Anglo Mysore war in Hindi

Anglo Mysore war in Hindi – आंग्ल-मैसूर युद्ध ⚔️

Anglo Mysore war in Hindi – दोस्तों, आज हम आंग्ल-मैसूर युद्ध के बारे में जानेंगे और जैसे की हमने पिछले आर्टिकल में जाना था की कैसे बक्सर के युद्ध के बाद अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की भारत में मजबूती बन जाती है। 

1764 में बक्सर के युद्ध के कुछ ही समय बाद यह आंग्ल-मैसूर युद्ध हुआ था, जिससे अंग्रेजी कंपनी की बुनियाद भारत में पुख्ता रूप से जम गई थी। 

मैसूर को हम वर्तमान समय में कर्नाटक राज्य के रूप में जानते है या कर्नाटक के नाम से संबोधित करते हैं, परंतु आप इस आंग्ल-मैसूर युद्ध को कर्नाटक युद्ध नहीं समझिएगा, कर्नाटक युद्ध के संबंध में हमने पिछले हमारे आर्टिकल्स में जाना था। 

इस आंग्ल-मैसूर युद्ध में भारतीय शासकों में एकता की कमी और आपस में ही एक दूसरे से बैर रखने का फायदा अंग्रेजों ने उठाया था और इस क्रम में अंग्रेजी कंपनी और मैसूर के बीच 4 आंग्ल-मैसूर युद्ध हुए थे। 

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आंग्ल-मैसूर युद्ध की पृष्ठभूमि ( Background of Anglo Mysore war )

दोस्तों, आंग्ल-मैसूर युद्ध कैसे और क्यों हुआ, इसलिए हम सबसे पहले इस युद्ध की पृष्टभूमि के बारे में जानेंगे, आइये जानें। 

मैसूर राज्य का उदय 

जब दिल्ली में सल्तनत काल का दौर चल रहा था तब दक्षिण भारत में दो राज्यों का भी उदय हुआ था, जिनका नाम विजयनगर और बहमनी था। 

इन विजयनगर और बहमनी राज्यों में आपस में काफी संघर्ष होते रहते थे और बाद में इसी क्रम में दोनों राज्यों के बीच में 1565 में तालीकोटा का युद्ध हुआ था। 

इस युद्ध में बहमनी राज्य को विजय प्राप्त हुई थी और फिर विजयनगर पूर्ण रूप से टूट गया था और इस युद्ध के समय दिल्ली में भी सल्तनत दौर खत्म हो चुका था और मुगलों की सत्ता भारत में राज कर रही थी।   

इस युद्ध के बाद कई अलग क्षेत्रों का उदय होता गया और इसी क्रम में एक नए “मैसूर राज्य” का उदय हुआ था, जिसको हम वर्तमान में कर्नाटक राज्य के रूप से भी जानते हैं। 

मैसूर राज्य की राजनीतिक पृष्ठभूमि ( हैदर अली एवं टीपू सुल्तान )

मैसूर राज्य में वाडयार वंश का स्वतंत्र शासन आरंभ हो जाता है और इस क्रम में इस वंश के शासक थे जिनका नाम चिक्का कृष्णराज था, वे शासन करने आये थे। 

चिक्का कृष्णराज के दो सेनापति थे जिनका नाम नन्दराज और देवराज था और चिक्का कृष्णराज अपने इन दोनों सेनापतियों के दम पर पूर्ण मैसूर की शक्तियों का उदय कर रहे थे। 

बाद में एक “हैदर अली” नामक सिपाही की नियुक्ति नन्दराज की सेना में हो जाती है। 

हैदर अली से जुड़े बिंदु 

1.हैदर अली एक कुशल सैनिक के तौर पर नन्दराज का सहयोग करता है और मैसूर की शक्तियों को बढ़ाने में अपनी मदद करता है और इसी क्रम में वह अपनी योग्यताओं के आधार पर ऊंचे पदों पर भी पहुँचता है। 
2.1722 में हैदर अली का जन्म हुआ था और नन्दराज की सेना में नियुक्ति के बाद 1755 में हैदर अली के द्वारा फ्रांस की मदद से डिंडीगुल नामक स्थान में एक “शस्त्रागार” का निर्माण करवाया जाता है। 
3.इसके कुछ वर्ष बाद हैदर अली सत्ता के मोह में 1760 में नन्दराज की हत्या कर देता है और अपने आप को स्वतंत्र शासक घोषित करके मैसूर की सत्ता पर कब्ज़ा कर लेता है। 
4.हैदर अली की 1782 में मृत्यु के बाद उसका पुत्र “टीपू सुल्तान” मैसूर की सत्ता संभालता है। 
Anglo Mysore war in Hindi – आंग्ल-मैसूर युद्ध

दोस्तों, इसी समय में मैसूर के आसपास जैसे मराठा और हैदराबाद जैसे राज्यों के भी बीच में तनाव उत्पन होना शुरू हो जाता है क्यूंकि मैसूर की शक्तियाँ बहुत तेजी से बढ़ती चली जा रही थी और इससे मराठा और हैदराबाद के निजामों को खतरा महसूस हो रहा था। 

इसके साथ-साथ जैसे की हमने पिछले आर्टिकल बक्सर के युद्ध में जान ही लिया था की अंग्रेजों की भी प्रधानता भारत में बढ़ रही थी और अंग्रेजों को व्यापार संबंधी कार्यों के लिए तटीय क्षेत्रों की बहुत आव्यशकता होती थी, इसलिए वे भी मैसूर पर अपना अधिकार करना चाहते थे। 

टीपू सुल्तान से जुड़े बिंदु 

1.1787 में टीपू सुल्तान द्वारा अपने आप को “बादशाह घोषित किया जाता है, जो की हैदर अली ने अपने शासनकाल में नहीं किया था। 
2.टीपू सुल्तान अपने शासनकाल में नए-नए प्रयोग करता रहता था इसलिए हेक्टर मुनरो द्वारा उसे “अशांत आत्मा” की संज्ञा दी गई है और उनके अनुसार टीपू सुल्तान एक आत्मविश्वासी शासक भी था और इसी विशेषता के कारण वह अंग्रेजों को बहुत हानि पहुंचा सकता था। 
3.1794 में टीपू सुल्तान के द्वारा एक “स्वतंत्रता का वृक्ष” ( Tree of Liberty ), श्रीरंगपट्ट्नम जो की उस समय मैसूर की राजधानी थी, वहां फ्रांसीसी रिपब्लिकन अधिकारियों के सहयोग से लगाया गया था। 
4.1797 में श्रीरंगपट्ट्नम में ही टीपू सुल्तान द्वारा फ्रांसीसी सैनिकों की मदद से एक “जैकोबिन क्लब” ( Jacobin Club ) की स्थापना भी करी गई थी। 
5.इसके दो वर्ष बाद टीपू सुल्तान की 1799 में मृत्यु हो जाती है। 
Anglo Mysore war in Hindi – आंग्ल-मैसूर युद्ध

दोस्तों, जैसे की हमने जाना की हैदर अली की मृत्यु 1782 में होती है और उसके पुत्र टीपू सुल्तान की मृत्यु 1799 में होती है, तो इन दोनों पिता-पुत्र की मृत्यु द्वितीय और चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध के दौरान ही होती है, तो चलिए इन चार आंग्ल-मैसूर युद्धों के संबंध में जानते है। 

आंग्ल-मैसूर युद्ध ( Anglo Mysore War )

जैसे की हमने ऊपर अंग्रेजों के संबंध में यह जाना की वे अपनी शक्तियों के विस्तार और उनके व्यापारिक कार्यों के लिए तटीय क्षेत्रों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मैसूर पर अपना अधिकार चाहते थे और इसी क्रम में अंग्रेजों और मैसूर के बीच कुल 4 आंग्ल-मैसूर युद्ध हुए थे। 

पहले दो युद्धों में मैसूर की कमान हैदर अली द्वारा संभाली गई थी परंतु द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध में उसकी मृत्यु के बाद, बाकी के दो युद्धों में उसके पुत्र टीपू सुल्तान ने मैसूर की कमान संभाली थी परंतु चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध में उसकी भी मृत्यु हो जाती है। 

इन युद्धों में पहले की ही तरह भारतीय राजाओं में एकता की कमी और एक-दूसरे से बैर का भाव देखने को मिला जिसका अंग्रेजी कंपनी पहले से ही फायदा उठाते हुए आ रही थी और इन युद्धों में भी अंग्रेजों ने अपनी इस कूटनीति का प्रयोग किया था। 

प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध ( 1767 – 1769 )

यह युद्ध 1767 से 1769 तक मैसूर और अंग्रेजों के बीच लड़ा गया था और क्यूंकि मराठा और हैदराबाद के निज़ाम मैसूर की बढ़ती शक्तियों से तनाव में थे इसलिए अंग्रेजों ने इस बात का फ़ायदा उठाकर मराठा और हैदराबाद के निज़ामों को अपनी तरफ मिला लिया था। 

हैदर अली ने भी अपनी एक योजना बनाई और मराठों और हैदराबाद के निज़ामो को अपनी तरफ मिलाने के लिए कुछ क्षेत्रों और धन का लालच दिया और इस कार्य में वह सफल भी हो गया था। 

इस प्रकार इस युद्ध में हैदर अली ने अंग्रेजों की कूटनीति विफल कर दी थी। 

अपनी इस योजना के कारण हैदर अली की इस युद्ध में विजय हुई और अंग्रेजों को हार का सामना करना पड़ा था। 

मद्रास की संधि ( 1769 ) 

इस युद्ध में अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करते-करते हैदर अली मद्रास क्षेत्र तक चले गया था। 

अंग्रेजों की तरफ से देखा जाए तो यह संधि उनके लिए एक अपमानजनक संधि थी क्योंकि जैसे की हमने पिछले बक्सर के युद्ध वाले आर्टिकल में जाना था की कैसे अंग्रेजों ने तीन सेनाओं को हराया था, परंतु इस युद्ध में अकेले हैदर अली ने ही अंग्रेजों को हरा दिया था। 

कहा जाता है की एक हैदर अली ही था जिसने अंग्रेजों को प्रत्यक्ष रूप से हराया था। 

हैदर अली और अंग्रेजों के बीच मद्रास में 1769 में संधि हुई थी और इस संधि में यह तय किया गया की हैदर अली को जब भी अंग्रेजों की सहायता की आवश्यकता होगी तो अंग्रेजों को उसकी सहायता करनी होगी और जो-जो क्षेत्र जिस-जिस के थे वो-वो क्षेत्र उनको वापस लौटा दिए गए थे। 

द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध ( 1780 – 1784 )

1771 में मैसूर और मराठों में संघर्ष की वजह से युद्ध हुआ था और उस युद्ध में हैदर अली ने मद्रास की संधि के अनुसार अंग्रेजों से अपने लिए सहायता मांगी थी, परंतु अंग्रेजों ने मद्रास की संधि की शर्तों को तोड़ते हुए हैदर अली की सहायता नहीं की थी। 

इस कारण हैदर अली और अंग्रेजों के बीच फिर से तनाव की स्थितियां उत्पन्न होने लग गई थी और इसी क्रम में फ्रांसीसी कंपनी ने अपने व्यापार के लिए जो बंदरगाह मैसूर से लिए थे, वहां पर अंग्रेजों द्वारा बार बार आक्रमण किया जा रहा था और उन बंदरगाहों पर अपना अधिकार करने का प्रयास अंग्रेजों द्वारा किया जा रहा था। 

इस कारण से मैसूर और अंग्रेजो के बीच द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध हुआ था और इस युद्ध में अंग्रेज मराठों और हैदराबाद के निजामों को अपने साथ मिलाने में सफल हो गए थे। 

दोस्तों, हमने कर्नाटक युद्ध वाले आर्टिकल में सर आयर कूट ( Sir Eyre Coote ) के संबंध में जाना था और इन्हीं सर आयर कूट ( Sir Eyre Coote ) ने इस युद्ध में भी अंग्रेजों की तरफ से उनका नेतृत्व किया था। 

मैसूर और अंग्रेजों के बीच “पोर्टो नोवो का युद्ध” 1781 में होता है और इस युद्ध में लड़ते-लड़ते हैदर अली की मृत्यु 1782 में हो जाती है। 

अपने पिता की मृत्यु के बाद टीपू सुल्तान ने इस युद्ध की कमान संभाली और 1784 तक इस युद्ध को लड़ा अंत में यह आंग्ल-मैसूर का युद्ध बराबरी के नतीजे पर समाप्त हो गया था। 

इस युद्ध के समय वारेन हेस्टिंग्स ब्रिटिश गवर्नर थे जिनके द्वारा सर आयर कूट ( Sir Eyre Coote ) को अंग्रेजों का नेतृत्व करने के लिए भेजा गया था। 

मंगलौर की संधि ( 1784 )

अंत में यह आंग्ल-मैसूर का युद्ध बराबरी के नतीजे पर समाप्त हो गया था और 1784 में मंगलौर की संधि मैसूर और अंग्रेजो के बीच हुई थी। 

तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध ( 1790 – 1792 )

दूसरे आंग्ल-मैसूर युद्ध में हारने के बाद टीपू सुल्तान अंग्रेजों से बदला लेने और उनको पराजित करने की योजना बनाता है। 

इस क्रम में वह अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाने और उसका विस्तार करने का प्रयास करता है और इसके संबंध में वह कुछ विदेशी शक्तियों से सहायता मांगता है जिसमे फ्रांस और कस्तुनतुनिया जैसे देश थे। 

अंग्रेजों को जब इस बात की सूचना मिलती है तब तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध की शुरुआत हो जाती है और टीपू सुल्तान का इन विदेशी शक्तियों से सहायता मांगना ही इस युद्ध का कारण बनता है। 

अंग्रेजों को इस युद्ध में विजय प्राप्त हो जाती है। 

श्रीरंगपट्ट्नम की संधि ( 1792 )

अंग्रेजों की इस युद्ध में विजय के बाद 1792 में श्रीरंगपट्ट्नम की संधि मैसूर और अंग्रेजो के बीच होती है और इसमें कुछ ऐसी शर्ते होती हैं जो टीपू सुल्तान के लिए एक अपमानजनक संधि साबित होती है और वे शर्तें कुछ इस प्रकार हैं:

1.टीपू सुल्तान को अपना आधा राज्य अंग्रेजों को देना होता है जिसमे मालाबार और डिंडीगुल जैसे क्षेत्र थे। 
2.जुर्माने के तौर पर 3 करोड़ रूपए की राशि अंग्रेजो को टीपू सुल्तान को देनी पड़ती है। 
3.टीपू सुल्तान के दो पुत्रों को अंग्रेजों द्वारा पकड़ लिया जाता है। 
Anglo Mysore war in Hindi – आंग्ल-मैसूर युद्ध

इस युद्ध में मराठों और हैदराबाद के निजामों ने अंग्रेजों का सहयोग भी किया था इसलिए तोहफे में टीपू सुल्तान से लिए गए कुछ क्षेत्र मराठों और हैदराबाद के निजामों को भी अंग्रेजों द्वारा दे दिए जाते हैं। 

इस युद्ध के दौरान लॉर्ड कॉर्नवालिस ( Lord Cornwallis ) ब्रिटिश गवर्नर के पद पर थे और उन्होंने अपनी इस युद्ध में विजय के बाद और मराठों और हैदराबाद के निजामों को टीपू सुल्तान से छीने हुए क्षेत्रों को देने के संबंध में कुछ शब्दों का प्रयोग किया, जो कुछ इस प्रकार हैं:

मैंने अपने मित्रों को ज्यादा शक्तिशाली भी नहीं होने दिया और अपने शत्रु को भी दुर्बल कर दिया” अर्थात जो क्षेत्र अंग्रेजों ने मराठों और हैदराबाद के निजामों को दिए थे वे क्षेत्र बहुत बेकार क्षेत्र थे यानी अंग्रेजों का नाम भी हो गया की उन्होंने तोहफे में मराठों और हैदराबाद के निजामों को कुछ दिया लेकिन वह मराठों और हैदराबाद के निजामों के लिए कुछ काम का भी नहीं था। 

इसके साथ साथ इन शब्दों का यह मतलब भी था की उसने अपने शत्रु यानी शक्तिशाली प्रदेश मैसूर को संधि की शर्तों के तहत बहुत “दुर्बल भी बना दिया था। 

चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध ( 1799 )

तीसरे आंग्ल-मैसूर युद्ध में अपमानजनक संधि के बाद टीपू सुल्तान फिर से अंग्रेजों से बदला लेने का विचार कर रहा था। 

इस क्रम में उस दौरान लॉर्ड वेलेज़ली ( Lord Wellesley ) ब्रिटिश गवर्नर जनरल थे और उन्होंने भारत में “सहायक संधि” ( Subsidiary alliance ) की योजना का प्रारंभ किया था। 

लॉर्ड वेलेज़ली ने यह सहायक संधि टीपू सुल्तान को भेजी थी, परंतु इस संधि में कुछ ऐसी शर्तें थी जो टीपू सुल्तान को अपमानजनक लगी और इसके साथ ही साथ उसके अधिकारों को भी इस संधि के तहत दबाया जा रहा था इसलिए टीपू सुल्तान ने इस संधि को स्वीकार करने से इंकार कर दिया था। 

उसके इस संधि को स्वीकार करने से इंकार करने के कारण अग्रेजों और मैसूर में चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध हुआ और तीसरे आंग्ल-मैसूर युद्ध के बाद से टीपू सुल्तान काफी दुर्बल भी हो चुका था। 

इस कारण इस युद्ध में लड़ते-लड़ते टीपू सुल्तान की 1799 में मृत्यु हो जाती है। 

इस प्रकार मैसूर से हैदर अली और टीपू सुल्तान के वंश की समाप्ति हो जाती है और जैसे की हमने ऊपर वाडयार वंश के संबंध में चर्चा की थी उसी वाडयार वंश के एक अल्प वयस्क को मैसूर की सत्ता पर उसको अंग्रेजों द्वारा बिठा दिया जाता है और अंग्रेजों द्वारा मैसूर के ऊपर जबरदस्ती सहायक संधि लगा दी जाती है। 

इस चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद लॉर्ड वेलेज़ली ने कुछ शब्दों का प्रयोग किया था जो कुछ इस प्रकार है:

अब पूर्वी साम्राज्य हमारे कदमो के नीचे है” अर्थात लॉर्ड वेलेज़ली ने भारतीय क्षेत्र के संबंध में यह कहा था की अब भारत पर अधिकार करना बहुत ही आसान है। 

इस प्रकार इन 4 आंग्ल-मैसूर युद्धों के बाद अंग्रेजों की बुनियाद भारत में पुख्ता रूप से जम गई थी।

Anglo Mysore war in Hindi – आंग्ल-मैसूर युद्ध

हम आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दी गई Anglo Mysore war in Hindi ( आंग्ल-मैसूर युद्ध ) के बारे में  जानकारी आपके लिए बहुत उपयोगी होगी और आप इससे बहुत लाभ उठाएंगे। हम आपके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं और आपका हर सपना सच हो।

धन्यवाद।


बार बार पूछे जाने वाले प्रश्न

चौथा एंग्लो मैसूर युद्ध लड़े जाने के समय भारत के गवर्नर कौन थे?

इस क्रम में उस दौरान लॉर्ड वेलेज़ली ( Lord Wellesley ) ब्रिटिश गवर्नर जनरल थे और उन्होंने भारत में “सहायक संधि” ( Subsidiary alliance ) की योजना का प्रारंभ किया था। 

मैसूर के कितने युद्ध हुए?

अंग्रेज अपनी शक्तियों के विस्तार और उनके व्यापारिक कार्यों के लिए तटीय क्षेत्रों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मैसूर पर अपना अधिकार चाहते थे और इसी क्रम में अंग्रेजों और मैसूर के बीच कुल 4 आंग्ल-मैसूर युद्ध हुए थे।

तृतीय मैसूर युद्ध के पश्चात् मैसूर राज्य का कितने प्रतिशत भू भाग विरोधियों के कब्जे में चला गया?

टीपू सुल्तान को अपना आधा राज्य अंग्रेजों को देना होता है जिसमे मालाबार और डिंडीगुल जैसे क्षेत्र थे।

तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध के समय भारत का गवर्नर कौन था?

इस युद्ध के दौरान लॉर्ड कॉर्नवालिस ( Lord Cornwallis ) ब्रिटिश गवर्नर के पद पर थे।

मंगलौर की संधि कब हुई?

अंत में यह आंग्ल-मैसूर का युद्ध बराबरी के नतीजे पर समाप्त हो गया था और 1784 में मंगलौर की संधि मैसूर और अंग्रेजो के बीच हुई थी। 

श्रीरंगपट्टनम की संधि कब हुई थी?

अंग्रेजों की इस युद्ध में विजय के बाद 1792 में श्रीरंगपट्ट्नम की संधि मैसूर और अंग्रेजो के बीच होती है और इसमें कुछ ऐसी शर्ते होती हैं जो टीपू सुल्तान के लिए एक अपमानजनक संधि साबित होती है।

मैसूर का युद्ध कितनी बार हुआ?

अंग्रेजों और मैसूर के बीच कुल 4 आंग्ल-मैसूर युद्ध हुए थे।

मैसूर का शासक कौन था?

हैदर अली सत्ता के मोह में 1760 में नन्दराज की हत्या कर देता है और अपने आप को स्वतंत्र शासक घोषित करके मैसूर की सत्ता पर कब्ज़ा कर लेता है, हैदर अली की 1782 में मृत्यु के बाद उसका पुत्र “टीपू सुल्तान” मैसूर की सत्ता संभालता है।

टीपू सुल्तान की मृत्यु के बाद मैसूर का शासक कौन बना?

वाडयार वंश के एक अल्प वयस्क को मैसूर की सत्ता पर उसको अंग्रेजों द्वारा बिठा दिया जाता है और अंग्रेजों द्वारा मैसूर के ऊपर जबरदस्ती सहायक संधि लगा दी जाती है। 

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