Vikram Samvat

History of Vikram Samvat in Hindi – विक्रम संवत 2078

Vikram Samvat – दोस्तों, आज हम कैलेंडर ( Calender ) के संधर्भ में बात करेंगे,  हम देखेंगे की कैलेंडर क्या होता है, हम लोग कैलेंडर की बात करते हैं परंतु बहुत सारे लोग कैलेंडर का सिद्धांत नहीं जानते।  

अंग्रेजी कैलेंडर 

पहले हम अंग्रेज़ी कैलेंडर की बात करेंगे, जैसे की यह 2021 है और यह एक ज़ीरो ( 0 ) है, जिसमें ज़ीरो का मतलब जीसस क्राइस्ट का जन्म होता है।

ज़ीरो के बाद का समय जीसस क्राइस्ट की मृत्यु के बाद का समय जिसे अंग्रेजी में A.D ( Anno Domini  ) कहा जाता है और ज़ीरो से पहले का समय जीसस क्राइस्ट की मृत्यु के पहले का समय जिसे अंग्रेजी में B.C ( Before Christ ) कहा जाता है।

हम ज़ीरो से 500, 1000, 1500, 2000 और अब 2021 में आ चुके है, और अगर आप उलटी गिनती गिनेंगे तो जब आप ज़ीरो पर आते है तो वह जीसस क्राइस्ट का समय होता है, यह कैलेंडर अंग्रेज़ो द्वारा बनाया गया की यह अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से ज़ीरो के आगे का समय जैसे हम आज 2021 में आ गए है और जीरो से पहले के समय में उलटी गिनती शुरू होती है।

यह अंग्रेजों का कैलेंडर है और इस कैलेंडर को भारत में आज इस्तेमाल किया जाता है।

Vikram Samvat
Vikram Samvatविक्रम संवत

Vikram Samvat – भारतीय कैलेंडर 

परंतु साथियों एक कैलेंडर हमारे देश का और हमारे देश की धरोहर है और वो कैलेंडर राजा विक्रमादित्य का कैलेंडर है।

राजा विक्रमादित्य का जन्म 102 इसा पूर्व ( BC – Before Christ ) यानी ज़ीरो से 102 वर्ष पहले हुआ था और 57 इसा पूर्व में मौर्य वंश की समाप्ति के बाद जब कुछ विदेशी मध्य एशिया से भारत पर कब्ज़ा करने आये तो उनमें एक शक वंश था, जिन्हें राजा विक्रमादित्य ने पराजित कर विक्रमादित्य की उपाधि ली थी और विक्रम संवत नामक कैलेंडर चलाया था।

इसलिए राजा विक्रमादित्य का कैलेंडर इस 57 इसा पूर्व से शुरू होता है।

Vikram Samvat
Vikram Samvatविक्रम संवत

सन और संवत में अंतर 

सन और संवत में यह अंतर है की जैसे की हम आज 2021 की बात करें तो वह सन 2021 कहलायगा और अगर हमे आज का संवत निकालना हो तो हम 2021 में राजा विक्रमादित्य का कैलेंडर जब से शुरू हुआ था यानी ज़ीरो से 57 वर्ष पहले तो हम 2021 में 57 वर्ष और जोड़ देंगे तो संवत 2078 निकल कर आएगा।

तो जब भी आपको संवत निकालना हो तो आप सन में 57 वर्ष और जोड़ दें, इससे वह संवत हो जाता है, तो यह संवत से जो कैलेंडर शुरू हुआ वह राजा विक्रमादित्य का कैलेंडर था।

विक्रम संवत की विशेषता 

हम जो पंचांग, राशि, गोचर, नक्षत्र और जो पंचांग में हम इतने सूक्ष्म गणना हमको दिखाई देते हैं, जो नासा ( NASA ) वाले इतनी मशीनों और रिसर्च करने के बाद निकालते हैं वह 57 इसा पूर्व, उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने इस पंचांग की स्थापना की थी।

उस पंचांग को हम पढ़ते है, उससे हम सभी चीज़ो की गणना कर लेते हैं और वो भी NASA से बेहतर और इसे सभी को जानना चाहिए।

राजा विक्रमादित्य द्वारा सनातन धर्म के लिए कार्य 

दोस्तों, अब हम आपको थोड़ा समय और पीछे लेकर चले तो 563 इसा पूर्व के आसपास गौतम बुद्ध का जन्म हुआ।

था यानी ज़ीरो से 563 वर्ष पहले के आसपास गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था।

तब बुद्ध धर्म का दौर चरम पर था और उनके बाद कौटिल्य ( चाणक्य ) का दौर आया, जिन्होंने मौर्य वंश की नीव डाली और एक विशाल भारत बनाया।

साथियों मौर्य वंश में सम्राट अशोक थे, जिनका अशोक चक्र भारतीय झंडे पर भी स्थापित है, उन्होंने बौद्ध धर्म का इतना प्रचार प्रसार किया की हमारा जो वर्षों से सनातन धर्म चलकर आ रहा था, जैसे 3200 इसा पूर्व महाभारत काल और उससे भी पहले रामायण काल वह सनातन धर्म लोग यहाँ तक आते-आते भूल गए थे।

हमारे साहित्य लगभग खत्म हो गए थे, उसको फिर से जीवित करने का कार्य 57 इसा पूर्व में राजा विक्रमादित्य ने किया था और वहां से सनातन धर्म का पुनः उदय हुआ और हिंदुत्व का शासन-प्रशासन हमारे पूरे देश में जीवित हुआ था और राजा विक्रमादित्य का राज ईरान से भी आगे तक और नीचे बरमा तक फ़ैल गया था।

राजा विक्रमादित्य का साम्राज्य मौर्य वंश से भी बड़ा और विशालकाय साम्राज्य हो गया था।

Vikram Samvat
Vikram Samvatविक्रम संवत

नकली ऐंव लूटेरों का इतिहास 

राजा विक्रमादित्य के नौ रत्न होते थे, साथियों आपने अकबर के नौ रत्नों के बारे में सुना होगा और राजा विक्रमादित्य के नौ रत्नों के बारे में नहीं सुना होगा क्यूंकि हमें बचपन से ही लूटेरों का ही इतिहास पढ़ाया गया है।

ऐसे लूटेरों के आर्टिकल्स आपको हमारी वेबसाइट पर भी पढ़ने को मिल जायेंगे क्यूंकि परीक्षाओं में ज्यादातर आपको इन्हीं के बारे में पुछा जायगा और हमे हमेशा अच्छे और बुरे दोनों पहलुओं की जानकारी होनी चाहिए और पता होने चाहिए की हमारे इतिहास का कौनसा पहलु अच्छा है और कौनसा पहलु बुरा है।

राजा विक्रमादित्य के नौ रत्नों में भगवान धन्वन्तरि ( औषधि के भगवान ), कालिदास ( साहित्य के रत्न ), ये सब राजा विक्रमादित्य के नौ रत्नों में से थे और उनके काल में भारत सोने की चिड़िया कहा जाता था क्यूंकि उस समय राजा विक्रमादित्य ने स्वर्ण मुद्राएं चलाई थी।

इनके राज में सबसे बड़ी न्याय की विशेषता थी और दूसरी विशेषता धर्म की थी, उस काल में अधर्म का नाश हो गया था, धर्म की स्थापना हो गई थी और हर तरफ न्याय ही न्याय था।

विक्रमादित्य की उपाधि 

वे इतने प्रतापी राजा हो गए थे की उनके बाद कई राजाओं ने विक्रमादित्य की उपाधि ग्रहण करी और ज़ीरो से लेकर 500 वर्ष तक 5 बार अलग-अलग राजाओं ने विक्रमादित्य की उपाधि ग्रहण करी  ।

सन 400-500 में चन्द्रगुप्त द्वितीय ने भी विक्रमादित्य की उपाधि ली क्यूंकि विक्रमादित्य की उपाधि बहुत बड़ा सम्मान होता था।

हमारे विचार 

दुख की बात यह है की वामपंथी और लुटेरे किस्म के लोगों द्वारा इतने प्रतापी राजा और महापुरुष, सनातन धर्म के संस्थापक , इतना अच्छा न्याय और सत्य का शासन करने वाले राजा का इतिहास मिटा और भुला दिया गया।

यह असली इतिहास अब बहुत ही कम लोगों द्वारा स्मरण किया जाता है क्यूंकि शिक्षण संस्थानों में नकली इतिहास का ज्यादा बोलबाला है।

नमस्कार, जयहिंद      

History of Vikram Samvat in Hindi – विक्रम संवत 2078

हम आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दी गई Vikram Samvat – विक्रम संवत के बारे में  जानकारी आपके लिए बहुत उपयोगी होगी और आप इससे बहुत लाभ उठाएंगे। हम आपके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं और आपका हर सपना सच हो।

धन्यवाद।


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