Gulam Vansh in hindi – मध्य कालीन भारतीय इतिहास में इस्लामिक आक्रमणों के बाद एक सल्तनत काल का जन्म हुआ। यह काल भारत के मध्य कालीन इतिहास का एक महत्वपूर्ण अंग है जिसे भुलाया नहीं जा सकता है और इस काल को हम दिल्ली सल्तनत काल के रूप में जानते है।
हमने history of delhi in hindi वाले आर्टिकल में इस दिल्ली सल्तनत काल के वंशो और उनके प्रमुख सुल्तानों की सूची बताई थी, आज से हम इन्ही वंश और इनके प्रमुख सुल्तान जिन्होंने कुछ महत्वपूर्ण कार्य करके इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया है, उनके बारे में विस्तार से जानेंगे।
आज हम सबसे पहले Gulam Vansh के बारे में पढ़ेंगे या इसको मम्लूक वंश भी कहा जाता है। दिल्ली सल्तनत काल की शुरुवात सबसे पहले gulam vansh से ही हुई थी।
Gulam Vansh in hindi – जब भारत में 1175 ईस्वी में मुहम्मद गोरी ने इस्लामिक आक्रमण करे तब उसने लगभग सभी राजाओं को हरा कर भारत में इस्लामिक राज्य की स्थापना कर दी थी, लेकिन उसने यहाँ स्वयँ शाशन नहीं किया, उसने अपने विश्वाशी दास क़ुतुब्दीन ऐबक को भारत में राज संभालने के लिए रखा हुआ था।
1206 ईस्वी में जब वापस लौटते समय गोरी की हत्या कर दी गयी तब क़ुतुब्दीन ऐबक जो गोरी का विश्वाशी दास था उसने भारत की कमान संभाली और यहाँ दिल्ली सुल्तनत की शुरुवात कर दी और इसमें सबसे पहले आया gulam vansh।
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Gulam Vansh in hindi – Gulam Vansh या दास वंश में सिर्फ तीन शाहक ही दास थे, इसलिए कुछ इतिहासकारो का मानना है की इसे gulam vansh कहना गलत होगा इसलिए कुछ जगहों पर आपको ये मम्लूक वंश के नाम से भी मिलेगा, आइये विस्तार से जाने:
Gulam vansh (1206-1290)
- क़ुतुब्दीन ऐबक (1206-1210)
- आरामशाह (1210)
- शम्सउद-दिन इल्तुतमिश (1210-1236)
- रज़िया सुल्तान (1236-40)
- बेहरामशाह (1240-1242)
- अलाऊद्दीन मसूदशाह (1242-1246)
- नासिरुद्दीन महमूद (1246-1266)
- बलबन (1266-1287)
- कैकुबाद (1287-1290)
- क्यूमर्स (1290)
क़ुतुब्दीन ऐबक ( 1206-1210 )
गोरी की मृत्यु के बाद 1206 में ऐबक ने gulam vansh की स्थापना की जो उसका विश्वाशी दास था। ऐबक के पूर्वज तुर्की थे और वह तुर्क जनजाति से ताल्लुक रखता था।
बचपन के दिनों में उसे निशापुर के एक क़ाज़ी ने अपने दास के रूप में खरीद लिया था और उस क़ाज़ी के द्वारा वह मुहम्मद गोरी का दास बना, इसका मतलब यह है की वो बचपन से ही दास प्रवर्ति में ही बड़ा हुआ था।
जब उसके पास भारत की गद्दी आयी और उसने gulam vansh की स्थापना की, तब उसने लाहौर से ही जो उस समय पश्चिमी भारत में था वहाँ से ही अपना राज संभाला और लाहौर को ही अपनी राजधानी बनाई।
इस्लामिक धर्म में ये प्रथा थी किसी को अगर सुल्तान बनना है तो उसे पहले ख़लीफ़ा से इज़ाज़त लेनी पड़ती थी, लेकिन ऐबक ने खलीफा से कोई इज़ाज़त नहीं ली बिना सुल्तान की उपाधि धारण किये ही लाहौर से शाशन करने लगा।
ऐबक बहुत ही दानी प्रवर्ति का इंसान था, और वह लोगो में दान करता रहता था इसलिए उसे “लाख बक्श” के नाम से भी जाना जाता था।
उसके द्वारा किये गए निर्माण कार्य
⇒ उसने दिल्ली में “कुव्वत-उल-इस्लाम” नमक एक मस्जिद बनवाया।
⇒ उसने अजमेर में “ढाई दिन का झोपड़ा” नमक एक मस्जिद का निर्माण करवाया जो पहले विद्यालय के रूप में जाना जाता था और इस विद्यालय का निर्माण विग्रहराज ने करवाया था जो चौहान वंश के शाशक थे।
⇒ उसने दिल्ली में “क़ुतुब मीनार” की नींव रखी लेकिन उसका कार्य पूरा आगे इल्तुतमिश ने करवाया और उसने क़ुतुब मीनार “क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी” के नाम पर, जो कि एक सूफी संत थे, उनके नाम पर इसकी नींव रखी थी।
दुर्भाग्यवश उसे शाशन करने का ज्यादा समय नहीं मिल पाया और 1210 में उसकी एक खेल खेलते हुए जिसे चौगान कहते है यह आधुनिक समय के पोलो खेल जैसा है, उसमे उसकी मृत्यु हो गयी।

आरामशाह ( 1210 )
ऐबक की मृत्यु के बाद उसके पुत्र गद्दी सँभालने के लिए आया, लेकिन वह अपने पिता से भी कम समय तक शाशक रह पाया और क़ुतुब्दीन ऐबक के दास इल्तुतमिश ने आरामशाह की हत्या कर दी।
शम्सउद-दिन इल्तुतमिश ( 1210-1236 )
इल्तुतमिश क़ुतुब्दीन ऐबक का दास होने के साथ साथ उसका दामाद भी था।
जैसा की हमने आपको बताया की ऐबक ने खलीफा से सुल्तान बनने की स्वीकृति नहीं ली थी, लेकिन इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत का पहला शाशक बना जिसने सुल्तान की उपाधि ली थी और खलीफा ने उसे “खिल्लवत” नामक उपाधि दी।
इल्तुतमिश को gulam vansh या यूँ कहे की पूरे दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है, क्यूंकि ऐबक को शाशन करने का बहुत ही कम समय मिला और वह अपने साम्राज्य एक मजबूत आधार नहीं दे पाया लेकिन इल्तुतमिश ने अपने साम्राज्य को एक मजबूत आधार दिया।
इल्तुतमिश ने अपना राज कार्य दिल्ली से करना शुरू किया और बाद में दिल्ली को ही अपनी राजधानी बनाई।
इल्तुतमिश के द्वारा किये गए कार्य
उसने एक नई प्रथा आरंभ की जिसे “इक्ता” कहा जाता था, यह प्रथा भू-राजस्व से जुडी थी, इसमें जमींदारों को जमीन दी जाती थी और बदले में उनसे कर वसूला जाता था, उसने 40 सरदारों को मिला के एक समूह तैयार किया, जिसे “तुर्कान-ऐ-चिहलगानी” कहा कहा जाता था, ये उसने अपने खिलाफ हो रहे विद्रोहों को दबाने के लिए किया।
उसने कुछ शुद्ध अरबी सिक्के चलवाये:
⇒ उसने चांदी से बने सिक्के चलवाये जिसे “टंका” कहा जाता था।
⇒ उसने ताम्बे से बने सिक्के चलवाये जिसे “जीतल” कहा जाता था।
जिस क़ुतुबमीनार की नींव ऐबक ने रखी थी, उसका कार्य इल्तुतमिश ने पूरा करवाया।
उसने अपने समय में भारत पे होने वाले बाहरी हमलो को भी कुशलता पूर्वक रोका, “चंगेज़ खां” जो एक मंगोल शाशक था उसने भारत पे उत्तर-पश्चिमी सीमा से आक्रमण इल्तुतमिश के समय किया था।
इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद उसका पुत्र “रूकनुदीन फ़िरोज़” शाशक बना।

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रज़िया सुल्तान ( 1236-40 )
इल्तुतमिश ने मृत्यु से पूर्व अपनी पुत्री रज़िया सुल्तान को शशिका नियुक्त किया था, लेकिन बाकी लोग रूकनुदीन फ़िरोज़ को शाशक बनाना चाहते थे, इसलिए वह शाशक बना लेकिन वह बहुत ही अयोग्य शाशक था, इसलिए रज़िया सुल्तान ही शशिका के रूप में आयी।
रज़िया सुल्तान भारत की पहली मुस्लिम होने के साथ साथ पहली महिला शाशक भी बनी।
उसने एक याकूत नामक व्यक्ति को जो एक उच्च कुल का मुस्लमान नहीं था, उसे एक बड़ा पद जो एक अश्वशाला (जहा घोड़े रखे जाते है), वहां का प्रधान बना दिया था, जिससे की दरबार के लोग नाखुश थे, की कैसे एक निम्न् वर्गीय सख्श को कैसे इतना बड़ा पद मिल सकता है।
रज़िया सुल्तान के खिलाफ विद्रोह
उन सब ने मिलके भटिंडा के सूबेदार “अल्तुनिया” को एक पैगाम भेजा और आग्रह किया, की रज़िया सुल्तान में शाशक बनने लायक गुण नहीं है कृपया आप आक्रमण करके रज़िया सुल्तान को हराइये।
अल्तुनिया आक्रमण करता है और याकूत की हत्या कर देता है, और रज़िया सुल्तान को बंदी बना लेता है। रज़िया सुल्तान अपनी गद्दी वापस पाने के लिए अल्तुनिया से विवाह कर लेती है और दोनों भटिंडा चले जाते है, उस समय दिल्ली की गद्दी खाली पाकर इल्तुतमिश का एक और पुत्र “बहरामशाह” गद्दी पर बैठ जाता है।
जैसे ही रज़िया सुल्तान और अल्तुनिया को यह खबर मिलती है तो वे बहरामशाह के विरुद्ध अभियान चलाते है, लेकिन बहरामशाह उन दोनों की 1240 में हत्या करवा देता है।

बेहरामशाह (1240-1242), अलाऊद्दीन मसूदशाह (1242-1246), नासिरुद्दीन महमूद (1246-1266), रज़िया सुल्तान के बाद ये सुल्तान आते है लेकिन इनका प्रभाव बहुत कम रहता है और ये बस शाशन नाम मात्र के लिए चलाते है।
बलबन ( 1266-1287 )
बलबन gulam vansh के प्रमुख शाशको की श्रेणी में आता है, वह इल्तुमिश का दास था और उसके बनाये हुए समूह “तुर्कान-ऐ-चिहलगानी” का सदस्य था।
उसने अपनी पुत्री का विवाह नासिरुद्दीन महमूद से करवा दिया जो उस समय शाशन कर रहा था। धीरे धीरे उसका प्रभाव सुल्तान के ऊपर पड़ने लगा और बाद में उसने अपने ही दामाद यानि नासिरुद्दीन महमूद को गद्दी से हटवा के उसकी हत्या करवा दी और उसकी जगह खुद ही शाशक बन गया।
उसका पूरा नाम “गयासुद्दीन बलबन” था। नासिरुद्दीन महमूद ने बलबन को “उलुग खां” की उपाधि दे रखी थी।
बलबन बहुत ही मजबूत शाशक था, और अपनी मजबूती बनाये रखने के लिए उसने “रक्त और लौह” की निति भी चलाई थी, जिसका मतलब था की तलवार की दम पर शाशन करना।
देवत्व का सिद्धांत
उसने “देवत्व का सिद्धांत” दिया, जिसमे वह कहता था, की वो ईश्वर का प्रतिनिधि है और ईश्वर ने ही उसे धरती में राजा बनने के लिए भेजा है और इसी उपलक्ष में उसने अपने आप को “जिल्ले अल्लाह” कहा मतलब ईश्वर का प्रतिनिधि।
निरंकुशता का सिद्धांत
उसने “निरंकुशता का सिद्धांत” भी दिया जिसमे उसने कहा की अगर कोई साम्राज्य के कार्यो में बाधा उत्पन करे तो राजा को उसकी हत्या करने से पीछे नहीं हटना चाहिए।
इल्तुतमिश के बनाये हुए समूह तुर्कान-ऐ-चिहलगानी से बलबन के खिलाफ विद्रोह उत्पन हो रहे थे तो उसने उस समूह को भी समाप्त कर दिया।
बलबन के द्वारा चलाये गए नए कार्य
⇒ उसने एक नए सैन्य विभाग का निर्माण करवाया जिसे “दीवाने-ऐ-अर्ज” का नाम दिया गया।
⇒ उसने “सिजदा” नामक प्रथा चलाई जिसमे कोई भी अगर दरबार में आएगा तो वह सुल्तान को झुख कर सम्मान देगा और “पाबोस” प्रथा चलाई जिसमे लोगो को उसके पैरो को चुमना पड़ता था।
⇒ उसने एक फ़ारसी त्यौहार “नौरोज़” शुरू करवाया।
बलबन के समय में भी मंगोलो का हमला हुआ और उसने कुशलता पूर्वक अपने साम्राज्य को मंगोलो से बचाया।
इतिहास के बहुत बड़े कवि और लेखक “आमिर खुसरो” और “आमिर हसन” बलबन के दरबार में रहते थे।

Gulam Vansh in hindi
Gulam Vansh in hindi – “कैकुबाद” (1287-1290), बलबन की मृत्यु के बाद कैकुबाद शाशक बनता है, लेकिन वह एक अयोग्य शाशक के रूप में आता है और उसके बाद उसका पुत्र “क्यूमर्स” (1290) शाशक बनता है, जिसकी हत्या हो जाती है और उसके बाद दिल्ली सल्तनत के दुसरे वंश “khilji vansh” की स्थापना हो जाती है।
हम आशा करते हैं कि हमारे द्वारा Gulam Vansh in hindi के बारे में दी गई जानकारी आपके लिए बहुत उपयोगी होगी और आप इससे बहुत लाभ उठाएंगे। हम आपके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं और आपका हर सपना सच हो।
धन्यवाद।
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