history of delhi in hindi – दोस्तों, आज हम बात करेंगे, अपनी प्यारी दिल्ली के बारे में, जो हमारे देश की राजधानी होने के साथ साथ देश का राजनीतिक केंद्र भी है। दिल्ली का इतिहास हजारों साल पुराना है।
दिल्ली की धरती पर कई युद्ध लड़े गए कई राजनीतिया हुई, बहुत कुछ देखा है दिल्ली की धरती ने अपने इतिहास में, और देखते देखते यह आधुनिक काल का दिल्ली शहर बहुत बदल गया है चलिए आज जानते इसके इतहास से लेकर वर्तमान तक की कहानी को।
दिल्ली का धार्मिक इतिहास
वैसे तो दिल्ली का अस्तित्व हमें महाभारत काल में भी सुनने को मिलता है, जब कौरवों ने पांडवों को लाक्षागृह में मारने की साजिश रची थी और वे उसमें नाकाम हो गए थे, तब पांडवों ने वापिस आ कर उनके लिए एक अलग भूमि की मांग की, तब उन्होंने हस्तिनापुर के सम्राट धृतराष्ट्र से खांडवप्रस्थ की भूमि राज करने के लिए मांगी, ताकि वे अलग रह सके और भाइयो में कोई लड़ाई न हो।


उन्होंने उस बंजर भूमि को जिसमे बहुत से जहरीले जानवर रहते थे, जहां जंगल ही जंगल हुआ करता था उस भूमि को अपने नेक कर्मों से आबाद किया और उसे एक रहने लायक स्थान बनाया और वहां अपना राज करने लगे, और बाद में उन्होंने वहा का नाम इन्द्रप्रस्थ रख दिया, उसे ही हम आज दिल्ली के नाम से जानते है।
दिल्ली का इतिहास
history of delhi in hindi – प्राचीन भारतीय इतिहास में जहाँ उत्तर भारत में 322-185 ईसापूर्व के आसपास एक बड़ा मौर्या वंश और उनके बाद कुछ छोटे वंश जैसे शक वंश, कुषाण वंश, और उनके बाद 275 ईसवी के आसपास एक और बड़ा वंश गुप्त वंश ने उत्तर भारत के बड़े क्षेत्रफल पर राज किया
लेकिन इन सभी वंशो के पतन के बाद उत्तर भारत में राज्य अलग अलग होने लगे और उनके आपस में मतभेद भी होने लगे।
इन्ही चीजों जैसे राज्यों में एकता न होने और आपस में ही झगड़ों से भारत के नींव कमजोर पड़ती गयी और कुछ बाहरी ताकतों ने इन चीजों का फायदा उठाकर हमले करना शुरू कर दिया, और बहुत सारा धन लूट के ले जाने लगे।
उस समय आठवीं शताब्दी के आसपास राजपूतो के तोमर वंश दिल्ली पे राज कर रहे थे, इन्होंने ने ही दिल्ली की नींव रखी थी। तोमर वंश के संस्थापक थे अनंगपाल तोमर प्रथम। राजा अनंगपाल ने लालकोट किला बनवाया था जिसे हम क़िला राय पिथोरा के नाम से भी जानते है और इसकी दीवारें हमें दक्षिणी दिल्ली के कई हिस्सों में देखने को मिल जाएगी।
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बारवी शताब्दी तक तोमर वंश का सम्पति का दौर आ गया और अनंगपाल द्वितीय के द्वारा दिल्ली का सिंहासन अजमेर के पृथ्वी राज चौहान तृतीय को दे दिया गया। अनंगपाल द्वितीय रिश्ते में पृथ्वी राज चौहान तृतीय के नाना लगते थे।

अरब और तुर्कियों का अक्रमण
अब हम आपको दोबारा थोडा सा पीछे लेकर चलते है ताकि आपको अच्छे से समझ आ सके। जैसा की हमने आपको पहले बताया कि मौर्य और गुप्त वंश के बाद धीरे धीरे भारत की नींव कमजोर होती गयी, इसका फायदा उठाकर कुछ बाहरी ताकतों ने हमले करने शुरू कर दिए, और सबसे पहला हमला अरबो की तरफ से हुआ।
712 ईसवी में मोहम्मद बिन कासिम ने पहले ही प्रयास में युद्ध जीत लिया वह सिंध के रास्ते भारत आया था। इसी के आने से भारत में पहली बार इस्लाम धर्म का प्रवेश हुआ।
इसे देखते हुए तुर्कियो ने भी सोचा की क्यों न हम भी भारत पर आक्रमण करे और धन लूटें, और भारत में पहला तुर्क आक्रमण महमूद गजनवी ने करा और उसने करीब 17 हमले कर भारत का अपार खजाना लूटा।
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इसके बाद मुहम्मद गोरी ने हमला किया जिसका उद्देश्य खज़ाने के साथ साथ भारत पर मुस्लिम राज्य की स्थापना करना था।
- 1175 ईसवी में पहला आक्रमण मुलतान पर किया।
- 1178 में उसकी भारत में प्रथम पराजय हुई।
- 1191 ईसवी में प्रथम तराईन युद्ध दिल्ली में राज कर रहे पृथ्वी राज चौहान से हुआ जिसमें गौरी की हार हुई।
- 1192 ईसवी में द्वितीय तराईन युद्ध फिरसे पृथ्वी राज चौहान के साथ हुआ और दुर्भाग्य पूर्ण पृथ्वी राज चौहान की हार हुई।
और इससे पृथ्वी राज चौहान भारत के आखरी हिन्दू शाशक के रूप में भी जाने जाते है।
इस युद्ध के बाद से ही भारत में मुस्लिम राज्य का परचम लहराया। इसके बाद गौरी ने कई युद्ध लड़े और उनमें जीत हासिल कर पूर्ण रूप से उत्तर भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना कर दी।
उसने अपने दास या गुलाम को भारत में राज करने के लिए रख दिया और वो दास था कुतुबुद्दीन ऐबक। गौरी की मृत्यु 1206 ईसवी में हुई और उसके बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने दास वंश या गुलाम वंश की शुरुआत करदी और वह लाहौर से अपना शाशन करने लगा।
दिल्ली सल्तनत का दौर (1206 – 1526)
1206 के बाद से दिल्ली सल्तनत का आगाज़ हुआ इसमें सबसे पहले गुलाम वंश आया जिसमे बहुत सुल्तान आये उनमें से कुछ महत्वपूर्ण सुल्तान इस प्रकार है:
गुलाम वंश / ममलूक वंश
- क़ुतुब्दीन ऐबक (1206-1210)
- आरामशाह (1210)
- शम्सउद-दिन इल्तुतमिश (1210-1236)
- रज़िया सुल्तान (1236-40)
- बेहरामशाह (1240-1242)
- अलाऊद्दीन मसूदशाह (1242-1246)
- नासिरुद्दीन महमूद (1246-1266)
- बलबन (1266-1287)
- कैकुबाद (1287-1290)
- क्यूमर्स (1290)

क़ुतुब्दीन ऐबक की मृत्यु बाद उसके पुत्र आरामशाह सुल्तान बना परन्तु उसकी हत्या क़ुतुब्दीन ऐबक के गुलाम इल्तुमिश ने की और खुद सुल्तान बन गया और उसने दिल्ली को अपनी राजधानी बनायी।
खिलजी वंश
- जलालुदीन फिरोज खिलजी (1290-1296)
- अल्लाउदीन खिलजी (1296-1316)
- मुबारक शाह (1316-1320)
- नसीरूदीन ख़ुसरो खा (1320)
तुगलक वंश
- गयासुद्दीन तुगलक (1320-1325)
- मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1351)
- फ़िरोज़शाह तुगलक (1351-1388)
- नसीरुद्दीन महमूद तुगलक (1394-1412)
सैय्यद वंश
- खिज्र खां (1414-1421)
- मुबारक शाह (1421-1434)
- मुहम्मद शाह (1434-1443)
- आलम शाह (1443-1451)
लोदी वंश
- बहलोल लोदी (1451-1489)
- सिकंदर लोदी (1489-1517)
- इब्राहिम लोदी (1517-1526)
मुगल साम्राज्य का आगमन (1526-1857)
1526 में बाबर भारत आया और प्रथम पानीपत के युद्ध में लोदी वंश के आखरी सुल्तान इब्राहिम लोदी को मारकर दिल्ली सल्तनत का पूर्ण खात्मा कर दिया और मुग़ल वंश की स्थापना की।
इस युद्ध में बाबर ने तोपों का इस्तेमाल किया था और भारत में पहली बार तोपों का इस्तेमाल हुआ था।

बाबर का पूरा नाम जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर था, उसके पिता उमर शेख़ मिर्ज़ा थे और वह तैमूर का वंशज था। मुग़ल वंश के शाशक कुछ इस प्रकार है:
- बाबर (1526-1530)
- हुमायूँ (1530-40) (1555-1556)
- अकबर (1556-1605)
- जहांगीर (1605-1627)
- शाहजहां (1627-1658)
- औरंगजेब (1658-1707)
मुगलो का शाशन औरंगजेब तक ही शक्तिशाली बना रहा उसके बाद जितने भी मुग़ल शाशक आये उन सब के शाशन में मुग़ल साम्राज्य धीरे धीरे कमजोर पड़ने लगा।
शेर शाह सूरी का दिल्ली में आगमन (1540-1555)
शेर शाह सूरी ने दिल्ली में सूर वंश की स्थापना की, शेर शाह सूरी बिहार में अपनी रियासत चला रहे थे, उस समय मुग़ल बादशाह हुमांयूं दिल्ली में अपना शाशन चला रहा था।
हुमायूँ ने अपना साम्राज्य बड़ा करने के लिए शेर शाह सूरी से युद्ध किया परंतु उसकी हार हुई और वह भाग खड़ा हुआ और फिर दिल्ली पे 1540 ईसवी में शेर शाह सूरी का शाशन हो गया।
उन्होंने उस समय कई बड़े काम किये जैसे भारत में पहली बार रूपया कि मुद्रा चलाने का श्रेय उनको जाता है।
लेकिन 1545 ईसवी में महोबा के राजपूतो के खिलाफ बुंदेलखंड के युद्ध में कालिंजर के किले में चढाई करते समय उन्होंने किले की दीवारों को बारूद से उड़ाने का हुक्म दिया, और बारूद फटने से वह स्वयं ही जख्मी हो गए और उनकी मृत्यु हो गयी।
शेर शाह सूरी के बेटे और पोतों में शाशन करने की क्षमता बहुत ज्यादा कम थी और इसी बात का फायदा उठाकर हुमायूँ ने दुबारा सूर वंश पर हमला कर अपना मुग़ल सम्राज्य दुबारा दिल्ली में कायम कर दिया, और इसके बाद तो मुग़ल साम्राजय बहुत लम्बे वक़्त तक दिल्ली से अपना राज करते रहे।
यूरोपियन कंपनियों का भारत आना और अंग्रेजो का भारत पर कब्ज़ा और दिल्ली को अपनी राजधानी बनाना
जिस समय दिल्ली में मुग़ल शाशन का परचम था उस समय बहुत सारी विदेशी कंपनियां भी भारत में फायदा देख कर यहाँ कारोबार करने के लिए आई। आइये उनका क्रम देखे:
- पुर्तगाली: 1498
- डच : 1595
- अंग्रेज : 1600
- फ्रेंच : 1664
इन क्रमों में यह कम्पनियाँ भारत में अपना कारोबार करने के लिए आई। पहले तो ये कंपनियां भारत में सिर्फ अपना कारोबार करने के लिए आई लेकिन, धीरे धीरे समय के साथ साथ ये भारत में छोटे छोटे पैमाने में अपना कब्ज़ा करने लगी जैसे की हमने आपको हमारे केंद्रीय शासित प्रदेशो वाले आर्टिकल्स में भी बता रखा है।
गोवा, दमन दिउ, दादरा & नगर हवेली में पुर्तगालियो का, और पुदुचेरी में फ्रांस का लेकिन इनमे अंग्रेजो की रणनीति कुछ और थी वे पूरे भारत में राज करना चाहते थे।
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अंग्रेजो ने बाकी कम्पनियो को भारत से जाने के लिए मजबूर कर दिया और बड़े पैमाने में यहाँ व्यापार करने लगे, इन्होंने मुगलों से भी बहुत जगह पर व्यापार करने लिए आज्ञा ले ली थी।

और फिर भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी स्थापित हुई इन्होने भारत मे कई अलग अलग जगह के राजाओं को हराकर वहां पर कब्ज़ा कर लिया और लगभग आधे भारत में इनका राज हो गया।
1857 की क्रांति
1857 की क्रांति हुई जिसमे देश के लोग और अलग अलग हिस्सो से राजा अंग्रेजों के खिलाफ होने लगे, जनता ने मुगलो के आखरी बादशाह बहादुर शाह जफ़र द्वितीय को अपना बादशाह करार दे दिया लेकिन यह क्रांति एकता की कमी के कारण सफल नहीं हो सकी।
इसको देख के अंग्रेजों ने दिल्ली से बहादुर शाह जफर को बंदी बना के उनको उस समय के पूर्वी बंगाल जो आज बांग्लादेश है वहां के रंगून की जेल में भेज दिया गया और वहीं पर उनकी मृत्यु हुई इसी के साथ मुग़ल वंश पूरी तरह से खत्म हो गया।
1857 की क्रांति के बाद ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत की सत्ता अपने हाथों में ले ली और भारत की पूरी कमान ब्रिटिश सरकार सँभालने लगी।
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1911 में ब्रिटिश सरकार ने कोलकत्ता से राजधानी बदलकर अपनी राजधानी दिल्ली कर दी, और अंग्रेजो ने ही आधुनिक दिल्ली का डिज़ाइन रचा और दिल्ली को नए तरीके से बनाया, और साथ ही साथ कई क्रांतिकारी वीर सपूतों के बलिदान की वजह से 1947 में भारत को पूर्ण आज़ादी मिली।
तो ये था हमारी प्यारी दिल्ली का इतिहास, उम्मीद है आपको पसंद आया होगा।
हम आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दी गई history of delhi in hindi के बारे में जानकारी आपके लिए बहुत उपयोगी होगी और आप इससे बहुत लाभ उठाएंगे। हम आपके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं और आपका हर सपना सच हो।
धन्यवाद।