सिंधु घाटी सभ्यता

सिंधु घाटी सभ्यता – Indus Valley civilization in Hindi 🗿🌾

Sindhu Ghati Sabhyata – दोस्तों, आज हम प्राचीन भारतीय इतिहास में हमारी सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में जानेंगे, इसे भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता माना जाता है।

इसके साथ-साथ यह विश्व की 4 प्राचीन सभ्यताओं में से एक है, विश्व की बाकी तीन प्राचीन सभ्यतायें कुछ इस प्रकार हैं:

1.नील नदी की सभ्यता ( मिस्र की सभ्यता )
2.मेसोपोटामिया की सभ्यता
3.चीन की सभ्यता
विश्व की बाकी तीन प्राचीन सभ्यतायें

सिंधु घाटी सभ्यता से पहले वैदिक काल को ही सबसे प्राचीन माना जाता था, लेकिन जब भारत में अंग्रेजों के समय इस सभ्यता के स्थलों की खोज आरंभ हुई तो फिर इसे भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता माना गया था। 

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सिंधु घाटी सभ्यता की खोज – Sindhu Ghati Sabhyata

दोस्तों, सबसे पहले 1826 में एक ब्रिटिश यात्री जिनका नाम चार्ल्स मैसन था, वे पाकिस्तान के यात्रा पर गए, लेकिन दोस्तों यह याद रखियेगा की उस समय कोई पाकिस्तान नहीं था यह सारे क्षेत्र भारत के ही हिस्से थे, हम बस आपकी समझ के लिए आज के क्षेत्रों के नाम के हिसाब से आपको समझा रहे हैं। 

जब चार्ल्स मैसन 1826 में पाकिस्तान क्षेत्र की यात्रा के लिए गए तब उन्हें वहां हड़प्पा क्षेत्र के कुछ हिस्से मिले और उसके बारे में उन्हें थोड़ी जानकारी प्राप्त हुई और चार्ल्स मैसन ने तब उस समय एक अनुमान दिया की उस क्षेत्र में कभी कोई सभ्यता रही होगी, लेकिन कोई स्पष्ट रूप से इनके द्वारा कुछ नहीं बताया गया था। 

चार्ल्स मैसन के द्वारा नैरेटिव ऑफ़ जर्नीस ( Narrative of Journeys ) नामक एक पत्रिका भी निकाली गयी थी, जिसमें इन्होंने इस घटना का वर्णन किया था और फिर धीरे-धीरे यह घटना फैलना शुरू हुई थी। 

इसके बाद 1856 में कराची और लाहौर के बीच एक रेल पथ का निर्माण कार्य चल रहा था, जिसे दो इंजीनियर जेम्स बर्टन और विलियम बर्टन बना रहे थे, इन्हें बर्टन बंधु के नाम से भी जाना जाता है। 

जब इन बर्टन बंधुओं के नेतृत्व में इस रेलवे लाइन के निर्माण का कार्य चल रहा था तब उन्हें इस क्रम में आसपास के क्षेत्रों कई ईटें प्राप्त हुई और इन्होंने उन ईटों को अपने इस रेलवे लाइन के लिए इस्तेमाल कर लिया था और तब इन्हें लगा था की यहाँ पहले कोई भवन रहा होगा, लेकिन इन्हें यह नहीं पता था की यह ईटें किसी सभ्यता का हिस्सा थी और इन्होंने इसके बारे में कुछ ढूंढ़ने का प्रयास भी नहीं किया था। 

जिस व्यक्ति ने इस सभ्यता के संबंध में सबसे पहले खोज करने का प्रयास किया था वे अलेक्ज़ैंडर कनिंघम थे, जिन्हें भारत के पुरातात्विक विभाग का जनक भी कहा जाता है। 

इन्होंने इन क्षेत्रों का 1853 से लेकर 1856 तक कई बार दौरा किया, परंतु इन्हें भी उस समय कोई बड़ी सफलता इसके संबंध में प्राप्त नहीं हुई थी और वे भी इस सभ्यता के संबंध में कोई व्यवस्थित जानकारी नहीं दे पाए थे। 

इसके बाद 1921 में भारत के पुरातात्विक विभाग के प्रमुख सर जॉन मार्शल थे, और इनके नेतृत्व में इन क्षेत्रों में खुदाई का कार्य आरंभ हुआ था। 

इस खुदाई के कार्य का नेतृत्व दो भारतीय व्यक्ति संभाल रहे थे, जिनका नाम दयाराम साहनी और राखल दास बनर्जी था, दयाराम साहनी जी को रायबहादुर दयाराम साहनी के नाम से भी जाना जाता है। 

इस क्रम में दयाराम साहनी के नेतृत्व में हड़प्पा क्षेत्र की खोज की गई और राखल दास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो क्षेत्र की खोज करी गई थी और इस प्रकार सिंधु घाटी सभ्यता के प्रारंभिक खोजकर्ताओं के रूप में भी इनको देखा जाता है। 

इस सभ्यता की खोज में सबसे पहले हड़प्पा क्षेत्र की खुदाई करी गई थी और वर्त्तमान में यह क्षेत्र पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के अंतर्गत आता है। 

सिंधु घाटी सभ्यता का काल 

दोस्तों, इस सभ्यता के पुरातात्विक और साहित्यिक स्त्रोत दोनों ही प्राप्त हुए हैं, परंतु इसके साहित्यिक स्त्रोतों को अभी तक नहीं पढ़ा जा सका है इसलिए इसके काल को इसके पुरातात्विक स्त्रोतों के आधार पर बताया गया है।

इसी कारण की वजह से इसके काल को लेकर अलग-अलग इतिहासकारों में मतभेद और अलग-अलग मत हैं।

जैसे सर जॉन मार्शल जिनके संबंध में हमने ऊपर चर्चा की थी उनके अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता का काल 3250 ईसा पूर्व से लेकर 2750 ईसा पूर्व तक का है। 

एक तकनीक जिसका नाम कार्बन 14 ( C 14 ) है, इसके माध्यम से किसी जीवाश्म की आयु का पता लगाया जाता है, तो इस तकनीक के हिसाब से इस सभ्यता का काल 2300 से 1750 ईसा पूर्व तक बताया गया है और डी. पी. अग्रवाल के द्वारा इस तकनीक को सबसे ज्यादा श्रेय दिया गया था। 

दोस्तों, कई किताबों में आपको इसके अलग-अलग काल देखने को मिलेंगे जैसे की 2400 – 1700 ईसापूर्व और 2350 – 1750 ईसा पूर्व। 

सिंधु घाटी सभ्यता के काल को तीन चरणों में विभाजित किया जाता है, जो कुछ इस प्रकार हैं:

प्रारंभिक चरण3300 ईसा पूर्व से लेकर 2600 ईसा पूर्व
माध्यमिक चरण2600 ईसा पूर्व से लेकर 1900 ईसा पूर्व
अंतिम चरण1900 ईसा पूर्व से लेकर 1300 ईसा पूर्व
सिंधु घाटी सभ्यताहड़प्पा सभ्यताsindhu ghati sabhyata

सिंधु घाटी सभ्यता का नामाकरण 

इस सभ्यता के मुख्य रूप से तीन नाम देखने को मिलते हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं:

सिंधु घाटी सभ्यतायह सभ्यता के बहुत सारे स्थल सिंधु नदी के किनारे प्राप्त हुए हैं, इसलिए इसको सिंधु घाटी सभ्यता नाम दे दिया गया।
सिंधु एवं सरस्वती सभ्यताबाद में इसके कुछ स्थल सरस्वती नदी के किनारे भी प्राप्त हुए, इसलिए यह नाम भी इस सभ्यता को दिया गया, परंतु यह नाम कुछ इतिहासकारों के मध्य ही उपयोग में लाया गया और इस नाम को किसी किताब में बहुत कम प्रचलित किया गया।
हड़प्पा सभ्यताइतिहास में जब भी किसी सभ्यता की खोज की गई और उसके नामाकरण में कोई परेशानी आये तो उस सभ्यता के जिस क्षेत्र की खुदाई सबसे पहले की जाती थी, उस क्षेत्र पर ही उस सभ्यता का नाम रख दिया जाता था, इसलिए इस सभ्यता को यह नाम दिया गया और इस सभ्यता को लेकर यह नाम बहुत ज्यादा प्रचलित है और उपयोग में लाया जाता है।
सिंधु घाटी सभ्यताहड़प्पा सभ्यताsindhu ghati sabhyata

इसके बारे में हमने ऊपर भी चर्चा की थी, कि सबसे पहले इस सभ्यता की खोज में हड़प्पा क्षेत्र की खुदाई हुई थी। 

सिंधु घाटी सभ्यता का उद्भव 

जब इस सभ्यता के संस्थापक या यूँ कहें की निर्माता के पता लगाने की बात आई तो इसपर भी अलग-अलग इतिहासकारों के अलग-अलग मत सामने आये और आपस में मतभेद देखने को मिलता है, जैसे की विदेशी इतिहासकारों के इस विषय में अलग मत जबकि भारतीय इतिहासकारों के इस विषय में अलग मत हैं, आइये जानें:

विदेशी मत  

विदेशी इतिहासकारों ने अपने मत कुछ इस प्रकार रखे की, जिन विश्व की प्राचीन सभ्यताओं के बारे में हमने सबसे पहले ऊपर चर्चा की थी, जैसे की मेसोपोटामिया की सभ्यता, तो मेसोपोटामिया की सभ्यता के अंदर एक सुमेरियन नामक सभ्यता थी। 

विदेशी इतिहासकारों के अनुसार सुमेरियन सभ्यता के लोगों ने ही उत्तर पश्चिमी भारतीय क्षेत्रों में जाकर सिंधु घाटी सभ्यता की शुरुआत की थी और वहां अपने घरों और नगरों को बसाया था।

विदेशी मत के अनुसार जैसे घर और भवन सुमेरियन सभ्यता में पाए गए, वैसे ही घरों और भवनों की बनावट सिंधु घाटी सभ्यता में प्राप्त हुई है।

इसके अलावा सुमेरियन सभ्यता में लोग मुहरों का इस्तेमाल करते थे और सिंधु घाटी सभ्यता में भी लोग मुहरों का इस्तेमाल करते थे और दोनों सभ्यताओं की कुछ धार्मिक मान्यतायें मिलती थी और इन्हीं सब कारणों से विदेशी इतिहासकारों ने अपना मत दिया की सुमेरियन सभ्यता के लोग ही सिंधु घाटी सभ्यता के निर्माता थे। 

जिन मुख्य विदेशी इतिहासकारों ने इस मत अपनी सहमति दिखाई वे कुछ इस प्रकार हैं:

1. सर जॉन मार्शल

2. व्हीलर

3. गार्डनर चाइल्ड

4. डी. डी. कौशाम्बी

भारतीय मत 

ज्यादातर भारतीय इतिहासकारों और कुछ विदेशी इतिहासकारों ने यह मत दिया की सिंधु घाटी सभ्यता के निर्माता भारतीय लोग ही थे। 

इनके अनुसार यह मत दिया गया की भले ही सिंधु घाटी सभ्यता के घरों और भवनों की बनावट सुमेरियन सभ्यता के घरों से मिलती-जुलती है लेकिन, यहाँ की निकासी की व्यवस्था यानी नालियों की व्यवस्था अलग है। 

इसके अलावा यह भी कहा गया भले ही दोनों सभ्यताओं के घरों और भवनों की बनावट मिलती-जुलती है लेकिन यहाँ की ईंटों का आकार अलग-अलग है और दोनों सभ्यताओं में मुहरों की विशेषताओं में भी अंतर है। 

जिन मुख्य भारतीय इतिहासकारों ने इस मत अपनी सहमति दिखाई वे कुछ इस प्रकार हैं:

1. राखल दास – इन्होंने द्रविड़ जाति के लोगों को सिंधु घाटी सभ्यता का निर्माता बताया और ये वही व्यक्ति हैं जिनके संबंध में हमने ऊपर चर्चा की थी कि इनके नेतृत्व में मोहनजोदड़ो क्षेत्र की खोज व खुदाई करी गई थी।

2. टी. ऐन. रामचंद्र / लक्ष्मण स्वरूप पुसालकर – इन्होंने यह मत दिया कि इस सभ्यता के निर्माता आर्य थे, लेकिन इनके मत को ज्यादा प्रधानता नहीं दी जाती, क्योंकि आर्य वैदिक काल के निर्माता थे और वैदिक काल की कोई भी समानताएं हमें सिंधु घाटी सभ्यता में देखने को नहीं मिलती हैं। 

सिंधु घाटी की सभ्यता में लोग ईटों के घरों में रहते थे और वैदिक काल में लोग झोपड़ियों में रहते थे और यदि आर्य इतनी पूर्व सिंधु घाटी की सभ्यता के काल में आ गए थे तो उन्हें ईटों के घरों और बाकी सब चीजों का ज्ञान होना चाहिए था और इस प्रकार हमें कोई समानताएं दोनों कालों में देखने को नहीं मिलती हैं। 

इसलिए टी. ऐन. रामचंद्र और लक्ष्मण स्वरूप पुसालकर के मत को ज्यादा प्रधानता नहीं दी जाती है। 

इसलिए राखल दास जिन्होंने द्रविड़ जाति के लोगों को इस सभ्यता का निर्माता बताया उसके ऊपर ज्यादा प्रधानता दी जाती है। 

सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार – Sindhu Ghati Sabhyata

दोस्तों, यह सभ्यता भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में स्थित थी और इन्हीं क्षेत्रों में इसका विस्तार हुआ था।

जो सबसे उत्तरी स्थल इस सभ्यता का मिला है वो जम्मू-कश्मीर में स्थित क्षेत्र माँडा है, जो सबसे पूर्वी क्षेत्र इस सभ्यता का प्राप्त हुआ वह उत्तर प्रदेश में स्थित आलमगीरपुर है, जो सबसे दक्षिणी क्षेत्र इस सभ्यता का प्राप्त हुआ है वो महाराष्ट्र में स्थित दैमाबाद है और जो सबसे पश्चिमी क्षेत्र इस सभ्यता का प्राप्त हुआ है वो बलूचिस्तान में स्थित सुतकागेंडोर है। 

ये स्थल लगभग 13 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं, परंतु वर्तमान में जैसे-जैसे इस सभ्यता के बाकी और भी स्थलों की खोज की जा रही है और इसके और ज्यादा स्थल प्राप्त हो रहें हैं इसलिए इसका क्षेत्रफल बढ़ता जा रहा है, कुछ किताबों में आपको यह मिल सकता है की यह 15 लाख वर्ग किलोमीटर हो चुका है। 

इस सभ्यता का सबसे उत्तरी स्थल माँडा, चिनाब नदी के किनारे स्थित है, सबसे पूर्वी क्षेत्र आलमगीरपुर, हिंडन नदी के किनारे स्थित है, सबसे दक्षिणी क्षेत्र दैमाबाद, गोदावरी नदी की सहायक प्रवरा नदी के किनारे स्थित है और सबसे पश्चिमी क्षेत्र सुतकागेंडोर, दश्त नदी के किनारे स्थित है। 

ये चारों स्थल एक प्रकार से इस सभ्यता की एक सीमा रेखा बनाते हैं। 

सिंधु घाटी सभ्यता
सिंधु घाटी सभ्यताहड़प्पा सभ्यता

दोस्तों, अगर हम इसके सबसे उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्र यानी माँडा और दैमाबाद को मिलाएं तो इसकी दूरी लगभग 1400 किलोमीटर निकल कर आती है और वहीँ इसके सबसे पश्चिमी और पूर्वी क्षेत्र यानी सुतकागेंडोर और आलमगीरपुर को मिलाएं तो इसकी दूरी लगभग 1600 किलोमीटर निकल कर आती है। 

इस प्रकार यह एक विस्तृत और विशाल क्षेत्र में फैली हुई सिंधु घाटी सभ्यता का निर्माण करता है। 

वहीं आपको कुछ किताबों में यह भी देखने को मिलेगा की जो विश्व की बाकी प्राचीन सभ्यताएं थी जैसे नील नदी की सभ्यता और मेसोपोटामिया की सभ्यता, अगर इनको मिला भी दिया जाए तो भी हमारी सिंधु घाटी सभ्यता इससे 12 गुना ज्यादा बड़ी सभ्यता थी। 

सिंधु घाटी सभ्यता के स्थल तीन देशों से प्राप्त हुए हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं:

1. भारत 

2. पाकिस्तान 

3. अफगानिस्तान 

जब भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी, उससे पूर्व इसके लगभग 40 – 50 स्थल प्राप्त हो गए थे, लेकिन वर्तमान में इस सभ्यता के लगभग 1400 से ज्यादा स्थल खोजे जा चुके हैं। 

इसमें सबसे अधिक 900 से ज्यादा स्थल भारत में खोजे गए हैं, 450 से अधिक स्थल पाकिस्तान में खोजे जा चुके हैं और मात्र 2 स्थल अफगानिस्तान में अभी तक प्राप्त हुए हैं। 

सिंधु घाटी सभ्यता के मुख्य स्थल 

दोस्तों, अब हम इस सभ्यता के मुख्य स्थल, उनके खोजकर्ता, वहां से प्राप्त वस्तुएँ और वे किस नदी के तट पर स्थित हैं उस पर दृष्टि डालते हैं, आइये:

मुख्य स्थलखोजकर्तानदीप्राप्त वस्तुएँ
हड़प्पा ( मॉन्टगोमेरी, पाकिस्तान )दयाराम साहनी ( 1921 )रावी1. सबसे पहले खोजा गया स्थल
2. अन्न भंडार, कांस्य दर्पण
3. R-37 के कब्रिस्तान ( दफ़नाने की विधि हड़प्पा से प्राप्त )
4. श्रमिक आवास
मोहनजोदड़ो ( लरकाना, पाकिस्तान )राखलदास बनर्जी  ( 1922 )सिंधु1. सबसे बड़ा स्थल
2. विशाल स्नानागार
3. कांस्य मूर्ति ( नग्न मूर्ति )
4. पुरोहित की मूर्ति
5. महाविद्यालय
6. एक श्रृंगी पशु की मुद्राएं
7. शवों को जलाने की विधि मोहनजोदड़ो से प्राप्त
लोथल ( अहमदाबाद, गुजरात )रंगनाथ राव ( 1957 )भोगवा1. गोदीबाड़ा ( बंदरगाह )
2. चावल के अवशेष
3. अग्निकुंड
4. हाथी दांत
5. तीन युगल समाधियाँ ( दो शवों को एक साथ दफनाने की विधि )
6. घोड़ो की मृण्मूर्ति ( मिट्टी की मूर्ति )
कालीबंगा ( हनुमानगढ़, राजस्थान )अमलानंद घोषघग्गर1. जुते हुए खेतों के प्रमाण
2. अग्नि के हवन कुंड
3. काले रंग की चूड़ियां
4. भूकंप के साक्ष्य
राखीगढ़ी ( हिसार, हरियाणा )सूरजभानघग्गर1. भारत में स्थित सबसे बड़ा स्थल
2. ताम्र उपकरण
चन्हुदड़ो ( सिंध, पाकिस्तान )अर्नेस्ट मैके एवं मजूमदारसिंधु1. मनके बनाने का कारखाना
2. महिलाओं के सौंदर्य की वस्तुएं जैसे काजल, कंघा आदि
3. बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के निशान
बनवाली ( हिसार, हरियाणा )आर.एस. विष्टसरस्वतीमिट्टी के खिलौने वाले हल
रोपड़ ( रूपनगर, पंजाब )यज्ञदत्त शर्मासतलुजतांबे की कुल्हाड़ी
रंगपुर ( अहमदाबाद, गुजरात )ऐस. आर. रावभादरधान की भूसी, ज्वार और बाजरे की फसलों के प्रमाण
सुरकोटदा ( कच्छ, गुजरात )जे.पी. जोशीसरस्वती1. कलश शवाधान ( एक कलश के अंदर शव के अंशों को दफ़नाने की विधि )
2. घोड़े की हड्डी
3. तराजू
सिंधु घाटी सभ्यताहड़प्पा सभ्यताsindhu ghati sabhyata

इसके अलावा सारे स्थलों में तराजू के लिए इस्तेमाल होने वाले वजन 16 के गुणज अनुपात में प्राप्त हुए हैं और यह अनुपात सारे स्थलों में एक समान ही पाया गया है। 

सिंधु घाटी सभ्यता - हड़प्पा
हड़प्पा का पुरातत्व स्थल
सिंधु घाटी सभ्यता - मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल स्नानागार
मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल स्नानागार

भारत 

भारत में सिंधु घाटी सभ्यता के स्थल उत्तर-पश्चिमी भारत से प्राप्त हुए हैं। 

भारत के स्थलों में जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश से इस सभ्यता के स्थल प्राप्त हुए हैं और सबसे ज्यादा स्थल गुजरात से प्राप्त हुए हैं।

जैसे की हमने ऊपर जाना की भारत में 900 से अधिक स्थल इस सभ्यता के खोजे जा चुके हैं, उनमे जो मुख्य स्थल हैं वे कुछ इस प्रकार हैं:

1. माँडा – यह स्थल भारत के जम्मू-कश्मीर से प्राप्त हुआ है और यह हम ऊपर भी जान चुके हैं की, यह स्थल सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे उत्तरी स्थल है और इसे चिनाब नदी के तट पर खोजा गया है। 

2. रोपड़ और संघोल – यह दोनों स्थल भारत के पंजाब राज्य से प्राप्त हुए हैं। 

3. बनवाली, राखीगढ़ी और भगवानपुरा – यह स्थल भारत के हरयाणा राज्य से प्राप्त हुए हैं। 

बनवाली स्थल से मिट्टी के हल के अवशेष पाए गए हैं और इसके साथ-साथ यहाँ से बैलगाड़ी के खिलौने भी प्राप्त हुए हैं। 

राखीगढ़ी स्थल भारत में पाए गए सारे स्थलों में सबसे बड़ा स्थल है। 

4. कालीबंगा और बालाथल – यह स्थल भारत के राजस्थान राज्य से प्राप्त हुए हैं। 

कालीबंगा स्थल में काले रंग की चूड़ियां प्राप्त हुई हैं, जुते हुए खेतों के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं, और इसके साथ-साथ कालीबंगा से अग्निकुंड के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। 

बी. बी. लाल और बालकृष्ण थापर कालीबंगा स्थल के खोजकर्ता हैं। 

5. आलमगीरपुर – यह स्थल भारत के उत्तर प्रदेश राज्य से प्राप्त हुआ है, और इसके बारे में ऊपर भी जाना था की यह स्थल इस सभ्यता का सबसे पूर्वी स्थल है और यह हिंडन नदी के तट पर स्थित है।  

6. संगौली और बड़गांव – यह स्थल भी भारत के उत्तर प्रदेश राज्य से प्राप्त हुए हैं। 

7. दैमाबाद – यह स्थल भारत के महाराष्ट्र राज्य में प्राप्त हुआ है और यह स्थल इस सभ्यता का सबसे दक्षिणी स्थल है, यह गोदावरी नदी की सहायक प्रवरा नदी के किनारे स्थित है। 

8. लोथल – यह स्थल भारत के गुजरात राज्य से प्राप्त हुआ है। 

लोथल सिंधु घाटी सभ्यता का बंदरगाह था और यहाँ से इस सभ्यता के जलीय मार्ग से व्यापार होते थे।

लोथल से अग्नि कुंड के अवशेष और चावल के अवशेष प्राप्त हुए हैं। 

9. धोलावीरा – यह स्थल भारत के गुजरात राज्य के कच्छ क्षेत्र से प्राप्त हुआ है।

धोलावीरा को एक सुव्यवस्थित नगर के रूप में देखा जाता है, लेकिन जैसे हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में नगर दो भागों में बंटे हुए होते थे, यहाँ पर नगर के तीन भागों में बंटे होने के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। 

इस सभ्यता के सबसे अच्छी जल निकासी की व्यवस्था के साक्ष्य धोलावीरा से प्राप्त हुए हैं और यहाँ से लकड़ी की नालियां प्राप्त हुई हैं। 

10. सुरकोटदा – यह स्थल भारत के गुजरात राज्य से प्राप्त हुआ है। 

सुरकोटदा से घोड़े के अस्थि के अवशेष प्राप्त हुए हैं, इसके अलावा ऐसे घोड़े के अस्थि के प्रमाण किसी दूसरे स्थल से प्राप्त नहीं हुए हैं।

इससे हम यह अनुमान लगा सकते हैं क्यूंकि यह स्थल समुद्र के किनारे बसा था, तो यह हो सकता है की ईरान से व्यापार दृष्टि से यह घोड़े यहाँ बंदरगाह के माध्यम से आये होंगे और यहीं रह गए होंगे, और इससे हम यह कह सकते हैं की सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों को पूरी तरह से घोड़ों की जानकारी नहीं भी हो सकती होगी क्यूंकि किसी दूसरे स्थल से घोड़े के अस्थि के प्रमाण नहीं मिले हैं। 

11. रंगपुर – यह स्थल भारत के गुजरात राज्य से प्राप्त हुआ है, यहाँ से भी चावल के अवशेष प्राप्त हुए हैं। 

12. रोजदी और भगतराव – यह स्थल भी भारत के गुजरात राज्य से प्राप्त हुए हैं। 

अफगानिस्तान 

जैसे की हमने ऊपर जाना की अफगानिस्तान में इस सभ्यता के केवल दो क्षेत्र ही प्राप्त हुए हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं:

1. शोर्तुगई 

2. मुंडीगाक

पाकिस्तान   

दोस्तों, सिंधु घाटी सभ्यता में दो क्षेत्रों उनकी राजधानी के रूप में देखा जाता है, पहला क्षेत्र है हड़प्पा और दूसरा क्षेत्र है मोहनजोदड़ो और यह दोनों ही क्षेत्र वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित हैं। 

पाकिस्तान के स्थलों में हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और चन्हुदड़ो जैसे प्रसिद्ध मुख्य स्थल हमें देखने को मिलते हैं।

जैसे की हमने ऊपर जाना की पाकिस्तान में 450 से अधिक स्थल इस सभ्यता के खोजे जा चुके हैं, उनमे जो मुख्य स्थल हैं वे कुछ इस प्रकार हैं:

1. हड़प्पा – दोस्तों, जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ था, तब जो पंजाब का क्षेत्र था वह भी दो भागों में बंट गया था और जो पंजाब का हिस्सा पाकिस्तान के पास चला गया था, उसी पंजाब प्रांत में सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे पहला खोजा गया स्थल, हड़प्पा प्राप्त हुआ है। 

इसी कारण से इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है।

इस हड़प्पा स्थल की खोज रावी नदी के तट पर की गई थी।

2. मोहनजोदड़ो – इस स्थल को पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सिंधु नदी के दाएं तट पर खोजा गया था, यह इस सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल है, दोस्तों हमने ऊपर राखीगढ़ी के बारे में जाना था वह भारत में पाए गए स्थलों में सबसे बड़ा स्थल है, लेकिन मोहनजोदड़ो पूरी सभ्यता के स्थलों में सबसे बड़ा स्थल है। 

3. चन्हुदड़ो – इस स्थल को पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सिंधु नदी के बाएं तट पर खोजा गया था। 

4. कोटदीजी – इस स्थल को भी पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सिंधु नदी के बाएं तट पर खोजा गया था। 

5. सुतकागेंडोर – इस स्थल को पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में खोजा गया था और हमने ऊपर यह भी जाना था की सुतकागेंडोर इस सभ्यता का सबसे पश्चिमी क्षेत्र है। 

6. डाबरकोट और बालाकोट – यह दोनों स्थल भी पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में ही खोजे गए हैं। 

सिंधु घाटी सभ्यता का नगर नियोजन

इस सभ्यता की सबसे बड़ी विशेषता नगर नियोजन को माना जाता है, क्यूंकि इस सभ्यता में पाए गए स्थलों में नगरीय व्यवस्था देखने को मिलती है। 

इस सभ्यता में पाए गए नगर, उनके स्वरूप, उनकी उत्तम जल निकासी व्यवस्थाएं किसी दूसरी सभ्यता में नहीं पाई गयी हैं।  

ग्रिड पद्धति 

इस सभ्यता के नगर नियोजन में सबसे मुख्य ग्रिड पद्धति है, इसमें यह होता है की उत्तर से दक्षिण की तरफ सीधी लकीरें बनाई जाती हैं और पश्चिम से पूर्व की तरफ भी सीधी लकीरें बनाई जाती हैं और ये उत्तर से दक्षिण की लकीरें, पश्चिम से पूर्व की तरफ बनाई गई लकीरों को 90° के कोण में काटती है। 

इससे कुछ ऐसा आकर बनता है जैसा की आप शतरंज को देखते हैं उसमें भी लकीरें एक दूसरे को 90° के कोण में काटती है। 

इस सभ्यता में नगर इसी ग्रिड पद्धति के अनुसार बनाए जाते थे, जैसे की आप निचे चित्र में देख सकते हैं। 

सिंधु घाटी सभ्यता - ग्रिड पद्धति
ग्रिड पद्धति

नगरों का विभाजन 

इस सभ्यता में नगर दो भागों में बंटे हुए होते थे, जिसको हम पूर्वी नगर और पश्चिमी नगर कह सकते हैं। 

पूर्वी नगर निचले नगर होते थे और उनकी ऊंचाई कम होती थी और पश्चिमी नगर ऊपरी नगर या दुर्ग कहलाते थे उनकी ऊंचाई अधिक होती थी। 

पूर्वी नगर में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग जैसे की मजदूर, किसान आदि वर्ग रहते थे और पश्चिमी नगर में अमीर और राज-पाठ से जुड़े लोग रहते थे और पश्चिमी नगर में घर भी पूर्वी नगर से ज्यादा अच्छे और सुव्यवस्थित थे। 

हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और बाकी के अधिकांश स्थलों में नगर इसी दो भागों के हिसाब से बंटे हुए प्राप्त हुए हैं, लेकिन जैसे की हमने ऊपर जाना की गुजरात से पाए गए धोलावीरा में नगर के तीन भागों में बंटे हुए होने के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। 

ईंट 

इस सभ्यता में नगरों के भवनों और दुर्गों को ईंटों के माध्यम से बनाया जाता था। 

इसके स्थलों से कच्ची और पक्की दोनों तरह की ईंटे प्राप्त हुई है, कच्ची ईंटो का प्रयोग भवनों की चारों तरफ से घेरी हुई दीवारों को बनाने और सड़के बनाने के लिए किया जाता था। 

पक्की ईंटों का प्रयोग भवनों, घरों को बनाने के लिए किया जाता था। 

इन स्थलों से पाई गई ईंटे 4 : 2 : 1 के अनुपात में प्राप्त हुई हैं। 

सड़क 

जैसे की हमने ऊपर जाना की नगर ग्रिड पद्द्ति के अनुरूप बनाए जाते थे, तो इसमें सड़के भी एक दूसरे को 90° के कोण में काटती हुई समकोण बनाती थी और घरों के बगल से गुजर कर जाती थी। 

इसके अलावा दो प्रकार की सड़के होती थी, पहली मुख्य सड़क जो बड़ी और लगभग 10 मीटर चौड़ी हुआ करती थी और दूसरी गलियों की सड़के जो छोटी और लगभग 3 – 4 मीटर चौड़ी होती थीं। 

दोस्तों, वर्तमान समय में भी जो हमारे नगर हैं कुछ इसी प्रकार से व्यवस्थित हैं। 

दरवाज़े 

इस सभ्यता में लोग अपने घरों के दरवाजों को मुख्य सड़कों की तरफ न करके छोटी गलियों की तरफ रखा करते थे। 

ऐसा करने के पीछे हम अनुमान लगा सकते हैं की या तो वे सुरक्षा की दृष्टि से या तो मुख्य सड़को की धूल-मिट्टी से बचने के लिए करते होंगे, बाकी ऐसा करने के पीछे कोई ठोस कारण नहीं मिला है। 

इस सभ्यता में सिर्फ गुजरात से पाए गए स्थल लोथल में घरों के दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुलने के प्रमाण प्राप्त हुए हैं। 

जल निकासी व्यवस्था 

यह इस सभ्यता की मुख्य विशेषताओं में से एक है, ऐसी व्यवस्था मेसोपोटामिया की सभ्यता में भी देखने को नहीं मिलती है।

इसमें घरों से निकासी के लिए नालियां बनाई गई थीं और यह छोटी-छोटी नालियां मुख्य सड़क की नालियों से मिलती थी और इन नालियों के बीच में हौज़ बनाए हुए होते थे और नालियों से आया कचरा इस हौज़ में जमा होता रहता था और बाकी पानी नालियों की मदद से शहर के बाहर भेज दिया जाता था। 

इन हौज़ की सफाई के लिए भी व्यवस्था की जाती थी। 

इस सभ्यता के सारे स्थलों से यह निकासी व्यवस्था प्राप्त हुई है, लेकिन गुजरात में पाए गए स्थल धोलावीरा से लकड़ी की नालियां प्राप्त हुई हैं। 

इसके साथ-साथ घरों में कुओं के भी प्रमाण मिले हैं, जहाँ पर लोग पीने के पानी और पानी को जमा करते थे। 

शौचालय 

इसमें बहुत से विदेशी पुरातत्वेता और खोजकर्ताओं ने यह कहा है की इस सभ्यता के लोग वर्तमान जैसी व्यवस्था को उस समय जानते थे और शौचालयों जैसी व्यवस्थाएं उन लोगों ने कर रखी थी।  

सामूहिक भवन 

इस सभ्यता बहुत से सामूहिक भवन प्राप्त हुए हैं, जो सारे लोगों या समाज के लिए बनाए गए थे।

जैसे की मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुए स्नानागार, इस स्नानागार में दो तरफ सीढियाँ बनाई गई थीं जिससे लोग इस स्नानागार में जा सकते थे और इसके आसपास छोटे-छोटे कमरे भी बनाये गए थे जहाँ लोग अपने वस्त्रों को बदल सकते थे। 

इस स्नानागार में बहुत सारे लोगों के स्नान करने की व्यवस्था थी और यह एक सामूहिक स्नानागार था। 

इसके अलावा हड़प्पा से विशाल अन्नागार भी प्राप्त हुए हैं, जहाँ बहुत सारे अन्न को जमा करके रखा जाता था, और वहां से उनका व्यापार किया जाता था।

इसके अलावा सामूहिक सभागार भी प्राप्त हुआ हैं, जहाँ पर लोग एकत्रित होकर सभा करते थे। 

सिंधु घाटी सभ्यता का जीवन ( राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक धार्मिक )

दोस्तों, क्यूंकि इस काल की जानकारी पुरातात्विक स्त्रोत और साहित्यिक या लिखित स्त्रोत दोनों से मिलती है लेकिन इसके साहित्यिक या लिखित स्त्रोतों को अभी तक नहीं पढ़ा जा सका है, इसलिए इस सभ्यता का इतिहासकारों ने ज्यादातर अनुमान ही लगाया है की इस सभ्यता में लोगों का जीवन कैसा रहा होगा।

आइये दोस्तों, अब हम इस सभ्यता के जीवन से संबंधित विभिन्न बिंदुओं को जानें:

राजनीतिक जीवन 

सिर्फ पुरातात्विक स्रोतों के अनुसार यह अनुमान लगाना थोड़ा मुश्किल है की उस समय वहां की व्यवस्था राजतंत्रात्मक थी या जनतन्त्रात्मक। 

इसकी स्थलों से पुरोहित की मूर्ति प्राप्त हुई है, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है की संभवतः उस समय की व्यवस्था पुरोहित द्वारा संचालित की जाती होगी या तो यहाँ का व्यापारी वर्ग या तो कोई नगर प्रशासन यहाँ का संचालन करता होगा और इतिहासकारों द्वारा यह शासन व्यवस्था अनुमान पर आधारित है। 

इसके साथ-साथ पिगट द्वारा हड़प्पा और मोहनजोदड़ो को इस सभ्यता की “जुड़वा राजधानी” भी कहा है। 

इसके साथ-साथ हण्टर ने मोहनजोदड़ो की शासन व्यवस्था को राजतंत्रात्मक न स्वीकार करते हुए एक जनतन्त्रात्मक व्यवस्था की संज्ञा दी है। 

इसके पीछे यह अनुमान लगाया जाता है की क्योंकि इसके स्थलों से न के बराबर कोई महल या अस्त्र-शस्त्र प्राप्त हुए हैं तो यहाँ के लोग शांतिप्रिय रहे होंगे और यहाँ की व्यवस्था जनतन्त्रात्मक रही होगी। 

सामाजिक जीवन 

इसके स्थलों में मातृ देवी की पूजा के प्रमाण और उर्वरता की देवी के पूजा के प्रमाण देखने को मिलते हैं, जिससे इतिहासकार यह अनुमान लगाते हैं की यह सभ्यता मातृसत्तामक रही होगी अर्थात माता का परिवार में सबसे पद होता होगा और इसके साथ-साथ समाज की सबसे छोटी इकाई के रूप में परिवार को देखा जाता है। 

इस सभ्यता का कोई भी वर्ण व्यवस्था का प्रमाण नहीं मिला है जैसे इसके बाद अगर वैदिक काल में देखें तो वहां वर्ण व्यवस्था हमें देखने को मिलती है जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, परंतु सिंधु घाटी सभ्यता से ऐसा कोई वर्ण व्यवस्था का प्रमाण नहीं प्राप्त हुआ है। 

इतिहासकारों के अनुसार इस सभ्यता में कई वर्ग थे जैसे की पुरोहित, व्यापारी, श्रमिक, शिल्पी आदि और यहाँ के लोग शांतिप्रिय थे। 

इसके स्थलों से मछलियों के कांटे और मांस के अवशेष प्राप्त हुए हैं, इससे यह अनुमान लगाया जाता है की इस सभ्यता के लोग शाकाहारी और मांसाहारी भोजन दोनों का सेवन करते थे। 

जैसे की चन्हुदड़ो में मनके बनाने का कारखाना प्राप्त हुआ है, इससे इतिहासकारों के अनुसार इस सभ्यता के पुरुष और महिलाएं दोनों ही आभूषणों को धारण करते थे। 

इसके साथ-साथ सूती और ऊनी वस्त्रों का प्रयोग इस सभ्यता के लोगों द्वारा किया जाता था। 

इस सभ्यता के लोग अपने मनोरंजन के लिए शिकार, नृत्य, पासों का खेल और पशुओं की लड़ाई जैसी क्रियाएं करते थे। 

इस सभ्यता में लोग कूबड़ वाले सांड का पशुपालन करना पसंद करते थे और यह सबसे प्रिय पशु माना जाता था। 

इसके साथ-साथ गाय, घोड़े से भी यहाँ के लोग परिचित थे और इसके अलावा एक सींग वाले गेंडे का चित्रण भी हमें देखने को मिलता है, परंतु उसे एक काल्पनिक पशु के रूप में ही देखा जाता है और सुरकोटदा से घोड़े के अस्थियों के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।

पशुपालन का प्रयोग यात्रा, कृषि में सहायता और दूध और बाकी चीजों जैसी जरूरतों के लिए किया जाता था। 

आर्थिक जीवन 

( i ) व्यापार – इस सभ्यता के लोग अपने क्षेत्रों के साथ-साथ बाहर के देशों जैसे की मध्य एशिया, पश्चिम एशिया, अफगानिस्तान, ईरान, मेसोपोटामिया और मिस्र आदि जैसे देशों के साथ व्यापार करते थे। 

दोस्तों, उस समय व्यापार का संचालन वस्तु विनिमय ( Barter System ) पद्धति द्वारा किया जाता था, इसमें वस्तुओं का आदान-प्रदान करके चीजें खरीदी व बेची जाती थी। 

व्यापार में आयात और निर्यात दोनों किया जाता था, जो कुछ इस प्रकार है:

आयातनिर्यात
1. चांदी ( ईरान और अफगानिस्तान से आयात )1. सूती वस्त्र
2. टिन ( अफगानिस्तान से आयात )2. हाथी दांत
3. तांबा ( खेतड़ी, राजस्थान से आयात )3. इमारती लकड़ी
4. लाजवर्द ( मेसोपोटामिया से आयात )4. धातु, अनाज
सिंधु घाटी सभ्यताहड़प्पा सभ्यता – sindhu ghati sabhyata

( ii ) कृषि – कृषि संबंधित बहुत सारे प्रमाण इसके स्थलों से प्राप्त हुए हैं, जैसे बनवाली से मिट्टी के हल प्राप्त हुए हैं, और कालीबंगा से जुते हुए खेतों के साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं। 

इस प्रकार इस सभ्यता के लोग कृषि से संबंधित विधियों से परिचित थे जैसे जुताई, बुआई, सिंचाई आदि। 

कपास की सबसे पहले खोज के प्रमाण सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त हुए हैं और इसके साथ-साथ इस सभ्यता में लोग गेहूं, मटर, जौ जैसी फसलों से परिचित थे। 

चावल के बहुत कम प्रमाण इस सभ्यता से प्राप्त हुए हैं, इसके स्थलों में सिर्फ लोथल और रंगपुर से चावल और उसके भूसे के प्रमाण प्राप्त हुए हैं। 

गन्ने और रागी जैसी फसलों के भी कोई प्रमाण हमें इस सभ्यता में देखने को नहीं मिलते हैं। 

( iii ) उद्योग – जैसे की कपास की खोज के सबसे पहले प्रमाण सिंधु घाटी सभ्यता में देखने को मिलते हैं, इसलिए यहाँ लोग सूती वस्त्रों का व्यापार करते थे, और अपने सूती वस्त्र विदेशों में भी निर्यात करते थे। 

बर्तनों का निर्माण और शिल्प संबंधित कार्य जैसे मूर्तियां बनाना, खिलौने बनाना आदि भी यहाँ के लोग करते थे। 

इसके साथ-साथ सूती वस्त्रों के प्रमाण भी मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुए हैं। 

धार्मिक जीवन 

दोस्तों, सिंधु घाटी सभ्यता में धर्म के प्रमाण तो देखने को मिलते हैं, परंतु धर्म समाज का मात्र एक अंग के रूप में कार्य कर रहा था, इस सभ्यता में धर्म समाज में पूर्ण रूप से हावी नहीं था। 

इस सभ्यता में लौकिक सभ्यता थी अर्थात जो चीजें देखी जाएँ उन्हीं पर विश्वास करना जैसे की मूर्ति पूजन। 

इस सभ्यता में मंदिर का कोई प्रमाण हमें देखने को नहीं मिलता है। 

मातृदेवी की मूर्ति मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई है और उर्वरता की देवी ( पृथ्वी की देवी ) की मूर्ति हड़प्पा से प्राप्त हुई है जिसमें एक स्त्री के गर्भ से पौधे को निकलता हुआ दिखाया है, इस प्रकार यह प्रमाण मिले हैं की इस सभ्यता के लोग मातृ देवियों की पूजा करते थे। 

इसके साथ-साथ हड़प्पा से मुहरे प्राप्त हुई हैं जिनपर तीन मुख वाले देवता पशुपतिनाथ का चित्र बना हुआ है जिनके चारों तरफ कई पशु बैठे हुए दिखाई देते हैं, इन सारे पशुओं पर नियंत्रण करने वाले देवता को पशुपतिनाथ कहा गया है। 

इस सभ्यता के सबसे प्रमुख देवता पशुपतिनाथ को ही माना जाता है। 

इसके साथ-साथ लिंग-योनि की पूजा, नाग पूजन, पशु पूजन, वृक्ष पूजन और स्वास्तिक चिन्ह जैसे प्रमाण भी हमें देखने को मिलते हैं और स्वास्तिक चिन्ह का सबसे पहला प्रमाण इसी सभ्यता से मिलता है।  

इस प्रकार देखा जाए तो प्रकृति से जुड़ी हर चीज जो मानव जीवन का उद्धार करती है उसकी पूजा सिंधु घाटी सभ्यता में की जाती थी। 

लोथल और कालीबंगा जैसे स्थलों से अग्नि कुंड ( हवन कुंड ) के प्रमाण मिले हैं जिससे यह अनुमान लगाया जाता है की यहाँ पर इस सभ्यता के लोग हवन क्रिया के माध्यम से पूजा करते थे। 

इस प्रकार इस सभ्यता में धर्म सिर्फ एक अंग के रूप में कार्य कर रहा था और वह समाज में वर्चस्वशाली नहीं था। 

सिंधु घाटी सभ्यता की मुहरें

दोस्तों, जैसे की हमने ऊपर जाना की इस सभ्यता में लोग बाहर के देशों से भी व्यापार करते थे, और अपने व्यापार करने के क्रम में तब मुहरों का भी उपयोग हुआ करता था। 

इस सभ्यता और नील नदी की सभ्यता ( मिस्र की सभ्यता ) और मेसोपोटामिया की सभ्यता के बीच व्यापार हुआ करता था और उसके प्रमाण भी पाए गए हैं, जैसे की सिंधु घाटी सभ्यता के स्थलों से पाई गई मुहरें। 

यह मुहरें इस सभ्यता के साथ-साथ नील नदी की सभ्यता ( मिस्र की सभ्यता ) और मेसोपोटामिया की सभ्यता में भी पाई गई हैं, मेसोपोटामिया की सभ्यता के किश, लगाश, निप्पुर और उर जैसे क्षेत्रों मुहरें प्राप्त हुई हैं। 

इन मुहरों का इस्तेमाल एक व्यापारी अपने सामान की बोरियों को बांधकर उनके ऊपर एक नरम मिट्टी के ऊपर इन मुहरों से ठप्पा लगाकर करता था, जिससे की उस नरम मिट्टी के ऊपर उस मुहर का निशान बन जाए और उस सामान को दूसरे व्यापारी तक पहुंचने की यात्रा के दौरान उस सामान को कोई खोल न पाए, अगर कोई उस सामान को खोलता है तो व्यापारी को पता चल जायेगा की उस सामान में चोरी हुई है। 

दोनों व्यापारी एक दूसरे से एक जैसी मुहर का लेन-देन कर लेते थे ताकि जब दूसरे व्यापारी के पास सामान पहुंचे तब वह यह सुनिश्चित कर सकता है कि जो मुहर उसके पास है वही मुहर पहले व्यापारी ने लगाई है, ताकि सामान की गुणवत्ता को कोई हानि न पहुंचा पाए। 

किसी किसी समय पर व्यापारी एक से भी ज्यादा मुहरों का प्रयोग सामान पर करते थे। 

अब तक लगभग 3500 से ज्यादा मुहरें इस सभ्यता के स्थलों से प्राप्त हो चुकी हैं, इन मुहरों में अनेक प्रकार के चित्र आपको देखने को मिल जाएंगे जैसे की ज्यादातर यह मुहरों चौकोर थी और इनमें अलग-अलग जानवर जैसे की सांड, हाथी, गैंडा, बाघ, भैंस, जंगली भैंस, बकरी, मगरमच्छ, खरगोश और एक सींग के जानवर जैसे जानवरों के चिन्ह थे।

इन मुहरों के ऊपर और नीचे की तरफ अनेक प्रकार के अलग-अलग चिन्ह भी बने हुए थे। 

मुहरों के ऊपर की तरफ सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त लिपियों द्वारा लिखा जाता था लेकिन क्यूंकि इस लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है इसलिए ज्यादातर इतिहासकार यह अनुमान लगाते हैं की यह व्यापारी का नाम आदि होगा। 

कुछ मुहरों के ऊपर जो जानवर उस पर बने हुए होते थे उनके खाने के बर्तन भी कुछ मुहरों पर बने हुए होते थे। 

सिंधु घाटी सभ्यता की मुहरें
सिंधु घाटी सभ्यता की मुहरें

इस सभ्यता में पाई जाने वाली मुहरें ज्यादातर स्टेटीट ( Steatite ) खनिज या इसे हम साबुन का पत्थर भी कहते हैं, इससे बनी हुई थी, यह खनिज ज्यादातर नदी के किनारों में पाया जाता है, परंतु कुछ मुहरें सुलेमानी पत्थर ( Agate ), तांबा ( Copper ), चांदी ( Silver ), स्वर्ण ( Gold ), केल्साइट ( Calcite ), फ़ाइनेस ( Faience ) , टेराकोटा ( Terracotta ), हाथी दांत ( Ivory ), चर्ट ( Chert ) से बनी हुई होती थी। 

इन मुहरों के लम्बाई लगभग 0.5 से लेकर 2.5 इंच तक होती थी। 

इसके साथ-साथ सबसे ज्यादा पाई जाने वाली मुहर, एक सींग वाले जानवर की मुहर है और मोहनजोदड़ो में पाई जाने वाली मुहरों में 60% मुहर एक सींग वाले जानवर की प्राप्त हुई हैं और हड़प्पा में भी पाई जाने वाली मुहरों में 46% मुहर एक सींग वाले जानवर की प्राप्त हुई हैं। 

जैसे की हमने ऊपर जाना की ज्यादातर मुहरें चौकोर हुआ करती थी, परंतु कुछ मुहरें आयत ( Rectangle ) आकार में भी पाई गई हैं और इन आयत आकार वाली मुहरों में सिर्फ चिन्ह बने हुए होते थे और कोई जानवर इनमे नहीं बना होता था। 

इसके साथ-साथ गोल ( Circle ), त्रिकोण (Triangle ), बेलनाकार ( Cylindrical ) जैसे आकारों में भी मुहरें सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त हुई हैं। 

कुछ मुहरों के बीच में एक छेद भी पाया गया है, जिससे इतिहासकार यह अनुमान लगाते हैं की उस समय लोग इन मुहरों को अपने गले में बांधते होंगे। 

इसके अलावा कुछ मुहरें ऐसी भी थी जिसमें किसी जानवर के चिन्ह नहीं बल्कि कोई धार्मिक चिन्ह बना होता था, जैसे की कुछ मुहरों में पृथ्वी की देवी के चिन्ह मिले हैं, कुछ मुहरों पर स्वास्तिक के चिन्ह मिले हैं और कुछ मुहरों पर पशुपति के चिन्ह प्राप्त हुए हैं। 

पशुपति चिन्ह की मुहरें मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई हैं, इसके अलावा मोहनजोदड़ो में मेसोपोटामिया की सभ्यता की 3 बेलनाकार मुहरें और 2 चांदी से बनी हुई एक सींग के जानवर वाली मुहरें भी प्राप्त हुई हैं। 

इसके साथ-साथ कालीबंगा से भी मेसोपोटामिया की सभ्यता की 1 बेलनाकार मुहर प्राप्त हुई है। 

यह बेलनाकार मुहरें पश्चिमी एशिया की सभ्यताओं में ज्यादा प्रचलन में थी, सिंधु घाटी सभ्यता में तो हमने ऊपर जाना की चौकोर आकार की मुहरें ज्यादा पाई गई हैं, लेकिन फिर भी एक बेलनाकार मुहर जिसमें भारतीय प्रतीक का चिन्ह है वह कालीबंगा से प्राप्त हुई है। 

इससे यह देखा जा सकता है की यह भारतीय प्रतीक के चिन्ह वाली बेलनाकार मुहर सिंधु घाटी सभ्यता की है, इस मुहर में एक महिला बानी है जिसके अगल-बगल दो आदमी हैं , जिन्होंने एक हाथ के द्वारा महिला को पकड़ा है और उनके दूसरे हाथ में तलवार है, यह मुहर मानव के बलिदान का प्रतीक है। 

लोथल में 1 फारस की खाड़ी की मुहर प्राप्त हुई है जो एक गोले के आकार में है। 

दैमाबाद में सिंधु घाटी सभ्यता में बनी हुई गोलाकार मुहरें प्राप्त हुई हैं। 

धोलावीरा में इस सभ्यता की 2 आयताकार ( Rectangular ) मुहरें प्राप्त हुई हैं। 

इतिहासकारों के अनुसार यह मुहरें सिर्फ व्यापार के संबंध के लिए उपयोग नहीं की जाती होंगी, बल्कि यह अन्य कार्यों के लिए भी इस सभ्यता के लोगों द्वारा उपयोग में लाई जाती होंगी जैसे कि किसी व्यक्ति की पहचान करने के लिए इन मुहरों का इस्तेमाल किया जाता होगा 

यह भी हो सकता है की इन मुहरों का उपयोग किसी व्यक्ति के समुदाय को पहचानने के लिए भी किया जाता होगा, और जैसे की अलग-अलग तरह के 10 जानवरों के चिन्ह इन मुहरों से प्राप्त हुए हैं तो यह भी हो सकता है की तब 10 तरह के समुदाय होंगे और हर समुदाय के लिए अलग जानवर वाले चिन्ह की मुहर हो सकती थी। 

सबसे ज्यादा एक सींग वाले जानवर की मुहर पाई गई हैं, इसलिए हो सकता है कि इन एक सींग वाले मुहर के समुदाय के लोग तब सबसे ज्यादा शक्तिशाली होते होंगे, परंतु यह सब अनुमान मात्र है।

सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं – Sindhu Ghati Sabhyata

दोस्तों, अब इस सभ्यता की विशेषताओं के बारे में जानते हैं, आइये जानें:

1. नगरीय सभ्यता – सिंधु घाटी सभ्यता को ही भारत की सबसे प्रथम नगरीय सभ्यता माना जाता है, यहीं से ही नगरों के स्वरूप का विकास आरंभ होता है। 

पक्के माकन, निकासी व्यवस्थाएं, चौड़ी सड़के और इसी तरह की सारी सुविधाएं इन नगरों में थी और यह सब इस सभ्यता के नगरीय सभ्यता की विशेषताएं थी। 

इस सभ्यता के नगर व्यापार की दृष्टि से प्रधान हुआ करते थे 

2. कांस्य युगीन सभ्यता – दोस्तों, जैसे की हमने हमारे पिछले आर्टिकल पाषाण युग में भी जाना था की जिस काल में पत्थरों का उपयोग हुआ उसे पाषाण काल कहा गया, जिस काल में तांबे का उपयोग हुआ उसे ताम्र युगीन सभ्यता कहा गया, जिस काल में लोहे का उपयोग हुआ उसे लौह युगीन सभ्यता कहा गया और जिस काल में कांस्य का उपयोग हुआ उसे कांस्य युगीन सभ्यता कहा गया। 

इस सभ्यता में कांस्य का उपयोग लोगों के द्वारा किया गया इसलिए इसे कांस्य युगीन सभ्यता कहा जाता है। 

3. आद्य-ऐतिहासिक काल – इसका यह तात्पर्य है की जिस काल की जानकारी पुरातात्विक स्त्रोत और साहित्यिक या लिखित स्त्रोत दोनों से मिलती है लेकिन उसके साहित्यिक या लिखित स्त्रोतों को अभी तक नहीं पढ़ा जा सका है उसे आद्य-ऐतिहासिक काल कहा जाता है। 

सिंधु घाटी सभ्यता के भी हमें पुरातात्विक स्त्रोत और साहित्यिक या लिखित स्त्रोत दोनों प्राप्त हुए हैं लेकिन इसके लिखित स्त्रोतों को अभी तक नहीं पढ़ा जा सका है इसलिए इसके काल को आद्य-ऐतिहासिक काल कहा जाता है। 

इस सभ्यता के संबंध में चित्र लिपियाँ प्राप्त हुई हैं, लेकिन अभी तक इन लिपियों को नहीं पढ़ा जा सका है। 

दोस्तों, हम आपको यह भी बताना चाहते हैं की इतिहास के संबंध में उसको तीन प्रकार से विभाजित किया जाता है, जैसे की:

( i ) प्रागैतिहासिक काल 

( ii ) आद्य-ऐतिहासिक काल

( iii ) ऐतिहासिक काल

इसमें से आद्य-ऐतिहासिक काल के बारे में हमने आपको अभी ऊपर बताया है, बाकी दो कुछ यूँ हैं की जिस काल के संबंध में सिर्फ पुरातात्विक स्त्रोत मिले हैं और कोई साहित्यिक या लिखित स्त्रोत नहीं मिला है उसे प्रागैतिहासिक काल कहते हैं, जैसे की पाषाण युग। 

जिस काल के संबंध में पुरातात्विक स्त्रोत और साहित्यिक या लिखित स्त्रोत दोनों प्राप्त हुए हैं और उसके लिखित स्त्रोतों को भी पढ़ा जा चुका है उसे ऐतिहासिक काल कहते हैं। 

इसलिए सिंधु घाटी सभ्यता को आद्य-ऐतिहासिक काल कहा जाता है। 

4. शांतिप्रिय सभ्यता – जब भी हम इतिहास की तरफ देखते हैं तो हम पाते हैं की किसी भी विषय को लेकर दो या दो से ज्यादा क्षेत्रों या राज्यों, या देशों में युद्ध ही एक विकल्प होता था ताकि वे अपने धार्मिक, राजनीतिक या कोई भी विषय पर अपनी बात मनवा पाएं। 

परंतु इस सभ्यता के संबंध में किसी प्रकार के युद्ध की जानकारी देखने को नहीं मिलती है और इस सभ्यता में लोग शांतिप्रिय होकर रहना पसंद करते थे और इसके साथ-साथ इस सभ्यता की खुदाई प्रक्रिया में भी कोई अस्त्र-शस्त्र देखने को नहीं मिलते हैं। 

इन सब कारणों की वजह से यह अंदाज़ा लगाया जाता है कि इस सभ्यता के लोग शांतिप्रिय और सुप्रशासनिक व्यवस्था के साथ जीवन यापन करना पसंद करते थे।   

5. व्यापार प्रधान – इस सभ्यता में व्यापार को ज्यादा प्रधानता दी गई थी, जैसे की हम दूसरी सभ्यताओं को अगर देखें तो ज्यादातर सभ्यताएं कृषि प्रधान सभ्यतायें थी जैसे की वैदिक काल, यहाँ हमें कृषि व्यवस्था और पशुपालन ज्यादा देखने को मिलता है, लेकिन सिंधु घाटी सभ्यता एक व्यापार प्रधान सभ्यता थी। 

जैसे की वर्तमान समय की बात करें तो नगरों में व्यापार को ज्यादा प्रधानता दी जाती है, वैसे ही इस सभ्यता में नगर व्यापार प्रधान थे। 

6. विस्तृत सभ्यता – यह सभ्यता एक विशाल भू-खंड में फैली हुई थी, इसके स्थल बहुत ही बड़े क्षेत्रफल तक फैले हुए थे, वहीं बात करें विश्व की बाकी प्राचीन सभ्यताओं की तो उनको मिला कर भी उतना क्षेत्रफल नहीं बनता था जितना सिंधु घाटी सभ्यता के स्थल एक बड़े क्षेत्रफल में फैले हुए थे। 

सिंधु घाटी सभ्यता का पतन 

दोस्तों, हमारी इतनी विशाल क्षेत्र में फैली हुई सभ्यता, जो लगभग 13 लाख से 20 लाख वर्ग किलोमीटर तक फैली हुई थी, उसके पतन के कोई स्पष्ट कारण किसी भी इतिहासकार द्वारा नहीं बताए गए हैं। 

इस बिंदु को लेकर भी इतिहासकारों में आपस में मतभेद देखने को मिलता है और अलग-अलग इतिहासकारों द्वारा अपने अलग-अलग कारण दिए गए हैं, आइये उन पर दृष्टि डालें:

अर्नेस्ट मैके और जॉन मार्शलइन्होंने इस सभ्यता के पतन का कारण बाढ़ को माना है, और बाढ़ को ही सबसे ज्यादा विद्वानों ने अपनी सहमति दी है अर्थात बाढ़ को ही इस सभ्यता के पतन का सबसे बड़ा कारण माना गया है।
चाइल्ड और व्हीलरइन्होंने इस सभ्यता के पतन का कारण विदेशी आक्रमणकारियों को माना है, इनके अनुसार आर्यों ने इस सभ्यता पर आक्रमण करके इस सभ्यता को नष्ट किया और उसके बाद भारत में वैदिक समाज का निर्माण किया था।
फेयर सर्विसइनके अनुसार इस सभ्यता के पतन का कारण पारिस्थितिकी असंतुलन था अर्थात धीरे-धीरे जलवायु परिवर्तन होने लगा और यह सभ्यता नष्ट हो गई थी।
सिंधु घाटी सभ्यताहड़प्पा सभ्यता – sindhu ghati sabhyata

इतिहासकारों के अनुसार लगभग 1800 ईसा पूर्व तक सिंधु घाटी सभ्यता का पूर्ण रूप से पतन हो गया था।

सिंधु घाटी सभ्यता – Indus Valley civilization in Hindi

हम आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दी गई सिंधु घाटी सभ्यता – Indus Valley civilization in Hindi के बारे में  जानकारी आपके लिए बहुत उपयोगी होगी और आप इससे बहुत लाभ उठाएंगे। हम आपके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं और आपका हर सपना सच हो।

धन्यवाद।


बार बार पूछे जाने वाले प्रश्न

सिंधु घाटी सभ्यता की खोज कब की गई थी?

1921 में भारत के पुरातात्विक विभाग के प्रमुख सर जॉन मार्शल थे, और इनके नेतृत्व में इन क्षेत्रों में खुदाई का कार्य आरंभ हुआ था।

सिंधु घाटी सभ्यता की खोज किसने की थी?

दयाराम साहनी के नेतृत्व में हड़प्पा क्षेत्र की खोज की गई और राखल दास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो क्षेत्र की खोज करी गई थी और इस प्रकार सिंधु घाटी सभ्यता के प्रारंभिक खोजकर्ताओं के रूप में भी इनको देखा जाता है।

सिंधु घाटी के प्रमुख देवता कौन थे?

इस सभ्यता के सबसे प्रमुख देवता पशुपतिनाथ को ही माना जाता है, इस सभ्यता के लोग मातृ देवियों की भी पूजा करते थे।

सिंधु घाटी सभ्यता किसने लिखी थी?

चार्ल्स मैसन के द्वारा नैरेटिव ऑफ़ जर्नीस ( Narrative of Journeys ) नामक एक पत्रिका भी निकाली गयी थी, जिसमें इन्होंने हड़प्पा क्षेत्र का वर्णन किया था।

सिंधु घाटी सभ्यता के अन्य नाम क्या है?

सिंधु एवं सरस्वती सभ्यता और हड़प्पा सभ्यता।

सिंधु सभ्यता में पवित्र जानवर क्या था?

इस सभ्यता में लोग कूबड़ वाले सांड का पशुपालन करना पसंद करते थे और यह सबसे प्रिय पशु माना जाता था।

सिंधु घाटी की सभ्यता का अंत कैसे हुआ?

इस सभ्यता के पतन का कारण बाढ़ को माना है, और बाढ़ को ही सबसे ज्यादा विद्वानों ने अपनी सहमति दी है अर्थात बाढ़ को ही इस सभ्यता के पतन का सबसे बड़ा कारण माना गया है।

सिंधु घाटी सभ्यता का पतन कब हुआ?

इतिहासकारों के अनुसार लगभग 1800 ईसा पूर्व तक सिंधु घाटी सभ्यता का पूर्ण रूप से पतन हो गया था।

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