tuglak vansh ka sansthapak

tuglak vansh ka sansthapak – तुग़लक़ वंश (1320-1414), पूरा विवरण, मुख्य कार्य

tuglak vansh ka sansthapakतुग़लक़ वंश का संस्थापक था गयासुद्दीन तुगलक।

दिल्ली सल्तनत का तीसरा वंश तुग़लक़ वंश था, हमने पिछले आर्टिकल्स में दिल्ली सल्तनत के वंशो के बारे में पढ़ा और जाना कि कैसे वे उभरे और ख़त्म हुए, हमने पढ़ा था कि khilji vansh के आखरी सुल्तान को विद्रोहों द्वारा हटा दिया जाता है, और फिर तुग़लक़ वंश की स्थापना हो जाती है।

तुगलक वंश के संस्थापक थे गयासुद्दीन तुगलक, और सबसे ज्यादा कल्याणकारी कार्य, गुणवक्ता , और जन-कल्याण के काम दिल्ली सल्तनत के दौर में तुगलक वंश में ही हुए थे, चलिए इस विषय में विस्तार से जाने।

तुग़लक़ वंश (1320-1414)

  1. गयासुद्दीन तुगलक (1320-1325)
  2. मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1351)
  3. फ़िरोज़शाह तुगलक (1351-1388)
  4. नसीरुद्दीन महमूद तुगलक (1394-1412)

tuglak vansh ka sansthapak – गयासुद्दीन तुगलक (1320-1325)

tuglak vansh ka sansthapak – गयासुद्दीन तुगलक एक तुर्क मुस्लिम था, उसका वास्तविक नाम ग़ाज़ी मालिक था, इसलिए कुछ किताबों में उसका नाम आपको गाजी मलिक भी देखने को मिल जायेगा और वह tuglak vansh ka sansthapak था।

उसने अपने पिछले सुल्तानों की सैन्य व्यवस्था को ही आगे जारी रखा, जैसे उसने अल्लाउदीन खिलजी ने जैसे अपनी सैन्य व्यवस्था कर रखी थी जैसे हुलिया लिखने की प्रथा और घोडा दागने की प्रथा, वैसी ही व्यवस्था गयासुद्दीन तुग़लक़ ने भी जारी रखी।

परन्तु जैसा की हमने पिछले आर्टिकल में पढ़ा था की अल्लाउदीन खिलजी के द्वारा अमीरो से जमीन, दान में दी गयी चीजें वापस ले ली गयी थी, लेकिन गयासुद्दीन तुग़लक़ ने वापस से वो सारी ज़मीन अमीरो को वापस दे दी।

उसके समय में भी मंगोलो का कई बार आक्रमण हुआ था, और उसने 29 बार मंगोलो से सामना किया और भारत से बाहर रहने पर मजबूर किया, और इस उपलक्ष में उसने मालिक-उल-गाज़ी की उपाधि ली थी।

दिल्ली सल्तनत के दौर में वह पहला शाशक था जिसने कृषि के लिए सिंचाई व्यवस्था पर जोर दिया और सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण करवाया।

गयासुद्दीन तुगलक के निर्माण कार्य

1. गयासुद्दीन तुगलक ने तुगलकाबाद शहर की स्थापना की थी ।

ग़यासुद्दीन तुगलक की मृत्यु

गयासुद्दीन तुगलक जब बंगाल अभियान के लिए निकला तो वहां उसने विजय पायी और वापस आने के क्रम में उसके पुत्र मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने उसके स्वागत के लिए एक लकड़ी के महल में उसके स्वागत समारोह का आयोजन किया परन्तु समारोह के दौरान महल की छत गिरने से गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु हो जाती है।

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ग़यासुद्दीन तुगलक का मकबरा

मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1351)

अपने पिता की मृत्यु के बाद मुहम्मद बिन तुग़लक़ अगला सुल्तान बना, उसका वास्तविक नाम जूना ख़ाँ था।

वह बहुत ही पढ़ा लिखा शाशक था, लेकिन इतिहास के पन्नो में उसका नाम एक बुद्धिमान और साथ ही साथ एक मूर्ख शाशक के रूप में दर्ज हैँ। उसने बहुत से ऐसे कार्य किये थे जो किये तो अच्छे विचारो के साथ थे परन्तु परिणाम हमेशा गलत या असफल ही निकले।

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मुहम्मद बिन तुगलक के किये कार्य

1. करो में वृद्धि: उसने नदी के आसपास वाले क्षेत्रो में करो में वृद्धि कर दी और वहां ½ कर वसूलने लगा लेकिन उन क्षेत्रो में महामारी और प्लेग जैसी बीमारी फ़ैल गयी, और उसका ये कार्य असफल हो गया।

2. राजधानी स्थानांतरित: उसने अपनी राजधानी दिल्ली से बदलकर दक्षिण में देवगिरि कर दी और वहीं अपने साथ अपने दरबारी और दिल्ली के लोगो को भी ले गया, लेकिन इतनी बड़ी संख्या देवगिरि में नहीं बस पायी और उसे दुबारा दिल्ली वापस आना पड़ा।

3. साकेंतिक मुद्रा: उसने सोने चांदी के सिक्को की जगह तांबे और कांसे के सिक्के चलवाए लेकिन फिर तांबे और कांसे के नकली सिक्के बनने लगे और उसे दुबारा से सोने और चांदी के सिक्के चलवाने पड़े।

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मुहम्मद बिन तुगलक के सिक्के

मुहम्मद बिन तुगलक के अभियान

1. खुरासन अभियान: भारत पर बहुत बार मंगोलों का आक्रमण हो चुका था और खुरासान मध्य एशिया का भाग था। इस बार उसने आक्रमण करने का विचार किया और एक विशाल सेना तैयार की और उन्हें 1 साल का वेतन पहले ही दे दिया, मध्य एशिया में स्थिति सामन्य हुई और उसको अपना ये अभियान रद्द करना पड़ा और यह भी असफल रहा।

2. कराचील अभियान: ये अभियान हिमाचल की पहाड़ियों में चलाया जाना था, यहाँ दो उद्देश्य बताये जाते है पहला कि वहाँ की जनजातियों द्वारा विद्रोहों को दबाना या वहां से चीन में दाखिल होना लेकिन वहां जब सेना गयी तो वहां भी उनकी हार हुई और इस तरह ये अभियान भी उसका असफल ही रहा।

इसलिए कुछ इतिहासकार उसे पागल, रक्तपिशाचु, स्वप्नशील आदि कहते है।

मुहम्मद बिन तुगलक से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण बिंदु

1. उसने कृषि के विकास के लिए एक विभाग की स्थापना की जिसे दीवान-ऐ-कोही या अमीर-ऐ-कोही के नाम से जाना जाता था, परन्तु बाद में ये भी असफल रहा था।

2. मोरक्को का यात्री इब्नबतूता(1333-1347) मुहम्मद बिन तुग़लक़ के समय भारत आया था और उससे प्रभावित होकर उसने उसे दिल्ली का क़ाज़ी नियुक्त किया था और इसी क्रम में इब्नबतूता को 1342 में चीन एक राजदूत के रूप में भेजा गया था।

इब्नबतूता ने भारत में रहने के क्रम में अपने अनुभवों को किताब में लिखा और एक रेहला नामक किताब की रचना की।

3. मुहम्मद बिन तुगलक के राजधानी परिवर्तन के क्रम में दक्षिण भारत में दो नए राज्यों का उद्गम हुआ विजयनगर जो हिन्दुओ के द्वारा बनाया गया और बहमनी जो मुस्लिमो के द्वारा बनाया गया।

4. 1351 में सिन्धु क्षेत्र में विद्रोहों को दबाने के क्रम में थट्टा नामक स्थान में उसकी मृत्यु हो जाती है।

उसकी मृत्यु पे बदांयूनी नामक लेखक लिखते है की:

“अन्तः लोगो को उससे और उसे लोगो से मुक्ति मिल गयी”

फ़िरोज़शाह तुगलक (1351-1388)

फिरोजशाह तुगलक का राज्याभिषेक उसी स्थान जहाँ मुहम्मद बिन तुग़लक़ की मृत्यु हुई थी, थट्टा नामक स्थान पर उसका राज्याभिषेक हुआ, और उसके बाद दिल्ली में भी उसका राज्याभिषेक हुआ। वह मुहम्मद बिन तुग़लक़ का चचेरा भाई था।

उसने पूरी तरह से इस्लामिक राज्य की स्थापना की थी और उसमे पूरी तरह से उलेमा वर्ग जो मुस्लिम धार्मिक गुरु थे उनका प्रभाव था।

उसने हिंदुओं और मुस्लिमों के सम्बन्ध में अलग अलग नीतियां चलाई, उसने हिन्दुओ को “जिम्मी” कहकर सम्भोदित किया और ब्रह्मणो पर जजिया कर लगाया।

इतिहास में फिरोजशाह तुगलक को एक कल्याणकारी शाशक के रूप में सम्भोदित किया जाता है क्यूंकि उसने बहुत से कल्याणकारी, जन कल्याण और निर्माण कार्य के संधर्ब में कार्य किये थे।

फ़िरोज़शाह तुग़लक़ के निर्माण और कल्याण कार्य

1. उसने 24 तरह के करों को समाप्त करके केवल चार कर लगाए:

ख़म्स कर : यह कर युद्ध में लूटा हुआ धन होता था, जिसमे 1/5 भाग राजा को दिया जाता था और बाकी भाग सेना के पास ही रहता था।

ख़राज़ कर: इसमें कृषि सम्भंदित कर लिया जाता था, इसमें 1/3 से लेकर 1/5 तक कर वसूला जाता था।

जजिया कर: यह एक प्रकार का धार्मिक कर था जो गैर मुसलमानो यानी हिन्दुओ से लिया जाता था।

जकात कर: ये कर मुस्लिमो से लिया जाता था और ये उनकी कमाई का 2.5 प्रतिशत हुआ करता था।

2. फिरोज शाह तुगलक के समय में सबसे ज्यादा दास थे, उसके समय में करीब 1,80,000 दास थे और उसने दासो के रख रखाव के लिए एक विभाग बनाया था जिसे दीवान-ऐ-बन्दगान कहते थे ।

3. उसने दीवान-ए-ख़ैरात विभाग का गठन किया था जिसमें राज्य के जरूरतमंद लोगों तक सहायता पहुंचाई जाती थी।

4. उसने दारुल-शफा बनाया था जो एक प्रकार का अस्पताल था और वहां राज्य के लोगो को मुफ्त चिकित्सा दी जाती थी।

लोक निर्माण विभाग

उसने एक लोक निर्माण विभाग की स्थापना की जिसमे उसने कई निर्माण कार्य करवाये:

1. उसने करीब 300 नगरों का निर्माण करवाया, उनमें से कुछ प्रमुख शहर है जौनपुर, फ़िरोज़ाबाद, फ़िरोज़पुर, हिसार, फतेहाबाद।

2. उसने 5 बड़ी नहर और कई छोटी नहरो का निर्माण करवाया और साथ ही साथ कुए और तालाब भी बनवाये।

3. उसने सिंचाई के लिए नहरे तो बनवाई पर उसने उनपे एक कर लगाया जिसे हक्क-ऐ-शरब कहा जाता था जिसमे वह नहरो का पानी इस्तेमाल करने पर कर वसूलता था जो 1/10 था।

4. उसने 1200 नए फलों के बाग लगवाए और अल्लाउदीन खिलजी के समय के 30 बागो का भी निर्माण फिर से करवाया।

5. उसने एक अनुवाद विभाग की स्थापना की जिसमे उसने भारतीय ग्रंथो का फ़ारसी में और कई अलग अलग भाषाओं में अनुवाद कराया।

फिरोजशाह तुगलक से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण बिंदु

1. फिरोज शाह तुगलक के समय में उसका एक मुख्य वास्तुकार था, मलिक गाजी साहना जिसके नेतृत्व में ही सारे निर्माण कार्य हुए थे।

2. उसने उलेमा वर्ग यानी इस्लामिक धर्मिक गुरुओ को खुश रखने के लिए सिक्कों पर खलीफा का नाम भी लिखवाया।

3. उसने मेरठ और टोपरा से अशोक के स्तम्भ को निकाल कर के दिल्ली स्थानांतरित करवाया।

4. उसने उस समय उत्तराखंड में शासन कर रहे चंद वंश के राजा ज्ञान चंद को “गरुड़ चंद” की उपाधि दी थी।

मुख्य रचनाएँ

1. फिरोज शाह तुगलक ने अपनी आत्म कथा लिखी थी जिसका नाम था फुतुहात-ए-फिरोजशाही।

2. बरनी एक इतिहासकार था जो फिरोज शाह के दरबार में रहता था, उसकी रचनाएं कुछ इस प्रकार है:

तारीख-ऐ-फ़िरोज़शाही

फतवा-ए-जहाँदारी

फिरोजशाह तुगलक के बाद तुगलक वंश के पतन का दौर शुरू हो जाता है और कई शाशक आते जाते रहते है और तुगलक वंश का अन्तिम शाशक बनता है नसीरुद्दीन महमूद तुगलक।

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फिरोजशाह तुगलक का मकबरा

नसीरुद्दीन महमूद तुगलक (1394-1412)

ये तुग़लक़ वंश का अन्तिम शाशक बनता है, इसके समय में 1398 में मंगोल शाशक तैमूर लंग का भारत में आक्रमण होता है और दिल्ली में आकर वह बहुत सारा अपार धन लूट कर ले जाता है।

इसकी वजह से नसीरुद्दीन महमूद तुग़लक़ बहुत ही कमजोर हो गया और उसका शाशन भी बहुत कम सीमा तक सिमट कर रह गया।

तैमूर लंग के वापस जाने के क्रम में उसने लाहौर के क्षेत्र में अपने सेना पति खिज्र ख़ाँ को शाशन करने के लिए छोड़ देता है और इस तरह से तुगलक वंश की समाप्ति हो जाती है।

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हम आशा करते हैं कि हमारे द्वारा tuglak vansh ka sansthapak के बारे में दी गई जानकारी आपके लिए बहुत उपयोगी होगी और आप इससे बहुत लाभ उठाएंगे। हम आपके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं और आपका हर सपना सच हो।

धन्यवाद।


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