Battle of Buxar in Hindi – दोस्तों, आज हम बक्सर के युद्ध के बारे में जानेंगे और जैसे की हमने पिछले आर्टिकल में जाना था की कैसे और किस प्रकार बंगाल की सत्ता का मोह और बंगाल की आंतरिक कलह का फायदा उठाकर अंग्रेजी कंपनी प्लासी के युद्ध में विजय प्राप्त करती है।
हमने यह भी जाना था की प्लासी के युद्ध में अंग्रेजों का साथ देने वाले मीर ज़ाफर को अंग्रेज विजय के बाद बंगाल की सत्ता सौंप कर वहां का नवाब बना देते हैं।
अब हम सबसे पहले बक्सर के युद्ध की पृष्ठभूमि के बारे में जानेंगे की किन परिस्थितियों और कारणों की वजह से बक्सर का युद्ध हुआ था।
बक्सर के युद्ध की पृष्ठभूमि ( Background of Battle of Buxar )
अंग्रेजों के द्वारा प्लासी का युद्ध जीतने के बाद मीर ज़ाफर को 1757 में बंगाल का नवाब बना दिया जाता है।
दोस्तों, जैसे की अंग्रेजों ने प्लासी का युद्ध मीर ज़ाफर को नवाब बनाने के लिए नहीं बल्कि अपने स्वार्थ के लिए लड़ा था, इसलिए मीर ज़ाफर अंग्रेजों का मात्र एक कठपुतली नवाब के रूप में कार्य कर रहा था यानी की सिर्फ नाम का शासक।
बल्कि सच्चाई तो यह थी की बंगाल की सत्ता अंग्रेज ही वास्तविक रूप से चला रहे थे, और इसी क्रम में अंग्रेजों का स्वार्थ और ज्यादा बढ़ने लग गया था और मीर ज़ाफर के रहते हुए वह पूरा नहीं हो पा रहा था।
इसके कुछ ही समय बाद मीर ज़ाफर का एक दामाद होता है जिसका नाम मीर कासिम होता है, उसे बंगाल की सत्ता का मोह हो जाता है और वह अंग्रेजों से बात करता है की अगर वे उसे बंगाल का नवाब बना देते हैं तो वह उन्हें और भी ज्यादा उनका कार्य करने की स्वतंत्रता प्रदान करेगा।
अंग्रेजों का यह प्रस्ताव अंग्रेजों ने स्वीकार कर लिया और 1760 में मीर ज़ाफर को हटाकर मीर कासिम को अंग्रेजो ने बंगाल का नवाब बना दिया था।
परंतु बाद में जैसा अंग्रेजों ने सोचा था की मीर कासिम को नवाब बनाने के बाद उनका कार्य और ज्यादा आसान हो जाएगा वैसा कुछ नहीं हुआ, मीर कासिम ने अंग्रेजों से जैसा वादा किया था उसने उसके विपरीत ही अपने कार्यों को किया।
अंग्रेजों की इच्छा थी की मीर कासिम भी मीर ज़ाफर की तरह ही उनकी कठपुतली की तरह कार्य करे, लेकिन मीर कासिम ने अंग्रेजों के विरुद्ध कार्य करे और उनसे अलग होके अपने स्वतंत्र कार्य करे और वे कार्य कुछ इस प्रकार है:
1. | मीर कासिम ने उस समय की बंगाल की राजधानी जो मुर्शिदाबाद हुआ करती थी उसको मुंगेर में स्थानांतरित करके अपनी राजधानी मुंगेर को बना लिया था। |
2. | उस समय बंगाल क्षेत्र में अंग्रेजों के द्वारा व्यापारिक मामलों में टैक्स संबंधी चीजों को लेकर भेद-भाव भी होता था जैसे की यूरोपीय व्यापारियों को टैक्स में बहुत सी छूट मिलती थी और भारतीय व्यापारियों को यह छूट नहीं दी जाती थी। ऐसे में मीर कासिम ने भारतीय व्यापारियों को भी इन व्यापारिक मामलों में काफी छूट दी, जिस कारण अंग्रेज उससे काफी नाखुश थे। |
3. | मीर कासिम द्वारा इन टैक्स संबंधी मामलों में काफी सुधार किए गए थे। इन सभी कार्यों को देखते हुए अंग्रेज इस नतीजे पर पहुँचते हैं की मीर कासिम उनकी कठपुतली की तरह कार्य नहीं कर रहा है और वह अपनी इच्छाओं के अनुसार ही कार्य कर रहा है, इसलिए अंग्रेजी कंपनी उसे नवाब के पद से हटाने पर विचार करती है। |
पटना कांड
इसी क्रम में 1763 में एक घटना होती है जिसे “पटना कांड” के नाम से संबोधित किया जाता है।
इस घटना में यह हुआ था की जैसे की हमने ऊपर जाना की मीर कासिम अंग्रेजों से अलग होकर उनके विरुद्ध बहुत सारे कार्य करे जा रहा था जिससे अंग्रेज उससे नाखुश थे।
ऐसे में एक अंग्रेजी सैनिक था जिसका नाम एलिस था, 1763 में उसके नेतृत्व में पटना में मीर कासिम के खिलाफ आक्रमण कर दिया जाता है, परंतु इस आक्रमण में अंग्रेजों की पराजय होती है और एलिस की इस आक्रमण में मृत्यु भी हो जाती है।
इस आक्रमण में पराजय के बाद अंग्रेज तुरंत ही मीर कासिम को उसके इस अंग्रेजों के खिलाफ होने के कारण बंगाल के नवाब के पद से हटा देते है और अंग्रेजी कंपनी दुबारा से मीर ज़ाफर को ही 1763 में बंगाल का नवाब बना देती है।
बक्सर का युद्ध , 1764 ( Battle of Buxar, 1764 )
जब अंग्रेजों के द्वारा पटना कांड के बाद मीर कासिम को नवाब के पद से हटा के दुबारा मीर ज़ाफर को बंगाल का नवाब बना दिया जाता है, तब मीर कासिम दुबारा बंगाल की सत्ता को पाने और अंग्रेजों से बदला लेने के लिए योजना बनाता है।
इसी क्रम में वह मदद मांगने हेतु अवध के क्षेत्रों में जाता है और उस समय दिल्ली में मुगल शासक शाह आलम द्वितीय शासन कर रहे थे और इसके साथ-साथ उस समय अवध के नवाब शुजाउद्दौला थे।
मीर कासिम अवध के नवाब शुजाउद्दौला के पास मदद मांगने हेतु जाता है जहां पर मुग़ल शासक शाह आलम द्वितीय भी मौजूद रहते हैं, इन दोनों ने मीर कासिम की मदद के लिए उसकी प्रार्थना स्वीकार करी थी और तीनों में अंग्रेजों से सामना करने की संधि होती है।
इसी क्रम में अंग्रेज भी बिहार क्षेत्र में पहुँच जाते हैं।
तब इन तीनों अर्थात मुग़ल शासक शाह आलम द्वितीय, अवध का नवाब शुजाउद्दौला और मीर कासिम के साथ अंग्रेजों का 22 अक्टूबर, 1764 में बिहार के बक्सर नामक क्षेत्र में “बक्सर का युद्ध” होता है।
दोस्तों, जैसे की हमने प्लासी के युद्ध के संबंध में जब पिछले आर्टिकल में जाना था तब हमने यह देखा था की उस युद्ध में धोखा, षड्यंत्र और कूटनीति जैसी चीजें उस युद्ध का आधार थी, परंतु इस युद्ध में कोई कूटनीति और षड्यंत्र जैसी चीजें इस युद्ध का आधार नहीं थी, बल्कि यह एक सीधा आमने-सामने का युद्ध था।
इस युद्ध में अंग्रेजों ने इन तीनों को पराजित कर दिया था और इस युद्ध के बाद यह भी तय हो गया था की अब अंग्रेज ही भारत में अपनी प्रधानता बनाएंगे क्यूंकि जिन तीनों को अंग्रेजों ने बक्सर के युद्ध में हराया था, इस युद्ध से पहले इन तीनों की ही लगभग पूरे भारत में प्रधानता थी और इस युद्ध के बाद अंग्रेजों की शक्ति भारत में बहुत बढ़ गई थी।
इस बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों की तरफ से हेक्टर मुनरो ( Hector Munro ) ने उनका नेतृत्व किया था और जैसे की हमने प्लासी के युद्ध के संबंध में जाना था की उस युद्ध में अंग्रेजों का नेतृत्व रॉबर्ट क्लाइव ( Robert Clive ) ने किया था।
दोस्तों, यह कहा जाता है की बक्सर के युद्ध में जीत के बाद अंग्रेजों ने दोबारा रॉबर्ट क्लाइव को बंगाल का गवर्नर बना दिया था।
इलाहाबाद की संधि
बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों की जीत के बाद मुगलों और अवध के नवाब के साथ अंग्रेजों ने “इलाहाबाद की संधि” करी थी, इस संधि के अंतर्गत दो अलग-अलग संधियाँ हुई थी, जैसे की अंग्रेजों की मुगलों से अलग संधि और अंग्रेजों की अवध के नवाब के साथ अलग संधि और वे संधियाँ कुछ इस प्रकार है:
अंग्रेज – मुगल संधि
यह संधि 12 अगस्त, 1765 को अंग्रेजों और मुगलों के बीच हुई थी, इस संधि में जो शर्तें थी वे कुछ इस प्रकार हैं:
1. | अब से पूर्णतः बंगाल, बिहार और ओडिशा पर अंग्रेज अपना कार्य कर सकते हैं, दोस्तों हमने हमारे पिछले बहुत सारे आर्टिकल्स में यह भी जाना था की 1717 में मुगल शासक फर्रुखसियर द्वारा ये क्षेत्र अंग्रेजों को कुछ छूटों के साथ मिले हुए थे लेकिन इस संधि के बाद ये क्षेत्र पूर्णतः अंग्रेजों को मिल गए थे। |
2. | अवध क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले इलाहाबाद और कोरान नामक स्थान मुगलों को दे दिए गए थे। |
3. | इसके साथ-साथ 26 लाख रुपए की वार्षिक पेंशन शाह आलम द्वितीय को देने की बात हुई थी। |
यह संधि 16 अगस्त, 1765 को अंग्रेजों और अवध के नवाब के बीच हुई थी, इस संधि में जो शर्ते थी वे कुछ इस प्रकार हैं:
1. | इस संधि के अंतर्गत अवध के नवाब को अंग्रेजों को 50 लाख का जुर्माना देना पड़ता है, क्यूंकि वह एक तरह से बिना कोई वजह से इस युद्ध में शामिल हुआ था। |
2. | इस बिंदु को हमने ऊपर भी जाना की इलाहाबाद और कोरान नामक क्षेत्रों को अवध से लेकर मुगलों को दे दिए गए थे। |
द्वैध शासन प्रणाली
जब अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ने मीर कासिम को हटाकर मीर ज़ाफर को दुबारा 1763 में बंगाल का नवाब बनाया था उसके बाद वह 1765 तक नवाब बना रहता है क्यूंकि उसकी 1765 में मृत्यु हो जाती है।
बक्सर के युद्ध में जीत के बाद अंग्रेजों की इच्छाएं और ज्यादा बढ़ने लगती है और वे बंगाल से अपना पूरा फायदा लेने के बारे में सोचते हैं और इसलिए रॉबर्ट क्लाइव ( Robert Clive ) द्वारा बंगाल में 1765 में “द्वैध शासन प्रणाली” को लागू कर दिया जाता है।
इस द्वैध शासन प्रणाली में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी कार्यों का सारा बोझ बंगाल के नवाब के ऊपर ड़ाल देती है और राजस्व के सारे अधिकार अपने पास रख लेती है जैसे टैक्स वसूलना और व्यापार करना।
इस कारण सारी प्रशासन संबंधी जिम्मेदारियां नवाब को करनी होती थी और अंग्रेजी कंपनी सिर्फ अपना पैसों का भंडार भरने में लगी थी, जिस कारण बंगाल बर्बाद हो रहा था।
बाद में यह व्यवस्था 1773 रेगुलेटिंग एक्ट के माध्यम से बंद करी गई थी और उस समय बंगाल के प्रथम गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स ( Warren Hastings ) थे।
Battle of Buxar in Hindi – बक्सर का युद्ध के कारण और परिणाम
हम आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दी गई Battle of Buxar in Hindi ( बक्सर का युद्ध ) के बारे में जानकारी आपके लिए बहुत उपयोगी होगी और आप इससे बहुत लाभ उठाएंगे। हम आपके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं और आपका हर सपना सच हो।
धन्यवाद।
बार बार पूछे जाने वाले प्रश्न
1764 में बक्सर युद्ध के समय बंगाल का गवर्नर कौन था?
बक्सर के युद्ध में जीत के बाद अंग्रेजों ने दोबारा रॉबर्ट क्लाइव को बंगाल का गवर्नर बना दिया था।
बक्सर का युद्ध क्यों हुआ था?
अंग्रेजी सैनिक, जिसका नाम एलिस था, 1763 में उसके नेतृत्व में पटना में मीर कासिम के खिलाफ आक्रमण कर दिया जाता है, परंतु इस आक्रमण में अंग्रेजों की पराजय होती है और एलिस की इस आक्रमण में मृत्यु भी हो जाती है।
इस आक्रमण में पराजय के बाद अंग्रेज तुरंत ही मीर कासिम को उसके इस अंग्रेजों के खिलाफ होने के कारण बंगाल के नवाब के पद से हटा देते है और अंग्रेजी कंपनी दुबारा से मीर ज़ाफर को ही 1763 में बंगाल का नवाब बना देती है।
बक्सर की लड़ाई कब और किसके मध्य हुई?
मुग़ल शासक शाह आलम द्वितीय, अवध का नवाब शुजाउद्दौला और मीर कासिम के साथ अंग्रेजों का 22 अक्टूबर, 1764 में बिहार के बक्सर नामक क्षेत्र में “बक्सर का युद्ध” होता है।
बक्सर के युद्ध के समय अंग्रेजी सेना का नेतृत्व कौन कर रहा था?
इस बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों की तरफ से हेक्टर मुनरो ( Hector Munro ) ने उनका नेतृत्व किया था और जैसे की हमने प्लासी के युद्ध के संबंध में जाना था की उस युद्ध में अंग्रेजों का नेतृत्व रॉबर्ट क्लाइव ( Robert Clive ) ने किया था।
अंग्रेज तुरंत ही मीर कासिम को उसके इस अंग्रेजों के खिलाफ होने के कारण बंगाल के नवाब के पद से हटा देते है और अंग्रेजी कंपनी दुबारा से मीर ज़ाफर को ही 1763 में बंगाल का नवाब बना देती है।
बक्सर के युद्ध में आप किसे निर्णायक मानते हैं और क्यों?
दोस्तों, जैसे की हमने प्लासी के युद्ध के संबंध में जब पिछले आर्टिकल में जाना था तब हमने यह देखा था की उस युद्ध में धोखा, षड्यंत्र और कूटनीति जैसी चीजें उस युद्ध का आधार थी, परंतु इस युद्ध में कोई कूटनीति और षड्यंत्र जैसी चीजें इस युद्ध का आधार नहीं थी, बल्कि यह एक सीधा आमने-सामने का युद्ध था।