहायक संधि को स्वीकार नहीं कर रहा था तब चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध में अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को हराकर वोडेयार को मैसूर का राजा बना दिया था और अपने बनाए हुए राजा वोडेयार के साथ बाद में सहायक संधि स्वीकार करा ली थी।
सहायक संधि के परिणाम
यह संधि चाहे भारतीय राजाओं ने स्वयं स्वीकार करी या जबरदस्ती कराई गई, इस संधि के परिणामों से यह भारतीय राजाओं को अंग्रेजों से बंध कर रहना पड़ रहा था, आइये उन परिणामों पर दृष्टि डालें:
1. | भारतीय राजाओं के पास से आत्मरक्षा की शक्तियां अंग्रेजों ने छीन ली थी। |
2. | भारतीय रियासत या राज्य किसी दूसरे राज्य के साथ भी कोई संबंध नहीं रख सकते थे। |
3. | भारतीय राजाओं को अपना कोई भी कार्य अंग्रेजों से अनुमति लेकर ही करना पड़ता था। |
4. | भारतीय रियासतों को अपने क्षेत्र में नौकरी देने के लिए भी अंग्रेजों की अनुमति लेनी पड़ती थी की किसे नौकरी दी जाए और किसे नहीं। |
सहायक संधि स्वीकार करने वाले भारतीय राज्य व रियासतें
दोस्तों, चलिए अब उन भारतीय रियासतों व राज्यों पर दृष्टि डालें, जिन्होंने इस संधि को स्वीकार किया था:
भारतीय रियासत व राज्य | स्वीकृति वर्ष |
हैदराबाद | 1798 |
तंजौर | 1799 |
मैसूर | 1799 |
अवध | 1801 |
मराठा ( पेशवा बाजीराव द्वितीय ) | 1802 |
भोसले – नागपुर | 1803 |
सिंधिया – ग्वालियर | 1804 |
होल्कर – इंदौर | 1805 |
इस प्रकार अंग्रेजी कंपनी ने अपनी सेना भारत के उत्तरी क्षेत्रों से लेकर दक्षिणी क्षेत्रों तक फैला दी थी और वो भी भारतीय रियासतों के खर्चे पर।
इस सहायक संधि से अंग्रेजों की शक्तियां भारत में बहुत प्रबल हो गई थी और इसके साथ इस संधि ने अंग्रेजी कंपनी की भारत में राजनीतिक शक्तियों को भी बहुत मजबूत कर दिया था और इसके साथ अंग्रेजी कंपनी ने भारत में व्यापार करने आई दूसरी यूरोपीय कंपनियों को भी इस संधि के तहत ख़त्म कर दिया था।
सहायक संधि – Subsidiary Alliance in Hindi
हम आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दी गई सहायक संधि – Subsidiary Alliance in Hindi के बारे में जानकारी आपके लिए बहुत उपयोगी होगी और आप इससे बहुत लाभ उठाएंगे। हम आपके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं और आपका हर सपना सच हो।
धन्यवाद।
बार बार पूछे जाने वाले प्रश्न
भारत में सहायक संधि का जन्मदाता कौन था?
सबसे पहले इस संधि का प्रयोग फ्रांसीसी गवर्नर जनरल डूप्ले के द्वारा किया गया था, बाद में इस सहायक संधि को अंग्रेजी कंपनी के लॉर्ड वेलस्ली द्वारा भारत में एक बड़ा और वास्तविक रूप दिया गया था और उन्होंने इस संधि का भारत में बहुत ज्यादा विस्तार किया था।
सहायक संधि की शुरुआत कब हुई?
( 1798 – 1805 ), लॉर्ड वेलस्ली 1798 से लेकर 1805 तक बंगाल के गवर्नर जनरल के पद पर रहे थे।
सहायक संधि पर हस्ताक्षर करने वाला प्रथम राज्य कौन था?
हैदराबाद – 1798
सहायक संधि की प्रमुख शर्तें क्या थी?
जिस भारतीय रियासत के साथ यह संधि हुई है, अंग्रेजी कंपनी उस भारतीय रियासत को अपनी सेना का कुछ भाग उस रियासत की रक्षा के लिए देगी और बदले में वह भारतीय रियासत अंग्रेजों को धन दिया करेगी।