Battle of Plassey in Hindi – दोस्तों, आज हम प्लासी के युद्ध ( Battle of Plassey ) के बारे में जानेंगे और जैसे की हमने पिछले आर्टिकल में जाना था की कैसे अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपनी विरोधी फ्रांस कंपनी को कर्नाटक युद्ध के माध्यम से उनके भारत में व्यापार करने के सारे रास्ते लगभग खत्म ही कर दिए थे।
उन कर्नाटक युद्धों के बाद अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ही भारत में व्यापार करने वाली सबसे प्रधान यूरोपीय कंपनी बन गई थी।
अब अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में अपना और भी ज्यादा विस्तार करने का प्रयास करने लग गई थी और इन्हीं प्रयासों के क्रम में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत में राज कर रहे भारतीय शासकों से बहुत से युद्ध हुए थे।
इन युद्धों में प्रथम चरण में हमें प्लासी का युद्ध देखने को मिलता है और इसके बारे में हम आज जानेंगे, तो चलिए दोस्तों अब हम प्लासी के युद्ध के बारे में जानें।
सबसे पहले हम इस युद्ध की पृष्ठभूमि ( Background ) के बारे में जानेंगे कि किन परिस्थितियों में यह युद्ध हुआ था।
प्लासी के युद्ध की पृष्ठभूमि ( Background of Battle of Plassey )
हमने जब उत्तर मुग़ल काल के बारे में जाना था की जब औरंगज़ेब की 1707 में मृत्यु हो जाती है तब उसके बाद जितने भी मुग़ल शासक सत्ता सभांलने आते है, वे शासक ज्यादा सक्षम नहीं होते है।
औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद मुग़ल शासकों या यूँ कहें की मुग़ल काल के पतन का दौर शुरू हो जाता है।
इस क्रम में मुगलों के द्वारा जो-जो क्षेत्र जीत लिए गए थे, उनमें से ज्यादातर क्षेत्र अब अपने आप को स्वतंत्र करने के प्रयासों में जुट गए थे।
इन क्षेत्रों में मुख्यतः बंगाल का क्षेत्र था और यह क्षेत्र काफ़ी हद तक इन प्रयासों में सफल भी हो गया था।
उस समय बंगाल का क्षेत्र सिर्फ वर्तमान भारत के बंगाल क्षेत्र जितना नहीं था बल्कि उड़ीसा, बिहार और वर्तमान का बांग्लादेश, इन सब क्षेत्रों को मिलाकर बंगाल कहा जाता था।
इस बंगाल के क्षेत्र में बहुत सारे उद्योग, वस्त्रों का उत्पादन, कपास का उत्पादन भी किया जाता था।
1717 में उस समय शासन कर रहे मुगल शासक फर्रुखसियर ने अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी को पूरे बंगाल क्षेत्र में 3000 रुपए वार्षिक कर के शुल्क के बदले में मुक्त व्यापार करने के लिए अनुमति दे दी थी।
बंगाल की राजनीतिक पृष्ठभूमि ( प्लासी के युद्ध में मुख्य भूमिका )
जिस समय मुग़ल शासक फर्रुखसियर ने अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी को 1717 में मुक्त व्यापार की अनुमति दी थी, उस समय बंगाल के सूबेदार मुर्शिद कुली खां ( 1717 – 1727 ) थे, और वे मुगलों को समय-समय पर अपनी तरफ से नज़राना भी भेजते रहते थे।
जैसे की मुगलों ने अंग्रेजों को भी मुक्त व्यापार करने की बंगाल में अनुमति दे दी थी, इसलिए बंगाल की राजनीतिक शक्तियों और अंग्रेजों में इस वजह से थोड़ा-थोड़ा संघर्ष भी होता रहता था।
मुर्शिद कुली खां के बाद शुजाउद्दीन 1727 से 1739 तक सूबेदार के पद पर रहते हैं और उनके बाद सरफ़राज़ 1739 से 1740 तक सूबेदार के पद पर रहते हैं।
सरफ़राज़ के समय पर एक घटना होती है, जो बंगाल की राजनीति को बदल देती है।
उस समय एक सेनानायक था जिसका नाम अलवर्दी खां था, वह सत्ता पाने के लिए सूबेदार सरफ़राज़ की हत्या कर देता है और 1740 में बंगाल की सत्ता अपने हाथों में ले लेता है।
अलवर्दी खां ने मुगलों को 2 करोड़ का नज़राना भी भेजा था ताकि मुगल उससे कुछ न कहें और ऐसा हुआ भी मुगलों की तरफ से यह नज़राना स्वीकार कर लिया गया और फिर अलवर्दी खां बंगाल की शासन व्यवस्था सभांलने लग गया था।
अलवर्दी खां बंगाल की सत्ता पर 1740 से लेकर 1756 तक रहता है और अपने इस काल में वह बंगाल को एक अलग क्षेत्र अर्थात मुगलों से आज़ाद क्षेत्र बनाने का प्रयास करता है।
इस क्रम में वह अपने काल में जो सबसे पहली बार 2 करोड़ का नज़राना उसने मुगलों को भेजा था, उसके बाद उसने कभी भी मुगलों को नज़राना नहीं भेजा था।
क्यूंकि अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी को भी बंगाल में मुगलों की तरफ से मुक्त व्यापार की अनुमति मिली थी, तो वे भी अपने व्यापार का विस्तार बंगाल में बढ़-चढ़कर कर रहे थे।
अंग्रेजों के इस विस्तार और उनकी बंगाल में मजबूत हो रही स्थिति पर अलवर्दी खां की नज़र भी थी, जिसके बाद उसने इन यूरोपीय कंपनियों को “मधुमक्खी के छत्ते” की संज्ञा दी थी।
इसका तात्पर्य यह था की जैसे मधुमक्खी के छत्ते से अगर प्यार से शहद निकाला जाए तो कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन अगर उनको चोट पहुंचाई जाए तो वे मधुमक्खियां जानलेवा भी हो सकती हैं और ये यूरोपीय कंपनियां भी कुछ इसी प्रकार की थीं।
1756 में अलवर्दी खां की मृत्यु हो जाती है और उसके बाद सत्ता पर कौन आएगा इसको लेकर प्रश्न खड़े हो जाते हैं, क्यूंकि अलवर्दी खां की सारी संतानों में उसका एक भी पुत्र नहीं था।
उसकी तीन बेटियां थी और उनके भी विवाह हो चुके थे, पटना, ढाका और पुरनिया में उसकी तीनों बेटियों की शादी हो चुकी थी।
अलवर्दी खां का कोई भी पुत्र न होने के कारण उसकी जिस बेटी का विवाह पटना में हुआ था, उस बेटी के पुत्र को अलवर्दी खां के बाद बंगाल की सत्ता प्राप्त हो गई थी अर्थात अलवर्दी खां के नाती को उसकी गद्दी प्राप्त हो गई थी और उसका नाम “सिराजुद्दौला“ था।
सिराजुद्दौला को 1756 में बंगाल की सत्ता प्राप्त होती है, उसके सत्ता में आने के बाद बहुत सारे लोगों में जलन की भावना पैदा होने लगती है।
जैसे की हमने बताया की अलवर्दी खां की तीन बेटियाँ थी, जिसमे से एक बेटी के पुत्र को बंगाल की सत्ता प्राप्त हो जाती है, जिस कारण अलवर्दी खां की बाकी दो बेटियाँ यानी की सिराजुद्दौला की मौसियां इससे जलने लगती है और वे चाहती थी की सिराजुद्दौला की जगह उन्हें सत्ता प्राप्त हो जाए।
इसके साथ-साथ सिराजुद्दौला के दरबार में भी बहुत लोग ऐसे थे जिनसे सिराजुद्दौला की नहीं बनती थी।
इस प्रकार सिराजुद्दौला के विरोध में बहुत सारे लोगों के होने के कारण और एक प्रकार से आंतरिक कलह होने के कारण, उसके सत्ता खोने के बहुत सारे मार्ग बनने लग गए थे।
दोस्तों, अंग्रेजों ने भी इस बंगाल की सत्ता के लिए आंतरिक कलह को भाँप लिया था और वे भी इस आंतरिक कलह से कोई न कोई मौका ढूंढ़कर इससे अपना फ़ायदा लेना चाहते थे और यही अंग्रेजों की प्रमुख नीतियों में से एक थी जिस कारण उन्होंने सिर्फ बंगाल ही नहीं लगभग पूर्ण भारत पर ही अपना कब्ज़ा कर लिया था।
सिराजुद्दौला का अंग्रेजों के साथ संघर्ष
Battle of Plassey in Hindi – सिराजुद्दौला के समय यूरोपीय कंपनियां जोरो-शोरों से अपना विस्तार बंगाल में कर रही थी, इन कंपनियों में मुख्यतः अंग्रेजी और फ्रांसीसी कंपनी थी।
जैसे की हमने हमारे भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन वाले आर्टिकल में भी पढ़ा था की अंग्रेजी और फ्रांस जैसी यूरोपीय कंपनियां भारत में अलग-अलग क्षेत्रों में अपने-अपने किलों का भी निर्माण करवाते हैं।
इसी क्रम में ये कंपनियां अपनी-अपनी किलेबंदी का कार्य शुरू कर देते हैं और सिराजुद्दौला ने इन कंपनियों के विस्तार को रोकने के लिए इन्हें अपनी-अपनी किलेबंदी के कार्य को रोकने का आदेश दे दिया था।
सिराजुद्दौला के किलाबंदी का कार्य रोकने के इस आदेश को फ्रांसीसी कंपनी द्वारा मान लिया जाता है, परंतु अंग्रेजी कंपनी इस आदेश को नहीं मानती है और अपने इस किलेबंदी के कार्य को बंद नहीं करती है।
जिस किलेबंदी का कार्य अंग्रेजी कंपनी कर रही थी उसका नाम फोर्ट विलियम था, जिसका कार्य कलकत्ता में चल रहा था।
अंग्रेजी कंपनी के सिराजुद्दौला के इस आदेश को न मानने के कारण, 1756 में जिस वर्ष सिराजुद्दौला को बंगाल की सत्ता प्राप्त होती है, उसी वर्ष वह अंग्रेजों के इस फोर्ट विलियम पर आक्रमण कर देता है और इस आक्रमण में अंग्रेजों को पराजय का सामना करना पड़ता है।
इस आक्रमण और अंग्रेजी कंपनी की पराजय की सूचना मद्रास में ब्रिटिश गवर्नर रॉबर्ट क्लाइव ( Robert clive ) को प्राप्त होती है और वे अपनी सेना बंगाल में मदद के लिए भेज देते हैं।
ब्लैक होल की घटना ( Incident of Black Hole )
सिराजुद्दौला के अंग्रेजी कंपनी को हराने के बाद एक अंग्रेजी सेनानायक जिनका नाम जॉन सपन्याह होलवेल ( John Zephaniah Holwell ) था, उन्होंने अपनी एक बात दुनिया के सामने रखी थी।
उन्होंने बताया कि सिराजुद्दौला ने अंग्रेजों के साथ बहुत गलत किया है, उन्होंने अपनी बात में बताया की सिराजुद्दौला ने लगभग 146 अंग्रेजों को एक 14/18 के कमरे में बंद कर दिया था।
इस 14/18 के कमरे को सिराजुद्दौला ने अगली सुबह खुलवाया और दम घुटने की वजह से उस कमरे में केवल 23 अंग्रेज ही बच पाए थे और उन 23 जीवित बचे अंग्रेजों में से जॉन सपन्याह होलवेल ( John Zephaniah Holwell ) भी एक व्यक्ति थे।
यह घटना 20 जून, 1756 को घटित हुई थी और इस घटना को ब्लैक होल ( Black Hole ) के नाम से जाना जाता है, इसके साथ-साथ इसे कालकोठरी की घटना कहकर भी संबोधित किया जाता है।
इस घटना को सत्य मानने के ऊपर अलग-अलग इतिहासकारों के अलग-अलग मत है, कुछ इतिहासकार इस घटना को सत्य मानते हैं और कुछ इतिहासकार इस घटना को अंग्रेजों की सिराजुद्दौला के विरुद्ध एक नकली कहानी के रूप में मानते हैं।
इस प्रकार दो बाते सामने निकल कर आती है, या तो सिराजुद्दौला ने सत्य में इस घटना को अंजाम दिया था और या तो अंग्रेजों ने उसके विरुद्ध कोई झूठी कहानी बुनी थी ताकि वह दुनिया के सामने गलत दिख सके।
प्लासी के युद्ध के लिए इस घटना को एक प्रकार से युद्ध का तात्कालिक कारण के रूप में भी देखा जाता है।
जब सिराजुद्दौला ने अंग्रेजों को हराया था तो दोनों पक्षों में अलीनगर की संधि भी होती है, अलीनगर कलकत्ता का पुराना नाम था और यह नाम सिराजुद्दौला ने दिया गया था।
इस संधि में दोनों पक्षों ने यह निर्णय लिया था की दोनों पक्ष एक दूसरे के कार्यों या आंतरिक मामलों में कोई दखलअंदाज़ी नहीं करेंगे।
प्लासी का युद्ध 1757 ( Battle of Plassey 1757 )
सिराजुद्दौला से हार और ब्लैक होल ( Black Hole ) की घटना के बाद अंग्रेज सिराजुद्दौला से बदला और उसके क्षेत्र पर अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए रास्ते खोजने लग गए थे।
अंग्रेजों ने अलीनगर की संधि से उलट अपने कार्यों को किया, जैसे की हमने ऊपर बताया था की सिराजुद्दौला के सत्ता प्राप्त करने से बहुत सारे लोगों में जलन पैदा होने लग गई थी, जिसमे उसकी दोनो मौसियां और उसके दरबारी भी शामिल थे।
सिराजुद्दौला की इस आंतरिक कलह को अंग्रेजों ने अपना अवसर बना लिया और अपनी कूटनीति का प्रयोग करते हुए सिराजुद्दौला के विरुद्ध लोगों को अपने साथ मिला लिया था।
अंग्रेजों और सिराजुद्दौला के विरुद्ध लोगों ने मिलकर सिराजुद्दौला के खिलाफ आंतरिक षड्यंत्र रचा था।
अंत में अंग्रेजों और सिराजुद्दौला के बीच बंगाल के प्लासी नामक स्थान में “प्लासी का युद्ध” हुआ था, यह युद्ध 23 जून 1757 को हुआ था और जैसे की सिराजुद्दौला के विरुद्ध बहुत सारे लोग थे जिन्होंने सिराजुद्दौला को धोखा देकर अंग्रेजों का साथ दिया था, इस कारण यह प्लासी का युद्ध थोड़े ही समय में समाप्त भी हो गया था।
इस प्लासी के युद्ध में जिन लोगों ने सिराजुद्दौला को धोखा देकर अंग्रेजों का साथ दिया था, वे कुछ इस प्रकार हैं:
1. | मीर ज़ाफर ( सिराजुद्दौला का सेनापति ) |
2. | घसीटी बेगम ( सिराजुद्दौला की मौसी ) |
3. | राय दुर्लभ ( दीवान ) |
4. | जगत सेठ ( बैंकर, एक धनाढ व्यक्ति ) |
5. | अमीनचंद ( व्यापारी ) |
सिराजुद्दौला को इस युद्ध में इतने सारे लोगों के धोखे और षड्यंत्र के बाद पराजय का सामना करना पड़ा और अंग्रेजों को इस युद्ध में विजय प्राप्त हुई थी।
इतने सारे लोगों के धोखा देने के क्रम में दो सेनानायक ऐसे थे जिन्होंने सिराजुद्दौला का इस प्लासी के युद्ध में सहयोग किया था और उनका नाम मीर मदान और मोहन लाल था।
इस युद्ध में अंग्रेजों की जीत के बाद सिराजुद्दौला को जान से मार दिया जाता है और अंग्रेज उसके सेनापति मीर ज़ाफर, जिसने सिराजुद्दौला को इस युद्ध में धोखा और अंग्रेजों का साथ दिया था, उसे अंग्रेज बंगाल का नवाब बना देते हैं।
प्लासी के युद्ध में ब्रिटिश गवर्नर रॉबर्ट क्लाइव ( Robert clive ) ने अंग्रेजी कंपनी की सेना का नेतृत्व किया था।
इस प्रकार बंगाल की सत्ता का मोह और आंतरिक कलह अंग्रेजों के लिए एक बहुत बड़ा अवसर साबित हो जाता है।
Battle of Plassey in Hindi – प्लासी का युद्ध
हम आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दी गई Battle of Plassey in Hindi ( प्लासी का युद्ध ) के बारे में जानकारी आपके लिए बहुत उपयोगी होगी और आप इससे बहुत लाभ उठाएंगे। हम आपके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं और आपका हर सपना सच हो।
धन्यवाद।
बार बार पूछे जाने वाले प्रश्न
सिराजुद्दौला को 1756 में बंगाल की सत्ता प्राप्त होती है, अंत में अंग्रेजों और सिराजुद्दौला के बीच बंगाल के प्लासी नामक स्थान में “प्लासी का युद्ध” हुआ था
प्लासी का युद्ध क्यों हुआ?
सिराजुद्दौला से हार और ब्लैक होल ( Black Hole ) की घटना के बाद अंग्रेज सिराजुद्दौला से बदला और उसके क्षेत्र पर अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए रास्ते खोजने लग गए थे। अंग्रेजों ने अपनी कूटनीति का प्रयोग करते हुए सिराजुद्दौला के विरुद्ध लोगों को अपने साथ मिला लिया था
सिराजुद्दौला की हार का मुख्य कारण क्या था?
सिराजुद्दौला को इस युद्ध में इतने सारे लोगों के धोखे और षड्यंत्र के बाद पराजय का सामना करना पड़ा और अंग्रेजों को इस युद्ध में विजय प्राप्त हुई थी।
प्लासी के युद्ध में आप किसे निर्णायक मानते हैं और क्यों?
बंगाल की सत्ता का मोह और आंतरिक कलह अंग्रेजों के लिए एक बहुत बड़ा अवसर साबित हो जाता है।
अलीनगर की संधि कब और किसके बीच हुई?
जब सिराजुद्दौला ने अंग्रेजों को हराया था तो दोनों पक्षों में अलीनगर की संधि भी होती है, अलीनगर कलकत्ता का पुराना नाम था और यह नाम सिराजुद्दौला ने दिया गया था। इस संधि में दोनों पक्षों ने यह निर्णय लिया था की दोनों पक्ष एक दूसरे के कार्यों या आंतरिक मामलों में कोई दखलअंदाज़ी नहीं करेंगे।