1857 की क्रांति – दोस्तों, आज हम भारत में अंग्रेजों के शासन के दौरान हुई 1857 की क्रांति के बारे में जानेंगे, इससे पहले हमने हमारे पिछले आर्टिकल्स में जाना की कैसे भारत में बहुत सारी यूरोपीय कंपनियां भारत में व्यापार की दृष्टि से आती है।
इन यूरोपीय कंपनियों में से अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में धीरे-धीरे अपना प्रभुत्व बढ़ाती है और भारत के अलग-अलग क्षेत्रों पर कब्ज़ा भी करने लग जाती है।
इस क्रम में अंग्रेजी कंपनी प्लासी का युद्ध, बक्सर का युद्ध, कर्नाटक युद्ध, आंग्ल मैसूर युद्ध, आंग्ल सिख युद्ध, आंग्ल मराठा युद्ध में अपनी कूटनीतियों का परिचय देते हुए भारत के अधिकांश भू-भाग पर अपना कब्ज़ा कर लेती है और इसके बारे में हमने पिछले आर्टिकल्स में जाना था।
अंग्रेजी कंपनी के द्वारा भारत की आर्थिक बुनियाद को खोखला करना और उनकी नीतियों से धीरे-धीरे भारतीयों में विद्रोह की भावना पैदा होने लग गई थी और एक समय के बाद कुछ ऐसी परिस्थितियां बनी जिससे भारतीयों में विद्रोह जाग उठा और इसे ही हम “1857 की क्रांति” के नाम से जानते हैं।
1857 की क्रांति को भारत के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की संज्ञा दी जाती है और इसके साथ-साथ इसे भारत का सैनिक विद्रोह और इसे राष्ट्रीय आंदोलन भी कुछ लोगों द्वारा कहा जाता है।
आज हम इसी 1857 की क्रांति के बारे में जानेंगे और इस क्रम में हम इस क्रांति के स्वरूप, इसके कारण, ये कैसे प्रारंभ हुई, किन-किन क्षेत्रों में इस क्रांति का विस्तार हुआ, इस क्रांति के असफल होने के कारण और इसके परिणाम के बारे में चर्चा करेंगे।
1857 की क्रांति का स्वरूप
1857 की क्रांति को वास्तव में कोई स्थायी स्वरूप नहीं मिला है और इसके स्वरूप से यह तात्पर्य है की इस घटना को अलग-अलग इतिहासकारों द्वारा अलग-अलग नाम दिए गए है और एक तरह से इतिहासकारों में इस घटना के स्वरूप को लेकर मतभेद दिखाई देते है।
भारतीय इतिहासकार इस घटना को एक राष्ट्रीय आंदोलन, बड़ी क्रांति, और एक स्वंतंत्रता संग्राम की संज्ञा देते है, तो वहीं ब्रिटिश इतिहासकार इस घटना को सिर्फ एक मामूली विद्रोह, हिन्दू-मुस्लिम का मिला-जुला षड्यंत्र और एक छोटा सैनिक विद्रोह कहते है।
इसलिए इस घटना को एक स्थायी स्वरूप नहीं मिल पाया है।
अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा 1857 की क्रांति को अलग-अलग नाम दिए गए हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं:
ब्रिटिश इतिहासकार / विदेशी इतिहासकार
1857 की क्रांति को नाम | नाम देने वाले इतिहासकार | नाम का तात्पर्य |
धर्मांधों का ईसाईयों के विरुद्ध युद्ध | एल. ई. आर. रीज | धर्म में अंधे भारतीयों को ईसाईयों के विरुद्ध युद्ध करने वाला बताया गया। |
बर्बरता और सभ्यता के बीच युद्ध | टी. आर. होम्स | भारतीयों को बर्बर कहा गया और खुद को सभ्य बताते हुए यह कहा गया की भारतीय जो बर्बर थे, उन्हें सभ्य बनाने के क्रम में उन्होंने सभ्य लोगों के साथ विद्रोह किया। |
हिन्दू-मुस्लिम षड़यत्र | जेम्स आउट्रम, टेलर | इस विद्रोह को हिन्दू और मुसलिमों का मिला-जुला षड्यंत्र बताया गया, जिसमें अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया गया। |
सैनिक विद्रोह | लॉरेंस, सीले, ट्रेवेलियन, होम्स | इन्होंने इस विद्रोह को सैनिक विद्रोह की संज्ञा दी। |
भारतीय इतिहासकार
1857 की क्रांति को नाम | नाम देने वाले इतिहासकार | नाम का तात्पर्य |
न प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, न प्रथम राष्ट्रीय आंदोलन तथा, न ही स्वतंत्रता संग्राम था | आर. सी. मजूमदार | इन्होंने आज़ादी के समय भारतीय सरकार से मतभेद होने के कारण 1857 की क्रांति को यह कहा था। |
सैनिक विद्रोह | दुर्गा दास, सर सैय्यद अहमद खां | इन भारतीय इतिहासकारों द्वारा उन ब्रिटिश इतिहासकारों का समर्थन किया गया, जिन्होंने इस क्रांति को एक सैनिक विद्रोह बताया था जैसे लॉरेंस, सीले आदि। |
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, सुनियोजित स्वतंत्रता संग्राम | वी. डी. सावरकर | इन्होंने इस क्रांति को एक व्यापक स्वरुप माना। |
राष्ट्रीय विद्रोह | डिजरैली, अशोक मेहता | ब्रिटिश संसद में डिजरैली द्वारा इस क्रांति को एक राष्ट्रीय विद्रोह की संज्ञा दी गई। |
1857 की क्रांति के कारण
उस समय बहुत से ऐसे कारण उत्पन्न हुए जिसकी वजह से भारतीयों में विद्रोह की भावना जागी और 1857 की क्रांति हुई थी, आइए उन कारणों पर दृष्टि डालें:
राजनीतिक
अंग्रेजी कंपनी की बहुत सारी नीतियां और राजनीतिक उतार-चढ़ाव इस क्रांति के कारणों में से एक है।
जब लार्ड डलहौज़ी गवर्नर के रूप में अंग्रेजी कंपनी में आये थे, तब उनके द्वारा एक हडप नीति ( Doctrine of Lapse ) चलाई गयी थी जिसके द्वारा वे भारत की अलग-अलग क्षेत्रों की रियासतों को अंग्रेजी कंपनी के नियंत्रण क्षेत्रों में मिलाते थे और उन पर कब्ज़ा कर लेते थे, इस हड़प नीति के द्वारा अंग्रेजी कंपनी के द्वारा गोद लेने की प्रथा को भी बंद करवा दिया गया था।
इन क्षेत्रों में सम्भलपुर, सतारा, नागपुर, झांसी और अवध जैसे क्षेत्र थे जिनको लार्ड डलहौज़ी की हड़प नीति के द्वारा अंग्रेजी कंपनी के अधिकार क्षेत्रों में मिला लिया गया था, अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह के ऊपर अंग्रेजी कंपनी के द्वारा कुशासन का आरोप लगाया गया था और उनका अवध का क्षेत्र अंग्रेजी कंपनी के द्वारा इस आरोप के चलते ले लिया गया था।
इन कारणों की वजह से इन क्षेत्रों के भारतीय शासकों और जमींदारों में अंग्रेजी कंपनी की नीतियों से आज़ाद होने के लिए उनमें उनके विरुद्ध विद्रोह की भावना उत्पन्न होने लग गयी थी।
इसके अलावा वारेन हेस्टिंग्स की रिंग फेंस की नीति और लार्ड वेलेज़ली की सहायक संधि की नीति, अंग्रेजी कंपनी की इन सारी राजनीतिक क्रियाओं और नीतियों से धीरे-धीरे भारतीयों में विद्रोह उत्पन्न होने लग गया था।
इस प्रकार यह राजनीतिक कारण 1857 की क्रांति के प्रमुख कारणों में से एक थे।
आर्थिक
प्राचीन समय से ही भारत की अर्थव्यवस्था एक आत्मनिर्भर भारत की और एक समृद्ध अर्थव्यवस्था थी और यह अर्थव्यवस्था अंग्रेजों के आने के बाद बहुत कमज़ोर होने लग गई थी और अंग्रेजों द्वारा भारत को बहुत जोरो-शोरों से लूटा गया था।
इसमें अंग्रेजी कंपनी के द्वारा करों ( tax ) में वृद्धि कर दी गई थी, जिस कारण किसानों को बहुत हानि होने लग गई थी।
इससे उद्योगों का भी पतन होने लग गया था और कृषि-उद्योगों के बीच संबंध कमज़ोर होने लग गए थे।
अंग्रेजी कंपनी द्वारा जब अकाल की स्थिति होती थी तब भी ग्रामीणों से करों को वसूला जाता था जिससे आम जनता भी काफी प्रताड़ित होने लग गई थी और भारत के लोगों की आर्थिक स्थितियां काफी खराब होने लग गयी थी।
इस कारण से कृषि समाज के किसानों और आम जनता जैसे मजदूर वर्गों ने भी 1857 की क्रांति में अंग्रेजी कंपनी की इस आर्थिक नीतियों के विरुद्ध भाग लिया था, जिसकी वजह से आर्थिक कारण भी इस क्रांति के प्रमुख कारणों में से एक था।
सामाजिक एवं धार्मिक
इसमें अंग्रेजों द्वारा भारत में प्राचीन समय से चली आ रही सामाजिक एवं धार्मिक प्रथाओं पर ऐसे बदलाव किये गए, जिससे कुछ रूढ़ीवादी भारतीयों में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह उत्पन्न होने लग गया था।
जैसे लार्ड बेंटिक ने अपने कार्यकाल में सती प्रथा को बंद करवाया था और लार्ड कैनिंग के द्वारा उनके कार्यकाल के समय विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा दिया गया था और इसके साथ-साथ बाल विवाह जैसी प्रथाओं पर भी अंग्रेजों द्वारा अंकुश लगाया गया था।
अंग्रेजों के इन सामाजिक बदलावों से रूढ़ीवादी लोगों में आक्रोश उत्पन्न हुआ क्यूंकि उनके हिसाब से यह बदलाव उनकी प्राचीन काल से चली आ रही प्रथाओं पर पाबंदियां लगा रहे थे।
दोस्तों, हमने हमारे 1813 चार्टर एक्ट वाले आर्टिकल में भी जाना था कि ब्रिटिश सरकार के द्वारा ईसाई मिशनरियों को भारत में जाने और वहां अपने ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार करने की अनुमति दे दी गई थी और भारत में आये ईसाई मिशनरियों के द्वारा भारत को ईसाई देश बनाने की भी बात कह दी गयी थी।
इस प्रकार भारत से ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार से भी भारतीय खुश नहीं थे और इस कारण इन सामाजिक और धार्मिक कारणों की वजह से भी भारतीयों में विद्रोह उत्पन्न होने लग गया था।
सैन्य
इसमें अंग्रेजों द्वारा उनकी सेना में भारतीय सैनिकों से भेदभाव किया जाता था, जैसे की उनके रहन-सहन, उनके वेतन, उनके पदोन्नति में अंग्रेजों द्वारा भेदभाव किया जाता था।
भारतीयों सैनिकों का अनुपात 5 भारतीयों सैनिकों में एक ब्रिटिश सैनिक रखा जाता था।
अंग्रेजों द्वारा भारतीय सैनिकों पर जबरदस्ती अपनी आवश्यकताओं के अनुसार चीजें थोप दी जाती थी, जो भारतीय सैनिकों के परंपरा के विरुद्ध होती थी, जैसे की उस समय यह माना जाता था की यदि कोई समुद्र को पार कर देता था तो उसे अछूत मान लिया जाता था और अंग्रेजों द्वारा जबरदस्ती भारतीय सैनिकों को समुद्र पार करवा कर अभियानों के लिए भेजा जाता था।
इसके साथ-साथ भारतीय सैनिकों को दाढ़ी और मूछ रखने पर भी पाबंदिया लगा दी गई थी।
1854 में डाकघर अधिनियम के तहत भारतीय सैनिकों की मुफ्त पत्राचार व्यवस्था पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था।
1856 में अवध क्षेत्र को जब अंग्रेजों द्वारा अपने अधिकार क्षेत्रों में मिलाया गया था तब उसी अवध के क्षेत्र से सबसे ज्यादा भारतीय सैनिक ब्रिटिश सेना में भर्ती थे और जब अवध का क्षेत्र ब्रिटिश क्षेत्रों में मिलाया गया तब वहां से संबंधित भारतीय सैनिकों में दुख के साथ-साथ विद्रोह की भावना भी उत्पन्न होने लग गई थी।
इन्हीं सब कारणों की वजह से भारतीय सैनिकों में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह उत्पन्न हुआ और यह भी 1857 की क्रांति में प्रमुख कारण बना था।
तात्कालिक
यह 1857 की क्रांति का एक ऐसा कारण था, जिसने ऊपर हमने जितने भी कारणों की चर्चा की उनसे जो धीरे-धीरे भारतीयों में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह जन्म ले रहा था, इस कारण के वजह से वह विद्रोह फुट कर सामने आया था।
इस तात्कालिक कारण में यह हुआ था कि अंग्रेजों द्वारा सेना से ब्राउन बेस नामक बन्दूक को हटाकर एक एनफील्ड राइफल को दिसंबर,1856 में शामिल किया गया था।
जनवरी, 1857 में सेना में यह बात फैलने लग गयी थी की इस एनफील्ड राइफल की गोली में गाय और सुअर की चर्बी का प्रयोग किया जा रहा है।
भारतीय सैनिकों द्वारा इस एनफील्ड राइफल का प्रयोग करने से मना किया गया और धीरे-धीरे सारी सेना में यह आक्रोश फैलता चला गया और तब लगभग अधिकांश उत्तर भारत में सैनिक विद्रोह अंग्रेजों के खिलाफ शुरू हो गया था, जो 1857 की क्रांति का रूप ले लेता है।
1857 की क्रांति की शुरुआत
जैसे की हमने ऊपर जाना की इस क्रांति का तात्कालिक कारण भारतीय सैनिकों द्वारा एनफील्ड राइफल को गाय व सुअर की चर्बी के कारण उसका बहिष्कार करना था, इसलिए इस क्रांति को इसका प्रारंभिक रूप बंगाल के क्षेत्रों से मिला था।
सबसे पहले जनवरी, 1857 में बंगाल के दमदम क्षेत्र में सैनिकों में इस खबर का फैलाव हुआ की एनफील्ड राइफल में चर्बीदार कारतूस का प्रयोग हो रहा है।
इसके बाद फरवरी, 1857 में बंगाल के बहरामपुर क्षेत्र में सैनिकों में यह खबर फैली थी।
इसके बाद 29 मार्च, 1857 को यह खबर बंगाल के बैरकपुर छावनी में सैनिकों के बीच फैल गई थी, बैरकपुर छावनी में 34वीं इन्फेंट्री के सिपाही मंगल पांडेय द्वारा इस चर्बीदार कारतूस के प्रयोग से इनकार कर दिया गया था, मंगल पांडेय का नाम आप सभी ने भी सुना होगा, इनके ऊपर फिल्में भी बनाई गयी हैं।
मंगल पांडेय के इस चर्बीदार कारतूस के बहिष्कार करने के क्रम में उन्होंने दो अंग्रेजी अधिकारी जिनके नाम लेफ्टिनेंट बाग और सार्जेंट ह्यूसन थे उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी।
इसके परिणामस्वरूप तब अंग्रेजों द्वारा मंगल पांडेय को पकड़ लिया गया और 8 अप्रैल, 1857 को अंग्रेजों द्वारा मंगल पांडेय को फांसी की सज़ा दे दी गई थी।
यह घटनाएं 1857 की क्रांति का एक प्रारंभिक रूप था, इस क्रांति को इसका वास्तविक स्वरूप बाद में मिलता है, आइये जानें।
मंगल पांडेय को फांसी दी जाने के बाद भारतीय सैनिकों में आक्रोश बढ़ता चला गया और धीरे-धीरे यह आक्रोश भारत के पूर्वी भाग से लेकर उत्तर भारत और मध्य भारत तक फैलता चले गया था।
तब इस क्रम में सबसे पहले इस क्रांति की शुरुआत 10 मई, 1857 को उत्तर प्रदेश के मेरठ क्षेत्र से हुई थी।
मेरठ में भारतीय सैनिकों द्वारा अपनी रेजिमेंट के शस्त्रागार पर आक्रमण करके वहां से हथियारों और युद्ध सामग्री को लूट लिया गया था और इसके साथ अंग्रेजों द्वारा वहां कैद किये गए अन्य भारतीय सिपाहियों को भी कैद से आज़ाद करवाया गया था और इसके बाद वहां से भारतीय सैनिक दिल्ली की ओर रवाना हुए।
इसके बाद 11 मई, 1857 को सभी सैनिक दिल्ली पहुंचे।
12 मई, 1857 को भारतीय सैनिकों द्वारा दिल्ली पर अधिकार कर लिया गया था और दिल्ली पर शासन कर रहे उस समय के मुगल शासक बहादुर शाह द्वितीय जिनको हम बहादुर शाह ज़फर के नाम से भी जानते हैं, उन्हें भारतीय सैनिकों द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध अपना नेता चुना गया जिसे बहादुर शाह ज़फर द्वारा स्वीकार कर लिया गया था।
परंतु उस समय बहादुर शाह ज़फर बहुत बूढ़े हो चुके थे, इसलिए उन्होंने इसका नेतृत्व अपने सेनापति बख्त खां को सौंप दिया था।
अंग्रेजों ने इस विद्रोह को बहुत गंभीरता से लेते हुए तुरंत इस घटना पर कार्यवाही करी और तुरंत ही वापस से इस विद्रोह को दबाकर दिल्ली पर अपना अधिकार कर लिया था और भारतीय सैनिकों का अंग्रेजों के विरुद्ध यह अभियान विफल हो गया था।
परंतु तब तक इसको देखते हुए भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में भी अंग्रेजों के अत्याचारों और नीतियों के विरुद्ध यह विद्रोह फैल गया था और उन क्षेत्रों में भी यह विद्रोह शुरू हो गया था, आइये जाने।
1857 की क्रांति का विस्तार
जैसे की हमने ऊपर जाना की कैसे 1857 की क्रांति को प्रारंभिक रूप बंगाल के दमदम, बहरामपुर और बैरकपुर से मिला, जिसके बाद यह मेरठ से फैलता हुआ दिल्ली तक जा पहुंचा, जहां अंग्रेजों द्वारा इस विद्रोह को सफलतापूर्वक दबा दिया गया था।
धीरे-धीरे यह विद्रोह भारत के दूसरे क्षेत्रों में भी फैलता गया और वहां के नायकों ने अपने-अपने क्षेत्रों में इस विद्रोह को अंजाम दिया और मुख्य रूप से इस विद्रोह का विस्तार उत्तर और मध्य भारत में ज्यादा हुआ था, दक्षिण भारत में इस विद्रोह का ज्यादा विस्तार नहीं हो पाया था।
वे क्षेत्र जहां यह 1857 की क्रांति हुई थी वे कुछ इस प्रकार है:
1857 की क्रांति के नायक
क्षेत्र | शासक / विद्रोह कर्ता / नायक | अंग्रेजों की ओर से दमनकर्ता |
दिल्ली | बहादुरशाह ज़फर | निकोलसन, हडसन |
लखनऊ | बेगम हज़रत महल | कैम्पबेल |
कानपुर | नानासाहेब ( धोंदू पंत ) | कैम्पबेल |
ग्वालियर | तात्या टोपे ( रामचंद्र पांडुरंग ) | – |
झांसी | रानी लक्ष्मीबाई | सर ह्यूरोज़ |
बिहार – जगदीशपुर, पटना | बाबू कुंवर सिंह, पीर अली | विलियम टेलर |
इलाहाबाद | लियाकत अली | जनरल नील |
बरेली | खान बहादुर खान | कैम्पबेल |
गोरखपुर | गजाधर सिंह | – |
मथुरा | देवी सिंह | – |
राजस्थान | जयदयाल, हरदयाल | – |
दिल्ली
दिल्ली के संबंध में हमने पहले ही ऊपर चर्चा की थी की भारतीय सैनिक मेरठ से दिल्ली आकर बहादुर शाह ज़फर को अपना नेता चुनते हैं और उनका सेनापति बख्त खां इसका नेतृत्व करता है परंतु इसको अंग्रेजो की तरफ से पहले निकोलसन दबाने की कोशिश करते है लेकिन उनकी इसमें मृत्यु हो जाती है, तब हडसन दिल्ली में इस विद्रोह को सफलतापपूर्वक दबा देते हैं।
बहादुरशाह ज़फर को अंग्रेजों द्वारा पकड़ लिया जाता और रंगून में जेल में भेज दिया जाता है और वहां बहादुर शाह ज़फर की 1862 में मृत्यु हो जाती है, जिसके कारण वे मुग़ल वंश के आखरी शासक भी साबित होते हैं और मुग़ल वंश की सत्ता भारत में समाप्त हो जाती है।
लखनऊ
जैसे की हमने ऊपर जाना था की अंग्रेजों द्वारा अवध क्षेत्र को अपनी नीतियों द्वारा उनके अधिकार क्षेत्रों में मिला लिया गया था, तब उसके बाद बेगम हज़रत महल द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध यह विद्रोह लखनऊ में किया गया था।
यह भी कहा जाता है की बेगम हज़रत महल हाथी पर बैठकर विद्रोह में लोगों का हौसला बढ़ाने के लिए जाया करती थी।
तब अंग्रेजों की तरफ से कैम्पबेल द्वारा यहाँ के विद्रोह को दबा दिया गया था, परन्तु बेगम हज़रत महल ने अंग्रेजों के समक्ष समर्पण नहीं किया और वे इसके बाद नेपाल चली गई थी।
कानपुर
दोस्तों, जब हमने मराठा साम्राज्य के बारे में जाना था तब हमने मराठा साम्राज्य के अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के ऊपर चर्चा की थी, इन्हीं बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नानासाहेब थे, जिनका वास्तविक नाम धोंदू पंत था।
लार्ड डलहौज़ी की हड़प नीति ( Doctrine of Lapse ) के कारण नानासाहेब को उनका अधिकार नहीं मिल पाता है।
नानासाहेब ने कानपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया, और वहां कैम्पबेल द्वारा विद्रोह को दबा दिया गया था।
ग्वालियर
जब कानपुर में नानासाहेब अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर रहे थे, उस समय तात्या टोपे ने नानासाहेब का इस विद्रोह में सहयोग किया था और जब कैम्पबेल द्वारा नानासाहेब का दमन किया जाता है, तब तात्या टोपे ग्वालियर चले जाते हैं।
तात्या टोपे का एक मित्र जिसका नाम मान सिंह था, उसने तात्या टोपे के साथ धोखा किया और अंग्रेजों से हाथ मिलाते हुए उनको तात्या टोपे की ग्वालियर में छुपे होने की खबर दे दी थी।
जिसके कारण अंग्रेजों द्वारा तात्या टोपे को पकड़ लिया गया और उनको फांसी की सज़ा दे दी गई थी।
झांसी
दोस्तों, झांसी के संबंध में तो आप सबने अपने स्कूल में बहुत पढ़ा होगा और इसके ऊपर कई फिल्में भी बन चुकी हैं।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव के अधिकार के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह लड़ा और वे राजा गंगा राव की विधवा थीं।
अंग्रेजों की ओर से सर ह्यूरोज़ ने झांसी के इस विद्रोह का दमन किया था और उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई की वीरता को देखते हुए यह भी कहा था की “भारत में हर सोई हुई महिला, पुरुषों से भी ज्यादा ताकतवर हो सकती है”।
रानी लक्ष्मीबाई ने पुरुषों की भांति या यूँ कहें की उनसे भी ज्यादा ताकतवर संघर्ष अंग्रेजों के साथ किया था।
बिहार
बिहार के जगदीशपुर में वहां के एक जमींदार बाबू कुंवर सिंह द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया जाता है और न सिर्फ जगदीशपुर में बल्कि उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ में भी उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया था और इन्होंने ही अंग्रेजों के विरुद्ध सबसे ज्यादा सफलता प्राप्त इस 1857 की क्रांति में करी थी, परंतु अंग्रेजों की ओर से विलियम टेलर द्वारा इनका दमन कर दिया जाता है।
एक पुस्तक विक्रेता जिनका नाम पीर अली था, इन्होने बिहार के पटना क्षेत्र में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह शुरू किया, परंतु उनका कुछ ही समय में अंग्रेजों द्वारा दमन कर दिया गया था।
इलाहाबाद
इलाहाबाद में लियाकत अली द्वारा यह विद्रोह किया गया था, जहां पर जनरल नील द्वारा उनका दमन कर दिया गया था।
बरेली
बरेली में खान बहादुर खान द्वारा यह विद्रोह किया गया था, जहां पर कैम्पबेल द्वारा इस विद्रोह का दमन कर दिया गया था।
गोरखपुर, मथुरा, राजस्थान
गोरखपुर में गजाधर सिंह के द्वारा, मथुरा में देवी सिंह के द्वारा और राजस्थान में दो भाइयों जयदयाल और हरदयाल द्वारा कोटा क्षेत्र में यह विद्रोह अंग्रेजों के विरुद्ध किया गया था, जिसका अंग्रेजों द्वारा दमन कर दिया गया था।
1857 की क्रांति के असफलता के कारण
दोस्तों, भारत में यह 1857 की क्रांति इतने सारे क्षेत्रों में हुई, परंतु फिर भी यह क्रांति असफल रही इसके बहुत सारे कारण रहे थे, आइये उन असफलता के कारणों को जानें।
सीमित क्षेत्र
जैसे की हमने ऊपर भी जाना की ये विद्रोह भारत में ज्यादातर उत्तर और मध्य भारतीय क्षेत्रों में हुए थे और दक्षिण भारत में इसका कोई प्रभाव देखने को नहीं मिला।
इसके फलस्वरूप दक्षिण भारतीय क्षेत्रों ने इस क्रांति में ज्यादा भाग नहीं लिया था, पश्चिम भारत में भी जैसे की गुजरात, राजस्थान के बहुत बड़े क्षेत्र और महाराष्ट्र के क्षेत्रों में इस क्रांति का प्रभाव नहीं पड़ा था, जिसके कारण यह क्रांति भारत के एक सीमित क्षेत्रों तक ही सिमट कर रह गई थी।
इन्हीं सीमित क्षेत्रों के कारण इस क्रांति को ज्यादा सफलता नहीं मिल पाई थी।
नेतृत्व का अभाव
यह क्रांति भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में छोटे-छोटे विद्रोहों में बट गई थी, सारे क्षेत्रों में वहां के शासक या विद्रोहकर्ता सिर्फ अपने-अपने क्षेत्रों का ही नेतृत्व करते हुए देखने को मिले थे, किसी ने इस क्रांति में सारे क्षेत्रों को जोड़कर एक राष्ट्रीय नेतृत्व नहीं दिया था।
एक राष्ट्रीय नेतृत्व तब देखने को मिला था जब भारतीय सैनिकों के द्वारा बहादुर शाह ज़फर को उनका नेता चुना गया था, परंतु उस विद्रोह को तुरंत ही अंग्रेजों द्वारा दबा दिया गया था।
इसी नेतृत्व के अभाव में इस क्रांति को ज्यादा सफलता नहीं मिल पाई थी।
सीमित संसाधन
इस क्रांति में भारतीयों के पास उतने संसाधन नहीं थे जिनके दम पर वे अंग्रेजों के आधुनिक हथियारों का सामना कर सकें।
ज्यादातर रजवाड़े और छोटे जमीदारों के कंधो पर ही यह क्रांति चल रही थी और आव्यशकता पड़ने पर ये इन हथियारों की आपूर्ति नहीं कर पाते थे।
इन्हीं हथियारों और संसाधनों के अभाव में भारतीय ज्यादा लंबे समय और ज्यादा मजबूती से अंग्रेजों का सामना नहीं कर सकते थे और यह कारण भी इस क्रांति के असफलता का कारण बना।
संगठन का अभाव
इस क्रांति में जब अलग-अलग क्षेत्रों में विद्रोह हुए तब इन क्षेत्रों में आपस में एकता की कमी देखने को मिलती है।
इन क्षेत्रों में आपस में कोई तालमेल नहीं था, ये क्षेत्र अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह इस लक्ष्य के लिए कर रहे थे की उनका क्षेत्र अंग्रेजों की नीतियों से आज़ाद हो सके, किसी ने एक होकर भारत को अंग्रेजों की नीतियों से आज़ाद करवाने का प्रयास नहीं किया।
जैसे हम देखते है की जब 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना होने के बाद एक संगठन बनाते हुए और एकता के साथ भारत को जीत प्राप्त होने में बहुत सहायता प्राप्त होती है और यही एकता और संगठन की कमी हमें 1857 की क्रांति के समय देखने को मिलती है, अगर इस क्रांति में एकता देखने को मिलती तो इस क्रांति के परिणाम कुछ और हो सकते थे।
कुछ भारतीयों वर्गों के समर्थन का अभाव
इस क्रांति में कुछ ऐसे भारतीय वर्ग थे जिन्होंने इस क्रांति में कुछ खास दिलचस्पी नहीं दिखाई थी, जैसे की जो शिक्षित वर्ग था, उन्होंने पूरी तरह से इस क्रांति में भाग नहीं लिया था और इसके साथ-साथ उन्होंने इस क्रांति की आलोचना भी की थी।
कुछ जमींदार वर्गों द्वारा उनके स्वार्थ व हितों के कारण अंग्रेजों के साथ हाथ मिला लिया गया था और उन्होंने इस क्रांति में भाग नहीं लिया था।
कुछ किसान वर्गों ने इस क्रांति में यह कहते हुए भाग नहीं लिया था कि यह क्रांति तो सिर्फ जमींदारों की ही है।
ऐसे में यह विद्रोह धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ता चला गया था।
उद्देश्य की स्पष्टता का अभाव
इस क्रांति के में किसी भी क्षेत्र के पास कोई स्पष्ट उद्देश्य नहीं था की वे इस विद्रोह से क्या हासिल करना चाहते हैं।
सब अपने-अपने व्यक्तिगत हितों से यह विद्रोह कर रहे थे, जैसे की नानासाहेब अपने पेशवा पद को पाना चाहते थे, बेगम हज़रत महल अपने पद को प्राप्त करना चाहती थी, रानी लक्ष्मीबाई अपने दत्तक पुत्र को सत्ता दिलाना चाहती थी, बाबू कुंवर सिंह फिर से उनकी जमींदारी व्यवस्था को उभर कर देखना चाहते थे।
एक समान उद्देश्य की स्पष्टता की कमी हमें इस क्रांति में देखने को मिलती है।
इन्हीं सब कारणों की वजह से 1857 की क्रांति को सफलता प्राप्त नहीं हो पाई और अंग्रेजों को ये विद्रोह दबाने में विजय प्राप्त हुई थी।
1857 की क्रांति के परिणाम
भारत में अलग-अलग क्षेत्रों में इस 1857 की क्रांति को जुलाई, 1858 तक अंग्रेजों द्वारा दबा दिया जाता है और इसके बाद उस समय ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया द्वारा घोषणा करी जाती है जिसके कई परिणाम निकल कर आते हैं, आइये उन परिणामों को जानें:
अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी का समापन
यह इस क्रांति का सबसे बड़ा परिणाम था की ब्रिटिश सरकार के द्वारा जो अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में शासन कर रही थी उसका शासन समाप्त करके अब भारत की बागड़ोर सीधे ब्रिटिश क्राउन को सौंप दी गई थी।
इसका तात्पर्य यह है की अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ही भारत में शुरू से शासन कर रही थी, जिसने भारत में अलग-अलग क्षेत्रों पर कब्ज़ा किया जैसे बक्सर का युद्ध और प्लासी के युद्ध से बंगाल, मैसूर साम्राज्य पर कब्ज़ा, मराठा साम्राज्य पर कब्ज़ा, सिख साम्राज्य पर कब्ज़ा जिनके संबंध में हमने हमारे पिछले आर्टिकल्स में जाना था।
भारत में यह सभी कार्य अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी कर रही थी और 1857 की क्रांति भी इसी कंपनी के विरुद्ध हुई थी, इसलिए ब्रिटिश सरकार को यह लगा की अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी से अब भारत का शासन नहीं संभल पा रहा है इसलिए उनसे भारत की सत्ता वापस लेकर ब्रिटिश क्राउन को सौंप दी गई थी।
हड़प नीति का समापन
हड़प नीति ( Doctrine of Lapse ) जिसे लार्ड डलहौज़ी द्वारा शुरू की गई थी, जिसके कारण बहुत सारी भारतीय रियासतों को अंग्रेजी कंपनी के अधिकार क्षेत्रों में मिला लिया गया था, इस क्रांति के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा इस नीति को समाप्त कर दिया गया था।
देसी रियासतों की स्थिति पूर्ववत
इस हड़प नीति के द्वारा जिन देसी रियासतों को अंग्रेजी कंपनी के अधिकार क्षेत्रों में मिला लिया गया था, उन देसी रियासतों की स्थिति को फिर से पहले की तरह कर दिया गया।
सैन्य व्यवस्था में बदलाव
जैसे की हमने ऊपर जाना था की भारतीय सैनिकों का अनुपात 5 भारतीय सैनिकों के ऊपर एक ब्रिटिश सैनिक होता था, उसको घटाकर 2 भारतीय सैनिकों के ऊपर एक ब्रिटिश सैनिक कर दिया गया था।
यह बदलाव मुख्य रूप से भारतीय सैनिकों के विद्रोह को देखकर किया गया था।
इसके साथ-साथ इस क्रांति में बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों से अधिकांश सैनिकों ने हिस्सा लिया था, इसलिए अब ब्रिटिश सरकार सिख और गोरखा क्षेत्रों से अधिक सैनिकों की भर्ती करने लगी थी और बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों के सैनिकों को धीरे-धीरे कम करने लग गई थी।
भारत सचिव पद का सृजन
इस क्रांति के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा एक नए पद भारत सचिव का सृजन किया गया था, जिसके नेतृत्व में भारत के कार्यों का देखरेख का कार्य किया जाएगा और इस भारतीय सचिव की सहायता के लिए एक 15 सदस्य मंत्रिपरिषद का गठन किया गया था।
मुगल वंश का अंत
जिस मुगल वंश ने भारत में 1526 से सत्ता स्थापित करी हुई थी, वह मुगल वंश भी इस क्रांति में समाप्त हो जाता है और इसकी चर्चा हमने ऊपर भी करी थी और हमारे मुगल वंश के आर्टिकल्स में भी हमने इसकी चर्चा की हुई है।
1857 की क्रांति से जुड़े महत्वपूर्ण बिंदु
1. | सुरेंद्र नाथ सेन द्वारा 1857 पुस्तक की रचना की गई थी, परंतु यह पुस्तक पहले आर. सी. मजूमदार द्वारा लिखी जानी थी, परंतु उन्होंने इस पुस्तक को लिखने से मना कर दिया था, इसलिए फिर यह पुस्तक सुरेंद्र नाथ सेन द्वारा लिखी गई थी। |
2. | इस क्रांति के समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री पामर्स्टन थे। |
3. | 1857 की क्रांति के समय भारत के गवर्नर जनरल लार्ड कैनिंग थे। |
4. | इस क्रांति के समय मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फर / बहादुर शाह द्वितीय थे। |
5. | 1857 की क्रांति का दमन करने हेतु अंग्रेजों ने मुख्य रूप से सेनापति कैम्पबेल को चुना था। |
6. | 1857 की क्रांति में भारतीयों द्वारा इस क्रांति का प्रतीक कमल और रोटी को बनाया था। |
1857 की क्रांति – 1857 Revolt in Hindi
हम आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दी गई 1857 की क्रांति – 1857 Revolt in Hindi के बारे में जानकारी आपके लिए बहुत उपयोगी होगी और आप इससे बहुत लाभ उठाएंगे। हम आपके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं और आपका हर सपना सच हो।
धन्यवाद।
1857 की क्रांति के प्रश्न उत्तर
1857 की क्रांति की शुरुआत कहाँ से हुई थी?
मंगल पांडेय को फांसी दी जाने के बाद भारतीय सैनिकों में आक्रोश बढ़ता चला गया और धीरे-धीरे यह आक्रोश भारत के पूर्वी भाग से लेकर उत्तर भारत और मध्य भारत तक फैलता चले गया था। तब इस क्रम में सबसे पहले इस क्रांति की शुरुआत 10 मई, 1857 को उत्तर प्रदेश के मेरठ क्षेत्र से हुई थी।
1857 की क्रांति के प्रमुख केंद्र कौन कौन से थे?
वे क्षेत्र जहां यह 1857 की क्रांति हुई थी वे कुछ इस प्रकार है: दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, ग्वालियर, झांसी, बिहार – जगदीशपुर, पटना, इलाहाबाद, बरेली, गोरखपुर, मथुरा, राजस्थान।
1857 की क्रांति का मुख्य कारण क्या था?
अंग्रेजी कंपनी के द्वारा भारत की आर्थिक बुनियाद को खोखला करना और उनकी नीतियों से धीरे-धीरे भारतीयों में विद्रोह की भावना पैदा होने लग गई थी और एक समय के बाद कुछ ऐसी परिस्थितियां बनी जिससे भारतीयों में विद्रोह जाग उठा और इसे ही हम 1857 की क्रांति के नाम से जानते हैं।
मंगल पांडे को फांसी कब दी गयी थी?
मंगल पांडेय के इस चर्बीदार कारतूस के बहिष्कार करने के क्रम में उन्होंने दो अंग्रेजी अधिकारी जिनके नाम लेफ्टिनेंट बाग और सार्जेंट ह्यूसन थे उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके परिणामस्वरूप तब अंग्रेजों द्वारा मंगल पांडेय को पकड़ लिया गया और 8 अप्रैल, 1857 को अंग्रेजों द्वारा मंगल पांडेय को फांसी की सज़ा दे दी गई थी।
1857 के विद्रोह के समय भारत का गवर्नर जनरल कौन था?
1857 की क्रांति के समय भारत के गवर्नर जनरल लार्ड कैनिंग थे।
1857 की क्रांति के समय ब्रिटेन का प्रधानमंत्री कौन था?
1857 की क्रांति के समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री पामर्स्टन थे।
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Very nice notes thanku sir
बहुत सुंदर नोट आपके द्वारा बनाया गया है सर सिर्फ एक बार पढ़ लेने से पूरा बात स्पष्ट रूप से याद हो गया🙏🙏🙏
I AM REALY THANKFULLY TO YOU BECAUSE WHEN I AM READING THIS ABOUT 1857 REVOLT MY ALL DOUBT IS CLEAR SO THNX FOR MAKING THESE TYPES OF NOTES AND EVERY STUDENTS WHO WANT TO STUDY ABOUT 1857 REVOLT ALL ARE CLAER THEIR CONCEPTS PLEASE MAKE OTHER TOPICS NOTES………………………………….
This is very helpfull topic for every aspirants thanks sir
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